कुल्लू: देवभूमि कुल्लू के देवी-देवताओं की परंपरा अनूठी, अद्भुत है. घाटी में कई देवी-देवताओं का वास है. आज हम आपको वन के राजा के नाम से विख्यात वनशीरा देवता के इतिहास से रु-ब-रु करवा रहे हैं. इनकी पूजा-अर्चना देवभूमि कुल्लू के साथ-साथ प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी होती है.
यह देव वनशीरा देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी के कनौन गांव में चांदी के सुंदर रथ में विराजमान हैं. अगर कोई व्यक्ति बिना वजहसे किसी को प्रताड़ित करता है, चोरी-डकैती, जमीन जायदाद के झगड़े, झूठे आरोप लगाता है तो देवता बनशीरा ऐसे व्यक्तियों पर राक्षस प्रवृत्ति से पेश आते हैं. यदि ऐसी स्थिति में किसी ने अपना गुनाह कबूल किया तो उसे क्षमा भी कर देते हैं. ये भी माना जाता है कि लोगों को भूत-पिशाच से भी देवता अपनी शक्ति से मुक्ति दिलाते हैं.
देवता के कारदारों ने बताया कि वनशीरा देवता जंगलों का राजा है. देवता भूत-प्रेतों और बुरी आत्माओं का विनाश करता है. बुरी आत्माओं से प्रभावित लोगों को देवता ठीक करते हैं. क्षेत्र में कोई भी उत्सव या खुशी का मौका हो तो सबसे पहले बनशीरा देवता का मान किया जाता है.
सैंज घाटी के कनौन की ऊंची चोटी पुखरी नाम की जगह पर देवता का मूल स्थान है. यहां लोग मन्नत के तौर पर सैकड़ों टन लोहा व त्रिशूल चढ़ाते हैं. मान्यता है कि इन वस्तुओं को चढ़ाने से देवता वनशीरा खुश होते हैं. वनशीरा चिम्मू और देवदार के पेड़ में वास करते हैं. भूतों के भगाने के साथ ही साथ देवता जंगलों के रक्षक भी हैं.
वनों की रक्षा का जिम्मा ब्रह्मर्षि ने देवता वनशीरा को सौंपा है. दंत कथा के अनुसार जब पृथ्वी लोक से देवता धरती पर आए तो पर्वतों व जंगलों में तपस्या भक्ति व सिद्धि करने की बात आई तो सर्वप्रथम अठारह करडू ने देवता वनशीरा से अनुमति लेकर जंगलों व पर्वतों पर तपस्या की थी. इस देवता को भीम स्वरूप व हनुमान योद्धा से भी जाना जाता है.
अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में विराजमान हुए बनशीरा देवता के दर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. सन1972 से देवता कुल्लू दशहरा में आते हैं और पुराने स्टेट बैंक के पास कुल्लू दशहरा में विराजमान होते हैं और सात दिनों तक देव कार्यों को विधि विधान अनुसार निभाते हैं.