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अद्भुत: सिर्फ एक अंगुली से हिलती है ये विशाल चट्‌टान...जानिए 'पांडव शिला' से जुड़ी यह प्राचीन कथा - पांडव शिला को लेकर कई दंत कथाएं प्रचलित

मंडी जिला मुख्यालय से 92 किलोमीटर दूर जंजैहली के कुथाह गांव में एक ऐसी विशालकाय चट्टान है, जिसे पांडव शिला के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पर रुके थे और इस भारी भरकम चट्टान को पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान निशानी के तौर पर यहां रखा था. इस शिला को यदि कोई सच्चे मन से एक हाथ से हिलाए तो यह हिल जाती है.

अद्भुत हिमाचल
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Published : Sep 9, 2021, 10:22 AM IST

Updated : Sep 9, 2021, 10:33 AM IST

मंडी: हिमाचल को देव पंरपराओं के लिए जाना जाता है. देव परंपराओं से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है. प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली छोटी काशी मंडी से पांडवों का गहरा नाता रहा है. जिले के कई क्षेत्रों में पांडवों से जुड़े कई रोचक किस्से, मंदिर व निशानियां आज भी मौजूद हैं.

मंडी जिला मुख्यालय से 92 किलोमीटर दूर जंजैहली के कुथाह गांव में एक ऐसी विशालकाय चट्टान है, जिसे पांडव शिला के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पर रुके थे और इस भारी भरकम चट्टान को पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान निशानी के तौर पर यहां रखा था. इस शिला को यदि कोई सच्चे मन से एक हाथ से हिलाए तो यह हिल जाती है. यदि कोई जोर आजमाइश करके भले ही दोनों हाथों से पूरा जोर लगा दे, शिला टस से मस नहीं होती. इस शिला को हाथ की एक अंगुली से भी हिला सकते हैं. लोग इसे श्रद्धा से हिलाते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

वीडियो

शिला पर दूर से कंकड़ फेंकने की प्रथा भी है. मान्यता है कि यदि फेंका गया कंकड़ शिला पर जाकर टिक जाए तो मनोकामना पूरी हो जाती है. अधिकांश निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति की इच्छा से शिला पर कंकड़ फेंकती हैं. यदि कंकड़ ऊपर जाकर टिक जाए तो उन्हें संतान का वरदान मिल जाता है. दूसरी ओर स्थानीय लोग व यहां से गुजरने वाले पर्यटक भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए शिला पर कंकड़ फेंकते हैं.

पांडव शिला को लेकर कई दंत कथाएं भी प्रचलित हैं. एक दंत कथा के अनुसार जब पांडवों व कौरवों के बीच युद्ध हुआ तो बहुत से कौरव मारे गए. पांडवों को कहा गया कि इन हत्याओं के पाप को धोने के लिए उन्हें वृंदावन जाकर नंदी बैल के दर्शन करने होंगे. पापों से मुक्ति के लिए पांडव वृंदावन के लिए निकल गए और जब वहां पहुंचे तो पता चला कि नंदी बैल तो यहां से चले गए हैं.

ऐसे में, पांडव नंदी बैल का पीछा करते करते हिमाचल प्रदेश के कुंतभयो, रिवालसर, कमरूनाग होते हुए इस क्षेत्र में पहुंच गए. प्रवास के दौरान पांडव यहां पर रुके. जब वह खाना खा रहे थे तो ऊपर पहाड़ी पर बसे गांव से एक लाश बाखली खड्ड के किनारे जलाने के लिए लाई गई. पांडवों ने लाश को देखकर खाना छोड़ दिया. उस समय भीम के हाथों में सत्तू का पेड़ा था. अचानक लाश को देखकर वह पेड़ा भीम हाथ से छूट गया, जो बाद में पांडव शिला कहलाया.

वहीं, एक अन्य दंत कथा के मुताबिक पांडव यहां पर पानी से चलने वाला घराट बना रहे थे. घराट बनाते समय पांडवों को सुबह हो गई और एक रात में यह कार्य पूरा नहीं हो सका. पांडव यहां से निकलने से पहले निशानी के तौर पर हुक्के का चुगल रख दिया, जो बाद में पांडव शिला के नाम से जाना गया.

स्थानीय निवासी ज्ञानचंद का कहना है कि किसी समय यहां से सड़क निकाली जा रही थी. भीम शिला को यहां से हटाने के लिए जैसे ही मशीन लगाई गई तो उसका अगला हिस्सा टूट गया, जिससे लोगों की भीम शिला में और ज्यादा आस्था बढ़ गई.

