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एक ऐसे देव जिन्हें कहा जाता है 'राक्षसों' का थानेदार, चोरों-डकैतों को देते हैं दंड!

देव वनशीरा देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी के कनौन गांव में चांदी के सुंदर रथ में विराजमान हैं. यहां लोग मन्नत के तौर पर सैकड़ों टन लोहा व त्रिशूल चढ़ाते हैं.

देव वनशीरा कुल्लू
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Published : Oct 14, 2019, 12:40 PM IST

Updated : Oct 14, 2019, 7:28 PM IST

कुल्लू: देवभूमि कुल्लू के देवी-देवताओं की परंपरा अनूठी, अद्भुत है. घाटी में कई देवी-देवताओं का वास है. आज हम आपको वन के राजा के नाम से विख्यात वनशीरा देवता के इतिहास से रु-ब-रु करवा रहे हैं. इनकी पूजा-अर्चना देवभूमि कुल्लू के साथ-साथ प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी होती है.

यह देव वनशीरा देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी के कनौन गांव में चांदी के सुंदर रथ में विराजमान हैं. अगर कोई व्यक्ति बिना वजहसे किसी को प्रताड़ित करता है, चोरी-डकैती, जमीन जायदाद के झगड़े, झूठे आरोप लगाता है तो देवता बनशीरा ऐसे व्यक्तियों पर राक्षस प्रवृत्ति से पेश आते हैं. यदि ऐसी स्थिति में किसी ने अपना गुनाह कबूल किया तो उसे क्षमा भी कर देते हैं. ये भी माना जाता है कि लोगों को भूत-पिशाच से भी देवता अपनी शक्ति से मुक्ति दिलाते हैं.

देवता के कारदारों ने बताया कि वनशीरा देवता जंगलों का राजा है. देवता भूत-प्रेतों और बुरी आत्माओं का विनाश करता है. बुरी आत्माओं से प्रभावित लोगों को देवता ठीक करते हैं. क्षेत्र में कोई भी उत्सव या खुशी का मौका हो तो सबसे पहले बनशीरा देवता का मान किया जाता है.

वीडियो.

सैंज घाटी के कनौन की ऊंची चोटी पुखरी नाम की जगह पर देवता का मूल स्थान है. यहां लोग मन्नत के तौर पर सैकड़ों टन लोहा व त्रिशूल चढ़ाते हैं. मान्यता है कि इन वस्तुओं को चढ़ाने से देवता वनशीरा खुश होते हैं. वनशीरा चिम्मू और देवदार के पेड़ में वास करते हैं. भूतों के भगाने के साथ ही साथ देवता जंगलों के रक्षक भी हैं.

वनों की रक्षा का जिम्मा ब्रह्मर्षि ने देवता वनशीरा को सौंपा है. दंत कथा के अनुसार जब पृथ्वी लोक से देवता धरती पर आए तो पर्वतों व जंगलों में तपस्या भक्ति व सिद्धि करने की बात आई तो सर्वप्रथम अठारह करडू ने देवता वनशीरा से अनुमति लेकर जंगलों व पर्वतों पर तपस्या की थी. इस देवता को भीम स्वरूप व हनुमान योद्धा से भी जाना जाता है.

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में विराजमान हुए बनशीरा देवता के दर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. सन1972 से देवता कुल्लू दशहरा में आते हैं और पुराने स्टेट बैंक के पास कुल्लू दशहरा में विराजमान होते हैं और सात दिनों तक देव कार्यों को विधि विधान अनुसार निभाते हैं.

कुल्लू: देवभूमि कुल्लू के देवी-देवताओं की परंपरा अनूठी, अद्भुत है. घाटी में कई देवी-देवताओं का वास है. आज हम आपको वन के राजा के नाम से विख्यात वनशीरा देवता के इतिहास से रु-ब-रु करवा रहे हैं. इनकी पूजा-अर्चना देवभूमि कुल्लू के साथ-साथ प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी होती है.

यह देव वनशीरा देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी के कनौन गांव में चांदी के सुंदर रथ में विराजमान हैं. अगर कोई व्यक्ति बिना वजहसे किसी को प्रताड़ित करता है, चोरी-डकैती, जमीन जायदाद के झगड़े, झूठे आरोप लगाता है तो देवता बनशीरा ऐसे व्यक्तियों पर राक्षस प्रवृत्ति से पेश आते हैं. यदि ऐसी स्थिति में किसी ने अपना गुनाह कबूल किया तो उसे क्षमा भी कर देते हैं. ये भी माना जाता है कि लोगों को भूत-पिशाच से भी देवता अपनी शक्ति से मुक्ति दिलाते हैं.

देवता के कारदारों ने बताया कि वनशीरा देवता जंगलों का राजा है. देवता भूत-प्रेतों और बुरी आत्माओं का विनाश करता है. बुरी आत्माओं से प्रभावित लोगों को देवता ठीक करते हैं. क्षेत्र में कोई भी उत्सव या खुशी का मौका हो तो सबसे पहले बनशीरा देवता का मान किया जाता है.

वीडियो.

