मंडी: मंडी जिला के बड़ा देव कमरुनाग का सरानाहुली मेला शुक्रवार को श्रद्धा और उल्लास के साथ शुरू हो गया है. श्रद्धालुओं के आगमन से कमरुघाटी बड़ा देव के जयकारों से गूंज उठी है. गुरुवार की रात से कमरुनाग मंदिर के लिए पर्यटकों और श्रद्धालुओं की सरोआ, रोहांडा और दूसरे स्थानों से भीड़ जुट गई है.
देव कमरुनाग मंडी जिला के सबसे बड़े देवता के रूप में जाने जाते हैं. जिनका आषाढ़ सक्रांति के दिन मेला लगता है. देवता का मंदिर लगभग 9000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस मंदिर में हर साल आने वाले हजारों श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होती है. 14, 15 जून को यहां मेला लगता है जिसमें हजारों संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.
झील में सोने-चांदी के जेवर चढ़ाते हैं श्रद्धालू
मंदिर के समीप एक अनोखी झील है जहां पर मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धालु सोने- चांदी के जेवर और सिक्के चढ़ाते हैं. यह परंपरा पांडवों के समय की चली आ रही है. मान्यता है कि जब पांडव देव कमरुनाग से मिलने आए थे तो देव कमरुनाग ने कहा कि उन्हें प्यास लगी है. तब भीम ने धरती पर वार किया और अपने हाथ से पानी की झील प्रकट की. साथ ही, जाते समय सारा सोना-चांदी अपना इसी झील में डाल दिया. तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है.
इच्छाधारी नाग करते हैं खजाने की रक्षा
इस झील में करोड़ों-अरबों का खजाना है लेकिन कोई भी इसे निकाल नहीं सकता. कहा जाता है कि इच्छाधारी नाग इस खजाने की रक्षा करते हैं. सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस क्षेत्र में ज्यादातर सांप की तरह दिखने वाले छोटे-छोटे पौधे मिलते हैं जो बिल्कुल सांप की तरह नजर आते हैं.
महाभारत काल से जुड़ा है देव कमरूनाग का इतिहास
देव कमरुनाग का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. श्री कृष्ण ने कमरूनाग से उनका सिर मांग लिया था और देव कमरुनाग इच्छा के अनुसार महाभारत का युद्ध देखना चाहते थे. एक ऊंची शिला पर उसे स्थापित कर दिया.
सरानाहुली मेले में नहीं होगी पशु बलि
एसडीएम गोहर अनिल भारद्वाज ने बताया कि मेले के आयोजन को लेकर सभी इंतजाम पूरे कर लिए गए हैं. साथ ही, उन्होंने बताया कि कमरुनाग के सरानाहुली मेले में कोर्ट के आदेश के बाद कोई पशु बलि नहीं होगी. नारियल काटकर श्रद्धालु बच्चों के मुंडन संस्कार करवाएंगे.