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कुल्लू में 'हालडा उत्सव' की धूम, लोगों ने मशाल जलाकर भगाए भूत!

कुल्लू और लाहौल-स्पीति में हालडा उत्सव मनाया जा रहा है. घाटी के लोगों ने इस मौके पर बड़ी-बड़ी मशालें जला कर नाच-गान करते हुए एक-दूसरे को हालडा उत्सव की बधाई दी. इस मौके पर विभिन्न तरह से व्यंजन भी परोसे गए.

Kullu halda festival
Kullu halda festival
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Published : Jan 15, 2020, 2:03 PM IST

कुल्लूः जिला कुल्लू और लाहौल-स्पीति में इन दिनों हालडा उत्सव धूमधाम के साथ आयोजित किया जा रहा है. लाहौल और भुंतर घाटी में भी देर रात को हालडा उत्सव को लेकर लोगों में उत्साह बना हुआ है. घाटी के लोगों ने इस मौके पर बड़ी-बड़ी मशालें जला कर नाचते-गाते हुए त्योहार मनाया.

त्योहार के दौरान सभी ने नाच-गान करते हुए एक-दूसरे को हालडा उत्सव की बधाई दी. इस मौके पर विभिन्न तरह से व्यंजन भी परोसे गए. महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर सभी अतिथियों का लाहुली परंपरा के अनुसार शगुन करते हुए स्वागत किया.

वीडियो.

माना जाता है कि हालडा के माध्यम से लोग आसुरी शक्तियों को भगाते हैं और नए साल के आगमन पर सुख समृद्धि व खुशहाली की कामना करते हैं. इस बार घाटी में बर्फ की मोटी परत जमी हुई है. बर्फ की ठंडक के बीच भी लोगों में इस उत्सव को मनाने के लिए खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.

स्थानीय बुजुर्गों टशी व पलजोर का कहना है कि भले ही उत्सवों को मनाने का तौर-तरीका बदला है, लेकिन घाटी के लोग सदियों पुरानी परंपरा को कायम रखे हुए हैं. उनका कहना है कि घाटी में सर्दियों के दौरान देवता स्वर्ग प्रवास में चले जाते हैं और असुरी शक्तियों का बोलबाला अधिक रहता है. असुरी शक्तियों को भगाने के लिए ही हालडा उत्सव का आयोजन किया जाता है.

ये भी पढ़ें- कुल्लू में मकर संक्रांति की धूम, भगवान रघुनाथ के मंदिर में बांटी गई खिचड़ी

कुल्लूः जिला कुल्लू और लाहौल-स्पीति में इन दिनों हालडा उत्सव धूमधाम के साथ आयोजित किया जा रहा है. लाहौल और भुंतर घाटी में भी देर रात को हालडा उत्सव को लेकर लोगों में उत्साह बना हुआ है. घाटी के लोगों ने इस मौके पर बड़ी-बड़ी मशालें जला कर नाचते-गाते हुए त्योहार मनाया.

त्योहार के दौरान सभी ने नाच-गान करते हुए एक-दूसरे को हालडा उत्सव की बधाई दी. इस मौके पर विभिन्न तरह से व्यंजन भी परोसे गए. महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर सभी अतिथियों का लाहुली परंपरा के अनुसार शगुन करते हुए स्वागत किया.

वीडियो.

माना जाता है कि हालडा के माध्यम से लोग आसुरी शक्तियों को भगाते हैं और नए साल के आगमन पर सुख समृद्धि व खुशहाली की कामना करते हैं. इस बार घाटी में बर्फ की मोटी परत जमी हुई है. बर्फ की ठंडक के बीच भी लोगों में इस उत्सव को मनाने के लिए खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.

स्थानीय बुजुर्गों टशी व पलजोर का कहना है कि भले ही उत्सवों को मनाने का तौर-तरीका बदला है, लेकिन घाटी के लोग सदियों पुरानी परंपरा को कायम रखे हुए हैं. उनका कहना है कि घाटी में सर्दियों के दौरान देवता स्वर्ग प्रवास में चले जाते हैं और असुरी शक्तियों का बोलबाला अधिक रहता है. असुरी शक्तियों को भगाने के लिए ही हालडा उत्सव का आयोजन किया जाता है.

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Intro:तिनंन घाटी के लोगो ने मशाल जलाकर भगाए भूत
कुल्लू में मनाया हालडा उत्सव
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जिला लाहुल-स्पीति में इन दिनों हालड़ा उत्सव घाटी में धूमधाम के साथ आयोजित किया जा रहा है। वही, कुल्लू में भी मंगलवार रात को हालड़ा उत्सव का आयोजन किया गया। लाहौल घाटी में भी देर रात को तिनन वैली में हालड़ा उत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया। वही, भुंतर के जनजातीय भवन में भी हालड़ा उत्सव मनाया गया। घाटी के लोगों ने इस मौके पर बड़ी-बड़ी मशालें जलाईं। इसके बाद सभी ने नाच-गाना करते हुए हालड़ा उत्सव की बधाई एक-दूसरे को दी। इस मौके पर विभिन्न तरह से व्यंजन भी परोसे गए। महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर सभी अतिथियों का लाहुली परंपरा के अनुसार शगुन करते हुए स्वागत किया गया। ऐसी मान्यता है कि हालडा के माध्यम से लोग आसुरी शक्तियों को भगाते हैं तथा नव वर्ष के आगमन पर सुख समृद्धि व खुशहाली की कामना करते हैं। ग्रामीणों ने अलाव ((मशाल का ढ़ेर)) के इर्द-गिर्द छांग व आरक की मस्ती में नाचते गाते एक दूसरे पर फब्तियां कस्ते हुए उत्सव को मनाया। इस बार लाहौल स्पीति की गाहर घाटी से शुरू हुए हालड़ा उत्सव में घाटी में बर्फ की मोटी परत जमी हुई है। बर्फ की ठंडक के बीच भी लोगों में इस उत्सव को मनाने के लिए खासा उत्साह देखने को मिला।
स्थानीय बुजुर्गों टशी व पलजोर का कहना है कि भले ही उत्सवों को मनाने का तौर तरीका बदला है लेकिन घाटी के लोग सदियों पुरानी परंपरा को कायम रखे हुए हैं। उनका कहना है कि घाटी में सर्दियों के दौरान देवता स्वर्ग प्रवास में चले जाते हैं तथा असुरी शक्तियों का बोलबाला अधिक रहता है। असुरी शक्तियों को भगाने के लिए ही हालडा उत्सव का आयोजन किया जाता है।

Conclusion:

कहा जाता है कि जब भी किसी गांव में प्रेतात्माओं की वृद्धि होती है या क्षेत्र में पाप की अधिकता होती है वहां पाप भूमि में रिसता जाता है और उस क्षेत्र में आहें निकलनी शुरू हो जाती है। ऐसे आयोजनों के लिए जौं के आटे को भी भूमि में फेंका जाता है। प्राचीन साहित्य में जौ को बज्र का रूप माना जाता है। पाप के भूमि में रिसने से जौ का आटा रूपी बज्र पाप का खात्मा करते हैं। लिहाजा, लाहौल स्पीति की अलग अलग घाटियों में मनाया जाने वाला हाल डा उत्सव भी उसी का एक रूप है।
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