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Shardiya Navratri 2022: नवरात्रि का पांचवा दिन, इस मंत्र से करें स्कंदमाता की पूजा, बाधाएं होंगी दूर

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Published : Sep 30, 2022, 4:32 AM IST

शारदीय नवरात्रि 2022 पर माता दुर्गा के अलग-अलग रूपों के दर्शन, पूजन का क्रम जारी है और आज नवरात्र का पांचवा दिन है. शारदीय नवरात्र के पांचवे दिन स्कंदमाता का साधना आराधना का दिन है. स्कंदमाता भगवान कार्त‍िकेय यानी स्‍कंद जी की मां हैं इसलिए दुनिया माता के इस स्वरूप को स्कंदमाता कहकर बुलाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्कंदमाता को पहाड़ों पर रहकर दुनिया के जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वाली देवी कहा जाता है. (Shardiya Navratri 2022) (navratri 2022 puja vidhi)

maa skandmata puja vidhi
नवरात्रि के पांचवे दिन माता स्कंदमाता की पूजा

कुल्लू: देश भर में शारदीय नवरात्रि के त्योहार (Durga Puja 2022 Date) में भक्त देवी के 9 रूपों की आराधना कर रहे हैं. शारदीय नवरात्रि 2022 (Shardiya Navratri 2022) का आज पांचवा दिन है. नवरात्रि के पांचवे दिन माता स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि स्कंदमाता की पूजा अर्चना से ज्ञान की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है.

स्कंदमाता का स्वारूप: कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है. इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं. इस देवी की चार भुजाएं हैं. ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं. नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है. बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है. इनका वर्ण एकदम शुभ्र है. ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है. सिंह इनका वाहन है. स्कंदमाता, विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति हैं. यानी चेतना का निर्माण करने वाली हैं. कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुई है.

वीडियो.

पूजा के समय रखें ये ख्याल: स्कंदमाता की पूजा में धनुष बाण अर्पित करने का विशेष महत्व (significance of navratri festival ) है. इन्हें सुहाग का सामान अर्पित करना चाहिए. नवरात्र के पांचवें दिन लाल वस्‍त्र में सुहाग की सभी सामग्री लाल फूल और अक्षत के समेत मां को अर्पित करने से महिलाओं को सौभाग्‍य और संतान की प्राप्ति होती है. मां की कृपा से बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त होता है. मां की कृपा से पारिवारिक शांति की प्राप्ति होती है. मां की आराधना से शुभता की प्राप्ति होती है.

ऐसे करें स्कंदमाता की पूजा-अर्चना: आचार्य दीप कुमार के अनुसार नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा (navratri 2022 puja vidhi ) करें. इसके बाद मां दुर्गा और उनके स्वरूप की पूजा आरंभ करें. सबसे पहले जल से आचमन करें. इसके बाद मां को फूल, माला चढ़ाएं. इसके बाद सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि लगाएं. फिर एक पान में सुपारी, इलायची, बताशा और लौंग रखकर चढ़ा दें.

आज माता को लगाएं ये भोग: स्‍कंदमाता को भोग स्‍वरूप केला अर्पित करना चाहिए. मां को पीली वस्‍तुएं अति प्रिय (Navratri Colours Significance 2022) होती हैं, इसलिए केसर डालकर खीर बनाएं और उसका भी भोग लगा सकते हैं. आज के दिन मां स्कंदमाता को भोग में फल में केला और इसके अलावा मिठाई चढ़ा दें. इसके बाद जल अर्पित कर दें. इसके बाद घी का दीपक, धूप जलाकर मां के मंत्र का जाप करें. इसके बाद दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और अंत में दुर्गा मां के साथ स्कंदमाता की आरती करें.

स्कंदमाता की पूजा से होगी संतान की प्राप्ति: मान्यता है कि जिन लोगों को संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो, उन्हें मां के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए. आदिशक्ति का यह स्वरूप संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण करनेवाला माना गया है. स्कंदमाता की पूजा में कुमार कार्तिकेय का होना जरूरी होता है. कहते हैं जो भक्त देवी स्कंद माता का भक्ति-भाव से पूजन करते हैं, उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है. देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है.

इस मंत्र का करें जाप: स्कंदमात की पूजा-अर्चना के समय इस मंत्र का जाप (navratri puja mantra ) जरूर करें...

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

स्‍नेह की देवी हैं स्कंदमाता: कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति माना जाता है और माता को अपने पुत्र स्कंद से अत्यधिक प्रेम है. जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ता है तो माता अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश करती हैं. स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र के साथ जोड़ना बहुत अच्छा लगता है. इसलिए इन्हें स्नेह और ममता की देवी माना जाता है.

