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पद्म श्री विद्यानंद सरैक अपनी पोती 'वंदना' को सौंपेंगे लोक कला का खजाना, मधुर कंठ की हैं मालिक

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Published : Mar 12, 2022, 5:12 PM IST

Updated : Jun 28, 2022, 12:50 PM IST

कई बरसों से हिमाचली संस्कृति को संजोए हुए 81 वर्षीय विद्यानंद सरैक को 21 मार्च को दिल्ली में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री पुरस्कार भेंट किया (Padma Shri Vidyanand Saraik) जाएगा. मीडिया से रूबरू होते हुए विद्यानंद सरैक ने पद्म श्री पुरस्कार के लिए चयनित करने के लिए केंद्र सरकार का आभार व्यक्त किया. वहीं उन्होंने भविष्य में अपनी पोती वंदना सरैक को अपनी लोक संस्कृति की विरासत में सौंपने की बात कही है.

Padma Shri Vidyanand Saraik
पद्म श्री विद्यानंद सरैक

नाहन: लोक साहित्य एवं लोक संगीत के क्षेत्र में जिला सिरमौर से ताल्लुक रखने वाले विख्यात लोक कलाकार एवं साहित्यकार पद्म श्री विद्यानंद सरैक भविष्य में अपनी पोती वंदना सरैक को अपनी लोक संस्कृति की विरासत (Padma Shri Vidyanand Saraik) सौपेंगे. 81 वर्षीय विद्यानंद सरैक ने अपनी यह इच्छा जिला मुख्यालय नाहन में मीडिया द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में जताई. विद्यानंद सरैक की पोती भी अपने दादा के नक्शे कदम पर चलते हुए वर्तमान में संगीत विषय में पीएचडी कर रही हैं

दरअसल, जिला सिरमौर के राजगढ़ उपमंडल के देवठी मझगांव से ताल्लुक रखने वाले लोक संस्कृति के संरक्षक विद्यानंद सरैक को पद्म श्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है. यह पुरस्कार उन्हें 21 मार्च को दिल्ली में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा भेंट किया जाएगा. जिला मुख्यालय नाहन में एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे पद्म श्री विद्या सरैक ने मीडिया से अनौपचारिक बातचीत की.

बातचीत में जब पद्म श्री विद्यानंद सरैक से भविष्य में उनकी लोक संस्कृति की विरासत को सौंपने का सवाल किया गया, तो उसके जवाब में उन्होंने कहा कि संस्था के माध्यम से सैंकड़ों लोगों को प्रशिक्षण भी दिया गया है. साथ ही उनकी संस्था में गुरू-शिष्य की परंपरा भी चली आ रही है, जिसके योगदान को यह सभी लोग संभाले है. पद्म श्री सरैक ने कहा कि उनकी पोती वंदना सरैक संगीत विषय में पीएचडी कर रही है, जोकि इन दिनों थिसिज लिख रही है.

उनकी पोती ने यहां की लोक संस्कृति पर काम करने का प्रयास किया है. साथ ही शास्त्रीय संगीत में भी उसने एमए की है. लिहाजा उन्हें विश्वास है कि वंदना सरैक उनकी इस विरासत को संभालेंगी और उनके शिष्य व सांस्कृतिक दल इसे आगे बढ़ाने का कार्य करेंगे. वर्तमान में हिमाचली संस्कृति को लेकर भी पद्म श्री विद्यानंद सरैक ने चिंता व्यक्त की. इस मामले में पूछे सवाल पर विद्यानंद सरैक ने कहा कि वर्तमान में हालात यह है कि हमारी हिमाचली संस्कृति को पूर्ण रूप से संरक्षण नहीं मिला.

वीडियो.

साथ ही जितना कलाकारों को पारिश्रमिक देकर हिमाचली संस्कृति का उत्थान करना चाहिए था, वो नहीं मिला. इसलिए बरसों से हिमाचली संस्कृति को संजोए रखे असल कलाकार निराश है. दूसरा हिमाचली संस्कृति पर पाश्चात्य की छाया भी पड़ी (81 year old Vidyanand Saraik) है. यही कारण है कि हिमाचली संस्कृति को यह वजह लुप्त करती जा रही है. इस दौरान विद्यानंद सरैक ने पद्म श्री पुरस्कार के लिए चयनित करने पर केंद्र सरकार का भी आभार व्यक्त किया.

