मंडी: जिला मंडी के उपमंडल करसोग के तहत पांगणा के प्राचीन मंदिर, दुर्ग व पुरानी शैली की अब देशभर में चर्चा होगी. यहां सदियों पुराने देवीकोट/ दुर्ग, मंदिर, प्राचीन चौकीनुमा भवनों, काठकुणी शैली की वास्तुकला के अध्ययन के बाद मुंबई से पहुंचा स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट एंड आर्किटेक्चर विद्यार्थियों सहित अध्यापकों का 50 सदस्यीय दल वापस लौट गया है.
छह दिन के अध्ययन पर ये दल स्कूल की (Architecture students team reached Karsog) प्रधानाचार्य रूपाली गुप्ते के नेतृत्व में पांगणा पहुंचा था. इस दौरान आर्किटेक्चर दल के सदस्य, संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा के साथ बांस शिल्प के जनक तेजराम के घर जाकर प्राचीन मंदिरों के मॉडल, पांगणा महामाया के छह मंजिला मंदिर के मॉडल, पहाड़ी टोपियों, धाठुओं, बुरांश की स्क्वैश, इन्द्रराज के मीठे पेड़ों, पांगणा वासियों के आदर सत्कार की मीठी यादों को अपने साथ मुम्बई ले गए.
रूपाली गुप्ते ने बताया कि क्षेत्रवासियों के सहयोग से पांगणा में जीव और जीवन की शैली वास्तुकला को समझ कर गांव का एक समकालीन नक्शा बनाने का प्रयास किया गया. जिससे पांगणा गांव के कंजर्वेशन और भविष्य की वास्तु को एक उचित दिशा दी जाएगी, ताकि यह कला धरोहर सुरक्षित रह सके. उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक नगरी पांगणा के प्राचीन मंदिर और प्राचीन भवनों का इतिहास पुरातत्व की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. पांगणा में धरोहर दुर्ग/मंदिर और पुराने भवनों और सांस्कृतिक विरासत ने आर्किटेक्चर और शोद्धार्थियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है.
सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच के (Suket Culture Literature and Public Welfare Forum) अध्यक्ष डॉक्टर हिर्मेंद्र बाली हिम ने बताया कि सुकेत रियासत की ऐतिहासिक राजधानी पांगणा के परिवेश में पुराने समय में पत्थर, देवदार की लकड़ी से, काठकुणी, चौकीनुमा व सतलुज तटीय पैगोड़ा शैली के मंदिर रहने व देव भवन के रूप में आदर्श माने जाते हैं, जो पौराणिक घटनाओं के साक्ष्य भी हैं. यहां प्राचीन परंपराएं आज भी विद्यमान हैं.
पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणी कश्यप राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डॉ. जगदीश शर्मा का कहना है कि पांगणा क्षेत्र की कला धरोहर को संरक्षित करने के लिए प्रदेश सरकार और पर्यटन विभाग को पहल करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि सदियों तक बाहरी दुनिया की नजर से बचे पांगणा के मंदिर और भवन गरिमामय संस्कृति व सांस्कृतिक विरासत पांगणा वासियों के कारण सुरक्षित व संरक्षित रहे हैं.