सैंज घाटी के कनौन की ऊंची चोटी पुखरी नाम की जगह पर देवता का मूल स्थान है. यहां लोग मन्नत के तौर पर सैकड़ों टन लोहा व त्रिशूल चढ़ाते हैं. मान्यता है कि इन वस्तुओं को चढ़ाने से देवता वनशीरा खुश होते हैं. वनशीरा चिम्मू और देवदार के पेड़ में वास करते हैं. भूतों के भगाने के साथ ही साथ देवता जंगलों के रक्षक भी हैं.

वनों की रक्षा का जिम्मा ब्रह्मर्षि ने देवता वनशीरा को सौंपा है. दंत कथा के अनुसार जब पृथ्वी लोक से देवता धरती पर आए तो पर्वतों व जंगलों में तपस्या भक्ति व सिद्धि करने की बात आई तो सर्वप्रथम अठारह करडू ने देवता वनशीरा से अनुमति लेकर जंगलों व पर्वतों पर तपस्या की थी. इस देवता को भीम स्वरूप व हनुमान योद्धा से भी जाना जाता है.

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में विराजमान हुए बनशीरा देवता के दर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. सन1972 से देवता कुल्लू दशहरा में आते हैं और पुराने स्टेट बैंक के पास कुल्लू दशहरा में विराजमान होते हैं और सात दिनों तक देव कार्यों को विधि विधान अनुसार निभाते हैं.

Intro:एक ऐसा देव जिसे कहा जाता है भूतों का थानेदार
देवता बनशिरा है जंगलों के राजाBody:
Kullu
देवभूमि कुल्लू के देवी-देवताओं की परंपरा अनूठी, अद्भुत और विभिन्न है। देवी-देवताओं के अलग-अलग रूप हैं। देवी माताओं का कहीं काली रूप कहीं कन्या रूप है। देवताओं के भी अलग-अलग रूप हैं। भूत-प्रेतों का खात्मा करने वाले अधिकतर कई देवी-देवता हैं। कई छोटे देवता के वनों के राजा के नाम से जाने जाते हैं। यहां वन के राजा के नाम से विख्यात बनशीरा देवता के इतिहास पर चर्चा कर रहे हैं, जिनकी पूजा-अर्चना देवभूमि कुल्लू के साथ- प्रदेश में कई जगह पर होती है। यह देवता देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी के गांव कनौन में चांदी के सुंदर रथ में विराजमान है। देवता की खासियत है कि किसी को बिना व जह प्रताडि़त करना, चोरी करना, जमीन जायदाद के झगड़े, झूठे आरोप लगाता है तो देवता बनशीरा ऐसे व्यक्तियों पर राक्षस प्रवृत्ति से पेश आता है। यदि ऐसी स्थिति में किसी ने अपना गुनाह कबूल किया तो उसे क्षमा करते हैं। भूत-पिशाच से प्रभावित महिला-पुरुष को देव शक्ति से इलाज कर स्वस्थ करते हैं। दशहरे में इनकी पूजा-अर्चना हो रही है।
देवता के कारदार प्रेम सिंह, पुजारी करतार कौशल और गूर प्रीतम सिंह ने बताया कि वनशीरा देवता जंगलों का राजा है। देवता भूत-प्रेतों और बुरी आत्माओं का विनाश करता है। बुरी आत्माओं से प्रभावित कई लोगों देवता के दर पहुंचते हैं, जो ठीक हो जाते हैं। क्षेत्र में कोई भी कारज हो तो सबसे पहले बनशीरा देवता का मान किया जाता है।

सैंज घाटी के कनौन की ऊंची चोटी पुखरी नामक स्थान पर देवता का मूल स्थान है। यहां मन्नत के तौर पर चढ़ाया गया सैकड़ों टन लोहा व त्रिशूल इस बात का गवाह है कि चोरी, सच-झूठ और भूतप्रेत व बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए जनमानस देवता को पुराना लोहा, पुरानी बंदूकें, त्रिशूल चढ़ाते हैं। मान्यता है कि उक्त वस्तुओं को चढ़ाने से देवता बनशीरा खुश होते हैं। देवता चिम्मू और देवदार के पेड़ में वास करते हैं। भूतों के भगाने के साथ ही साथ देवता जंगलों के रक्षक भी हैं।

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में विराजमान हुए बनशीरा देवता के दर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। भूत-प्रेत, पशाच व अन्य बुरी शक्तियों का देव शक्ति से खात्मा किया जा रहा है। सन 1972 से देवता कुल्लू दशहरा में आते हैं और कुल्लू में पुराने स्टेट बैंक के समीप कुल्लू दशहरा में बैठते हैं और सात दिनों तक देव कार्यों को विधि विधान अनुसार निभाते हैं।

Conclusion:वनों की रक्षा का जिम्मा ब्रह्मर्षि ने देवता बनशीरा को सौंपा है। दंत कथा के अनुसार जब पृथ्वी लोक से देवता धरती पर आए तो पर्वतों व जंगलों में तपस्या भक्ति व सिद्धि क रने की बात आई तो सर्वप्रथम अठारह करडू ने देवता बनशीरा से अनुमति लेकर जंगलों व पर्वतों पर तपस्या की थी। इस देवता को भीम स्वरूप व हनुमान योद्धा से भी जाना जाता है।
Last Updated : Oct 14, 2019, 7:28 PM IST
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