पौराणिक मान्यता: पौराणिक कथाओं के अनुसार स्कंदमाता को दुनिया की रचियता कहा जाता है और जो भी सच्चे मन से मां की पूजा और अराधना करता है तो माता उसे प्रसन्न होकर मन इच्छा फल देती है. कथाओं के अनुसार स्कंदमाता को सफेद वस्त्र बेहद प्रिय हैं और वह सदैव कमल पर विराजमान रहती है.

ये भी पढ़ें: भगवान रघुनाथ के आगमन से होती है अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा की शुरुआत, जानें क्यों सबसे अलग है ये उत्सव और मान्यता

कुल्लू: देश भर में शारदीय नवरात्रि के त्योहार (Durga Puja 2022 Date) में भक्त देवी के 9 रूपों की आराधना कर रहे हैं. शारदीय नवरात्रि 2022 (Shardiya Navratri 2022) का आज पांचवा दिन है. नवरात्रि के पांचवे दिन माता स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि स्कंदमाता की पूजा अर्चना से ज्ञान की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है.

स्कंदमाता का स्वारूप: कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है. इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं. इस देवी की चार भुजाएं हैं. ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं. नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है. बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है. इनका वर्ण एकदम शुभ्र है. ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है. सिंह इनका वाहन है. स्कंदमाता, विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति हैं. यानी चेतना का निर्माण करने वाली हैं. कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुई है.

वीडियो.

पूजा के समय रखें ये ख्याल: स्कंदमाता की पूजा में धनुष बाण अर्पित करने का विशेष महत्व (significance of navratri festival ) है. इन्हें सुहाग का सामान अर्पित करना चाहिए. नवरात्र के पांचवें दिन लाल वस्‍त्र में सुहाग की सभी सामग्री लाल फूल और अक्षत के समेत मां को अर्पित करने से महिलाओं को सौभाग्‍य और संतान की प्राप्ति होती है. मां की कृपा से बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त होता है. मां की कृपा से पारिवारिक शांति की प्राप्ति होती है. मां की आराधना से शुभता की प्राप्ति होती है.

ऐसे करें स्कंदमाता की पूजा-अर्चना: आचार्य दीप कुमार के अनुसार नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा (navratri 2022 puja vidhi ) करें. इसके बाद मां दुर्गा और उनके स्वरूप की पूजा आरंभ करें. सबसे पहले जल से आचमन करें. इसके बाद मां को फूल, माला चढ़ाएं. इसके बाद सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि लगाएं. फिर एक पान में सुपारी, इलायची, बताशा और लौंग रखकर चढ़ा दें.

आज माता को लगाएं ये भोग: स्‍कंदमाता को भोग स्‍वरूप केला अर्पित करना चाहिए. मां को पीली वस्‍तुएं अति प्रिय (Navratri Colours Significance 2022) होती हैं, इसलिए केसर डालकर खीर बनाएं और उसका भी भोग लगा सकते हैं. आज के दिन मां स्कंदमाता को भोग में फल में केला और इसके अलावा मिठाई चढ़ा दें. इसके बाद जल अर्पित कर दें. इसके बाद घी का दीपक, धूप जलाकर मां के मंत्र का जाप करें. इसके बाद दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और अंत में दुर्गा मां के साथ स्कंदमाता की आरती करें.

स्कंदमाता की पूजा से होगी संतान की प्राप्ति: मान्यता है कि जिन लोगों को संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो, उन्हें मां के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए. आदिशक्ति का यह स्वरूप संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण करनेवाला माना गया है. स्कंदमाता की पूजा में कुमार कार्तिकेय का होना जरूरी होता है. कहते हैं जो भक्त देवी स्कंद माता का भक्ति-भाव से पूजन करते हैं, उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है. देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है.

इस मंत्र का करें जाप: स्कंदमात की पूजा-अर्चना के समय इस मंत्र का जाप (navratri puja mantra ) जरूर करें...

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

स्‍नेह की देवी हैं स्कंदमाता: कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति माना जाता है और माता को अपने पुत्र स्कंद से अत्यधिक प्रेम है. जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ता है तो माता अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश करती हैं. स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र के साथ जोड़ना बहुत अच्छा लगता है. इसलिए इन्हें स्नेह और ममता की देवी माना जाता है.

पौराणिक मान्यता: पौराणिक कथाओं के अनुसार स्कंदमाता को दुनिया की रचियता कहा जाता है और जो भी सच्चे मन से मां की पूजा और अराधना करता है तो माता उसे प्रसन्न होकर मन इच्छा फल देती है. कथाओं के अनुसार स्कंदमाता को सफेद वस्त्र बेहद प्रिय हैं और वह सदैव कमल पर विराजमान रहती है.

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