हमीरपुर: प्रदेश के ज्यादातर लोग कृषि करके ही अपना और परिवार का भरण-पोषण करते हैं और हजारों रुपये खर्च कर खेतों में फसलों की बिजाई करते हैं. इस बार भी किसानों ने हजारों रुपये के बीज व खाद डालकर गेहूं की फसल को लगाया, लेकिन गेहूं की फसल पर पीला रतुआ ने अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया है.
कृषि विभाग के विशेषज्ञों की माने तो पीला रतुआ पहाड़ों के तराई क्षेत्र में पाया जाता है, लेकिन पिछले कुछ सालों में ये मैदानी क्षेत्रों में भी पाया जाने लगा है. मैदानी क्षेत्रों में गेहूं की फसल को ज्यादा प्रभावित करता है. जनवरी और फरवरी में गेहूं की फसल को पीला रतुआ रोग लगने की अधिक संभावनाएं रहती है.
रतुआ रोग में फफूंदी फसल की पत्तियों पर लग जाती है, जो कि बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को भी ग्रसित करती है. गेहूं के पत्ते पीला होना ही पीला रतुआ रोग नहीं है, इसके कई कारण हो सकते हैं. पीला रतुआ रोग में गेहूं के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है इससे छूने पर हाथ पीला हो जाता है.
हिमाचल के निचले और गर्म क्षेत्रों में ये रोग अधिक पाया जाता है. तापमान में वृद्धि के चलते गेहूं के रोग में इजाफा होता रहता है. फसल के इस रोग की चपेट में आने से कोई पैदावार नहीं होती है. रतुआ रोग के लक्षण अक्सर ठंडे और नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं.
किसानों ने बताया कि पहले बेसहारा पशुओं ने उनकी गेहूं की फसल को बर्बाद किया अब रतुआ रोग से उनकी फसल पीली पड़ना शुरू हो गई है. जिससे उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि इस रोग से निपटने के लिए कृषि विभाग द्वारा खेतों में मुफ्त कीटनाशक का छिड़काव किया जाए.
कृषि उप निदेशक कुलदीप वर्मा ने बताया कि कुछ क्षेत्रों में पीला रतुआ को रोकने के लिए दवाइयों का छिड़काव किया जा रहा है. साथ ही किसानों को भी पीला रतुआ से बचाव की जानकारी भी दी जा रही है.
बता दें कि प्रदेश के ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर में गेहूं की फसल पर पीले रतुआ रोग ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है. जिससे किसानों की सैंकड़ों कनाल भूमि पर बिजी गई गेहूं की फसल बर्बादी होने की कगार पर पहुंच गई है.