धर्मशाला: कांगड़ा जिले के मशहूर टूरिस्ट स्पॉट मैकलोडगंज शहर में 160 साल पुरानी नोवरोजी एंड सन्स जनरल मर्चेंट शॉप बंद होने जा रही है. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के निवास से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये दुकान अगले महीने से बंद हो जाएगी.
इस दुकान को एक पारसी परिवार चलाता है. दुकान से काफी लोगों की यादें जुड़ी हुई हैं, ऐसे में दुकान के बंद होने से इससे भावनात्मक रूप से जुड़े लोग काफी दुखी हैं. मैक्लोडगंज में ही फैमिली रेस्टोरेंट चलाने वाले कुलप्रकाश शर्मा उर्फ पिंटू कहते हैं कि मिस्टर नोवरोजी और मिसेज नोवरोजी के साथ उनके परिवार के काफी अच्छे संबंध थे.
कुलप्रकाश कहते हैं कि उन्हें इस बात का बहुत दुख हो रहा है कि ये दुकान अब बंद हो रही है, क्योंकि ये हमारी जिंदगी से जुड़ा हुआ एक अहम हिस्सा है. इस दुकान के साथ हमारी बचपन की काफी ज्यादा यादें हैं. अब ये जा रहा है, आने वाले समय में ये नजर नहीं आएगा.
उन्होंने कहा कि अगर इसे हैरिटेज बिल्डिंग बनाकर सुरक्षित किया जा सके तो मैक्लोडगंज की जो शान है वो बरकरार रहेगी. नहीं तो कुछ समय बाद यहां कंक्रीट की एक नई बिल्डिंग बन जाएगी और उसका कोई महत्व नहीं रहेगा.
तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का भी इस दुकान के साथ भावनात्मक जुड़ाव है. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा जिस वक्त तिब्बत छोड़कर निर्वासन में आए तो मैक्लोडगंज पहुंचने पर सबसे पहले उनकी अगवानी इसी दुकान से ताल्लुक रखने वाले नौजेर नोवरोजी ने ही की थी. नौजेर नोवरोजी 2002 में इंतकाल से 60 सालों से दलाई लामा के दोस्त थे.
बकौल कुलप्रकाश, धर्मगुरु दलाई लामा और नौजेर नोवरोजी के बीच काफी अच्छी दोस्ती थी. जब कभी भी दलाई लामा नोवरोजी को कहीं देखते थे तो अपनी गाड़ी रोक कर जरूर उनसे बात करते थे, लेकिन उनकी दोस्ती से और कई ऐतिहासिक किस्सों की गवाब ये दुकान अब बंद होने वाली है.
यह दुकान की नोवरोजी परिवार ने 1860 में बनाई थी. नोवरोजी परिवार की छह पीढ़ियों ने ये दुकान चलाई है. नौजेर नोवरोजी और उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद अब उनके बेटों ने इस दुकान को बेचने का निर्णय लिया है. नौजेर नोवरोजी के दो बेटे हैं जिनमें से छोटे बेटे परवेज नोवरोजी गुरुग्राम में रहते हैं और बड़े बेटे कुरुष नोवरोजी पश्चिम बंगाल में एक चाय का व्यवसाय करते हैं.
तिब्बती शरणार्थी छिलो जेम्पा कहते हैं कि इस दुकान के बंद होने से वह काफी दुखी है, हम बचपन से इसे देखते आ रहे हैं. इसी दुकान से हम टॉफी और चॉकलेट खरीदते थे. निर्वासित तिब्बतियों के साथ भी इस दुकान का एक विशेष जुड़ाव है. दुकान के बंद होने से एक युग का अंत हो रहा है.
उन्होंने कहा कि यह स्टोर कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह है. धर्मशाला और मैकलोडगंज शहर और मेरे लिए यह दुखद क्षण है. लोग भावनात्मक रूप से स्टोर से जुड़े थे. लेकिन बदलाव प्रकृति का नियम है और दुनिया इसी बदलाव पर टिकी है.
इस ऐतिहासिक दुकान के बंद या फिर यूं कहें कि एक युग का अंत मैक्लोडगंज के लोगों के लिए काफी दुखद क्षण है. फिलहाल इस दुकान में रखे सामान को हटाया जा रहा है. मौजूदा समय में दुकान में अखबारों, पत्रिकाओं और कन्फेक्शनरी रखी गई है. इसके अलावा एक बीते युग की यांदे भी यहां संजोई गई हैं.
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