बता दें, 26 जुलाई, 1941 में जन्में लोक संस्कृति के संरक्षक विद्यानंद सरैक को इससे पहले राष्ट्रीय संगीत एवं नाट्य अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. विद्यानंद सरैक 4 वर्ष की उम्र से ही हिमाचली लोक संस्कृत संस्कृति व ट्रेडिशनल फोक म्यूजिक की विभिन्न विधाओं को संजोए हुए देश-विदेश में अनेक मंचों पर हिमाचली संस्कृति की छाप छोड़ चुके हैं.उन्होंने हिमाचली संस्कृति व लोक विद्याओं पर किताबें लिखी हैं और सांस्कृतिक धरोहरों पर गहन अध्ययन भी किया है.

यहीं नहीं उन्होंने ट्रेडिशनल फोक जैसे ठोडा सिंटू, बड़ाहलटू हिमाचल की देव पूजा पद्धति और पान चढे़ सहित नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर के गीतांजलि संस्करण से 51 कविताओं का सिरमौरी भाषा में भी अनुवाद किया है.इसके अलावा उन्होंने बच्चों का फोटो ड्रामा भू रे एक रोटी के अलावा समाधान (Vidyanand Saraik of Nahan) नाटक, जोकि सुकताल पर आधारित है, का भी मंचन किया है. विद्यानंद अपनी सांस्कृतिक मंडली स्वर्ग लोक नृत्य मंडल के साथ मिलकर देश-विदेश में कई मंचों पर हिमाचली संस्कृति की छाप छोड़ चुके हैं.

विद्यानंद सरैक को इससे पहले भी कई प्रदेशों में व संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है, जिनमें पंजाब कला शास्त्री अकादमी द्वारा लोकनृत्य ज्ञान लोक साहित्य पुरस्कार भी शामिल है.पद्म श्री विद्यानंद को वर्ष 2016 का गीत एवं नाटक अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार जोकि उन्हें देश के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया था. इस पुरस्कार में उन्हें एक ताम्र पत्र व एक लाख की नकद राशि प्रदान की गई थी. लिहाजा विद्यानंद सरैक अब पद्म श्री पुरस्कार के लिए चयनित किए गए है, जिन्हें 21 मार्च को यह सम्मान भेंट किया जाएगा.

ये भी पढ़ें: ऊना में सिस्टम से परेशान पूर्व सैनिक ने मांगी इच्छा मृत्यु, राष्ट्रपति को लिखा पत्र

नाहन: लोक साहित्य एवं लोक संगीत के क्षेत्र में जिला सिरमौर से ताल्लुक रखने वाले विख्यात लोक कलाकार एवं साहित्यकार पद्म श्री विद्यानंद सरैक भविष्य में अपनी पोती वंदना सरैक को अपनी लोक संस्कृति की विरासत (Padma Shri Vidyanand Saraik) सौपेंगे. 81 वर्षीय विद्यानंद सरैक ने अपनी यह इच्छा जिला मुख्यालय नाहन में मीडिया द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में जताई. विद्यानंद सरैक की पोती भी अपने दादा के नक्शे कदम पर चलते हुए वर्तमान में संगीत विषय में पीएचडी कर रही हैं

दरअसल, जिला सिरमौर के राजगढ़ उपमंडल के देवठी मझगांव से ताल्लुक रखने वाले लोक संस्कृति के संरक्षक विद्यानंद सरैक को पद्म श्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है. यह पुरस्कार उन्हें 21 मार्च को दिल्ली में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा भेंट किया जाएगा. जिला मुख्यालय नाहन में एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे पद्म श्री विद्या सरैक ने मीडिया से अनौपचारिक बातचीत की.

