पालमपुरः हिमालय के सतत विकास को हिमालय के पारिस्थिकीय तंत्र के अनुरुप करने के लिए साल 2010 में उत्तराखंड में पर्यावरणविदों के एक समूह की ओर से पहल की गई थी. तब से इस दिन को ‘हिमालय दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है. बुधवार को सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर में ‘हिमालय दिवस’ का आयोजन किया गया. यह सभी हिमालयी राज्यों के लिए महत्वपूर्ण है.
इस दौरान प्रो. माथुर ने हिमालय की पारिस्थितिकी और वनों को हो रहे नुकसान के बारे में चर्चा की. उन्होंने इस नुकसान के मुख्य कारण गैर योजनाबद्ध विकास, जल विद्युत परियोजनाएं और राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण को बताया. उन्होंने बताया कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान का मानव, पौधों, पशुओं और पर्यावरण पर काफी प्रभाव पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ, सर्दियों में तापमान वृद्धि के कारण हिमालय क्षेत्र के 10000 पौधों में से 30 प्रतिशत संकटापन्न स्थिति में आ गए है. हिमालय क्षेत्र में वैश्विक औसत से अधिक तापमान के कारण ग्लेश्यिर विलुप्त हो रहे हैं. इस घटनाक्रम और पर्यावरण क्षरण को नियंत्रित करने के लिए जैवविविधता संरक्षण के महत्व पर जोर दिया.
वहीं, इससे पहले संस्थान के निदेशक डॉ. संजय कुमार ने अपने स्वागत संबोधन में सभी को हिमालय दिवस की शुभकामनाएं देते हुए संस्थान द्वारा हिमालयी जैवसंपदा के संरक्षण की दिशा में किए जा रहे कार्यां के बारे में प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि सीएसआईआर-आईएचबीटी नीति आयोग द्वारा अनुमोदित ‘भारतीय हिमालयन सेंट्रल यूनिवर्सिटीज कंसोर्टियम’ का सदस्य नामित किया है.
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