हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में पथरीली पक्की चट्टानों पर बनाई गई खातरियां (चट्टान के नीचे बने कुएं) को जल का मुख्य स्रोत माना जाता है. हमीरपुर और मंडी जिले में इस तरह के खातरियों का निर्माण अब मनरेगा के माध्यम से भी किया जाने लगा है. सदियों से जल संरक्षण के लिए चली आ रही इस परंपरा को अब मनरेगा के जरिए जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है. हमीरपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में इनका अधिक प्रचलन आज भी देखने को मिलता है. लोगों ने घरों के करीब और गांव में इनका निर्माण जारी रखा है. सार्वजनिक स्थानों पर भी अक्सर इन खातरियों को देखा जा सकता है. सड़कों के किनारे या चौराहों पर ही इनका निर्माण किया जाता है, ताकि आम राहगीर अपनी प्यास बुझा सकें. हालांकि, पेयजल योजनाओं के अस्तित्व में आने से इनकी जरूरत कम हुई है, लेकिन इनका महत्व कम नहीं हुआ है.
बरसात के पानी के संरक्षण का यह अनूठा उदाहरण है और इसके बलबूते ही साल भर लोगों की प्यास बुझती है. सदियों पहले ही इसे हिमाचल में अपनाया गया था. आज भी लोग इसको अपना रहे हैं, जिसके माध्यम से चट्टान में प्राकृतिक रूप से बरसात के पानी का संरक्षण किया जाता है. प्राकृतिक रूप से ही चट्टान के नीचे बनाई गए खातरीनुमा कुएं में चट्टान के भीतर से ही पानी रिस कर एकत्र होता है. जिस कारण यह पानी पीने के लिए भी शुद्ध माना जाता है. गर्मियों में यहां पानी इतना ठंडा होता है मानो फ्रिज का पानी हो.
कालेअंब पंचायत की दूसरी बार प्रधान बनी निर्मला डोगरा का कहना है कि उनके पंचायत में 5 वार्ड हैं. हर वार्ड में खातरियों का निर्माण किया गया है. इन पर करीब 10 लाख खर्च किये गए हैं. एक खातरी के निर्माण पर लगभग 47 से 50,000 तक खर्च आ रहा है. जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए बरसात के पानी को एकत्र करने के लिए टैंकों का निर्माण भी किया गया है. इस पर पंचायत में लाखों रुपए खर्च किए गए हैं, ताकि लोग बरसात के पानी के संरक्षण से अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें और इससे अपनी कमाई का जरिया भी बना सकें.
स्थानीय निवासी आरसी डोगरा का कहना है कि जल संरक्षण का यह तरीका बेहद पुराना है, सदियों से यह परंपरा चलती आ रही है. उन्होंने कहा कि हमीरपुर जिले के बमसन इलाके में अधिकतर पक्के कंगर यानी पक्की चट्टानों पर इसका निर्माण किया जाता है. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में भी यह बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं, हालांकि पेयजल योजनाओं के निर्माण के बाद इनका इस्तेमाल कम हुआ. हालांकि, पूर्व में भी प्रदेश सरकार द्वारा इनके निर्माण को लेकर कार्य किया गया है.
कालेअंब पंचायत के उप प्रधान संतोष राणा का कहना है कि बुजुर्गों के समय से ही इनका निर्माण किया जा रहा है. पहले तो इनसे ही पानी की जरूरत को पूरा किया जाता था. पूर्व में पशुओं के लिए अलग और परिवार की जरूरत के लिए इनका निर्माण अलग-अलग किया जाता था, लेकिन पेयजल योजनाओं के निर्माण के बाद इनका इस्तेमाल कुछ हद तक कम हुआ है. हर घर में इनका निर्माण किया जाता था. बीच में लोगों ने इनका इस्तेमाल बंद कर दिया, लेकिन वर्तमान समय में एक बार फिर अब इनका निर्माण किया जा रहा है. सरकार भी इस पर ध्यान दे रही है और और लोग भी अब इस तरफ लौटने लगे हैं.