बातचीत में जब पद्म श्री विद्यानंद सरैक से भविष्य में उनकी लोक संस्कृति की विरासत को सौंपने का सवाल किया गया, तो उसके जवाब में उन्होंने कहा कि संस्था के माध्यम से सैंकड़ों लोगों को प्रशिक्षण भी दिया गया है. साथ ही उनकी संस्था में गुरू-शिष्य की परंपरा भी चली आ रही है, जिसके योगदान को यह सभी लोग संभाले है. पद्म श्री सरैक ने कहा कि उनकी पोती वंदना सरैक संगीत विषय में पीएचडी कर रही है, जोकि इन दिनों थिसिज लिख रही है.

उनकी पोती ने यहां की लोक संस्कृति पर काम करने का प्रयास किया है. साथ ही शास्त्रीय संगीत में भी उसने एमए की है. लिहाजा उन्हें विश्वास है कि वंदना सरैक उनकी इस विरासत को संभालेंगी और उनके शिष्य व सांस्कृतिक दल इसे आगे बढ़ाने का कार्य करेंगे. वर्तमान में हिमाचली संस्कृति को लेकर भी पद्म श्री विद्यानंद सरैक ने चिंता व्यक्त की. इस मामले में पूछे सवाल पर विद्यानंद सरैक ने कहा कि वर्तमान में हालात यह है कि हमारी हिमाचली संस्कृति को पूर्ण रूप से संरक्षण नहीं मिला.

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साथ ही जितना कलाकारों को पारिश्रमिक देकर हिमाचली संस्कृति का उत्थान करना चाहिए था, वो नहीं मिला. इसलिए बरसों से हिमाचली संस्कृति को संजोए रखे असल कलाकार निराश है. दूसरा हिमाचली संस्कृति पर पाश्चात्य की छाया भी पड़ी (81 year old Vidyanand Saraik) है. यही कारण है कि हिमाचली संस्कृति को यह वजह लुप्त करती जा रही है. इस दौरान विद्यानंद सरैक ने पद्म श्री पुरस्कार के लिए चयनित करने पर केंद्र सरकार का भी आभार व्यक्त किया.

बता दें, 26 जुलाई, 1941 में जन्में लोक संस्कृति के संरक्षक विद्यानंद सरैक को इससे पहले राष्ट्रीय संगीत एवं नाट्य अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. विद्यानंद सरैक 4 वर्ष की उम्र से ही हिमाचली लोक संस्कृत संस्कृति व ट्रेडिशनल फोक म्यूजिक की विभिन्न विधाओं को संजोए हुए देश-विदेश में अनेक मंचों पर हिमाचली संस्कृति की छाप छोड़ चुके हैं.उन्होंने हिमाचली संस्कृति व लोक विद्याओं पर किताबें लिखी हैं और सांस्कृतिक धरोहरों पर गहन अध्ययन भी किया है.

यहीं नहीं उन्होंने ट्रेडिशनल फोक जैसे ठोडा सिंटू, बड़ाहलटू हिमाचल की देव पूजा पद्धति और पान चढे़ सहित नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर के गीतांजलि संस्करण से 51 कविताओं का सिरमौरी भाषा में भी अनुवाद किया है.इसके अलावा उन्होंने बच्चों का फोटो ड्रामा भू रे एक रोटी के अलावा समाधान (Vidyanand Saraik of Nahan) नाटक, जोकि सुकताल पर आधारित है, का भी मंचन किया है. विद्यानंद अपनी सांस्कृतिक मंडली स्वर्ग लोक नृत्य मंडल के साथ मिलकर देश-विदेश में कई मंचों पर हिमाचली संस्कृति की छाप छोड़ चुके हैं.

विद्यानंद सरैक को इससे पहले भी कई प्रदेशों में व संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है, जिनमें पंजाब कला शास्त्री अकादमी द्वारा लोकनृत्य ज्ञान लोक साहित्य पुरस्कार भी शामिल है.पद्म श्री विद्यानंद को वर्ष 2016 का गीत एवं नाटक अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार जोकि उन्हें देश के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया था. इस पुरस्कार में उन्हें एक ताम्र पत्र व एक लाख की नकद राशि प्रदान की गई थी. लिहाजा विद्यानंद सरैक अब पद्म श्री पुरस्कार के लिए चयनित किए गए है, जिन्हें 21 मार्च को यह सम्मान भेंट किया जाएगा.

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Last Updated : Jun 28, 2022, 12:50 PM IST
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