पंचायत के उपप्रधान दुनी चंद ठाकुर का कहना है कि स्थानीय लोगों की इस शिला के प्रति अटूट आस्था है. स्थानीय लोगों सहित पर्यटक भी अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां पहुंचते हैं. उन्होंने प्रदेश सरकार से इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से निखारने की मांग की है.

ये भी पढ़ें: Aaj Ka Rashifal: जानें कैसा रहेगा आपका आज का द‍िन

मंडी: हिमाचल को देव पंरपराओं के लिए जाना जाता है. देव परंपराओं से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है. प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली छोटी काशी मंडी से पांडवों का गहरा नाता रहा है. जिले के कई क्षेत्रों में पांडवों से जुड़े कई रोचक किस्से, मंदिर व निशानियां आज भी मौजूद हैं.

मंडी जिला मुख्यालय से 92 किलोमीटर दूर जंजैहली के कुथाह गांव में एक ऐसी विशालकाय चट्टान है, जिसे पांडव शिला के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पर रुके थे और इस भारी भरकम चट्टान को पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान निशानी के तौर पर यहां रखा था. इस शिला को यदि कोई सच्चे मन से एक हाथ से हिलाए तो यह हिल जाती है. यदि कोई जोर आजमाइश करके भले ही दोनों हाथों से पूरा जोर लगा दे, शिला टस से मस नहीं होती. इस शिला को हाथ की एक अंगुली से भी हिला सकते हैं. लोग इसे श्रद्धा से हिलाते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

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शिला पर दूर से कंकड़ फेंकने की प्रथा भी है. मान्यता है कि यदि फेंका गया कंकड़ शिला पर जाकर टिक जाए तो मनोकामना पूरी हो जाती है. अधिकांश निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति की इच्छा से शिला पर कंकड़ फेंकती हैं. यदि कंकड़ ऊपर जाकर टिक जाए तो उन्हें संतान का वरदान मिल जाता है. दूसरी ओर स्थानीय लोग व यहां से गुजरने वाले पर्यटक भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए शिला पर कंकड़ फेंकते हैं.

पांडव शिला को लेकर कई दंत कथाएं भी प्रचलित हैं. एक दंत कथा के अनुसार जब पांडवों व कौरवों के बीच युद्ध हुआ तो बहुत से कौरव मारे गए. पांडवों को कहा गया कि इन हत्याओं के पाप को धोने के लिए उन्हें वृंदावन जाकर नंदी बैल के दर्शन करने होंगे. पापों से मुक्ति के लिए पांडव वृंदावन के लिए निकल गए और जब वहां पहुंचे तो पता चला कि नंदी बैल तो यहां से चले गए हैं.

ऐसे में, पांडव नंदी बैल का पीछा करते करते हिमाचल प्रदेश के कुंतभयो, रिवालसर, कमरूनाग होते हुए इस क्षेत्र में पहुंच गए. प्रवास के दौरान पांडव यहां पर रुके. जब वह खाना खा रहे थे तो ऊपर पहाड़ी पर बसे गांव से एक लाश बाखली खड्ड के किनारे जलाने के लिए लाई गई. पांडवों ने लाश को देखकर खाना छोड़ दिया. उस समय भीम के हाथों में सत्तू का पेड़ा था. अचानक लाश को देखकर वह पेड़ा भीम हाथ से छूट गया, जो बाद में पांडव शिला कहलाया.

वहीं, एक अन्य दंत कथा के मुताबिक पांडव यहां पर पानी से चलने वाला घराट बना रहे थे. घराट बनाते समय पांडवों को सुबह हो गई और एक रात में यह कार्य पूरा नहीं हो सका. पांडव यहां से निकलने से पहले निशानी के तौर पर हुक्के का चुगल रख दिया, जो बाद में पांडव शिला के नाम से जाना गया.

स्थानीय निवासी ज्ञानचंद का कहना है कि किसी समय यहां से सड़क निकाली जा रही थी. भीम शिला को यहां से हटाने के लिए जैसे ही मशीन लगाई गई तो उसका अगला हिस्सा टूट गया, जिससे लोगों की भीम शिला में और ज्यादा आस्था बढ़ गई.

पंचायत के उपप्रधान दुनी चंद ठाकुर का कहना है कि स्थानीय लोगों की इस शिला के प्रति अटूट आस्था है. स्थानीय लोगों सहित पर्यटक भी अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां पहुंचते हैं. उन्होंने प्रदेश सरकार से इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से निखारने की मांग की है.

ये भी पढ़ें: Aaj Ka Rashifal: जानें कैसा रहेगा आपका आज का द‍िन

Last Updated : Sep 9, 2021, 10:33 AM IST
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