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केरल HC ने एक और दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति दी

केरल उच्च न्यायालय (kerala high court) दुष्कर्म की एक और नाबालिग पीड़िता की मदद के लिए आगे आया. कोर्ट ने उसे गर्भपात कराने की अनुमति दे दी. उच्च न्यायालय ने पिछले एक हफ्ते में ऐसा तीसरा आदेश दिया है.

केरल उच्च न्यायालय
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Published : Sep 23, 2021, 5:03 PM IST

कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय बुधवार को दुष्कर्म की एक और नाबालिग पीड़िता की मदद के लिए आगे आया और उसे गर्भपात कराने की अनुमति दे दी. उच्च न्यायालय द्वारा पिछले एक हफ्ते में दिया गया यह ऐसा तीसरा आदेश है.

ऐसा पहला आदेश 14 सितंबर को पारित किया गया था. पहले के दोनों मामलों में पीड़िताएं 26 हफ्तों से ज्यादा की गर्भवती थीं और चिकित्सा बोर्ड की अनुशंसा के आधार पर गर्भपात की अनुमति दी गई.

मौजूदा मामले में 16 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता आठ हफ्तों की गर्भवती है और उसे अदालत का रुख इसलिए करना पड़ा क्योंकि निजी अस्पताल ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया था.

सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि मौजूदा मामले में अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट' के तहत 12 हफ्तों से कम गर्भ का समापन चिकित्सक कर सकता है अगर उसकी यह राय है कि गर्भावस्था जारी रखने से पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा.

इसके बाद उच्च न्यायालय ने लड़की के पिता को गर्भपात के लिए आदेश की एक प्रति के साथ सरकारी अस्पताल जाने का निर्देश दिया और याचिका का निस्तारण कर दिया.

केरल में बढ़ रहे ऐसे मामले
केरल में चिकित्सकीय रूप से गर्भपात कराने की अपील लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाली नाबालिग बलात्कार पीड़िताओं की संख्या में वृद्धि हुई है. सितंबर में ही उच्च न्यायालय में तीन ऐसे मामले सामने आए हैं. हालांकि इनमें से दो मामलों में मेडिकल बोर्ड का विचार था कि गर्भावस्था जारी रखने से नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा.

बोर्ड ने दोनों मामलों में यह भी कहा कि भ्रूण इस प्रक्रिया से बच सकता है, जिससे अदालत ने अस्पताल के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बच्चे का जीवन सुरक्षित रहे. अदालत ने अस्पताल को दोनों मामलों में डीएनए मैपिंग सहित आवश्यक चिकित्सा परीक्षण करने के लिए भ्रूण के रक्त और ऊतक के नमूनों को संरक्षित करने का भी निर्देश दिया था. इससे पहले उच्च न्यायालय ने जुलाई में एक अन्य मामले में गर्भपात की अनुमति दी थी, जहां दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग थी और मानसिक रूप से दिव्यांग भी थी.

नौ महीने में सात मामलों में दी कोर्ट ने राहत
पिछले साल मई और जनवरी 2021 के बीच, उच्च न्यायालय ने सात नाबालिग लड़कियों को ऐसी ही राहत दी थी, जिनका कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अलग-अलग मामलों में यौन उत्पीड़न किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वे गर्भवती हो गईं. इन पीड़िताओं की माताओं की याचिका पर अदालत ने उन्हें राहत दी थी और एक मेडिकल बोर्ड ने सिफारिश की थी कि गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है.

पढ़ें- केरल: हाई कोर्ट ने 26 सप्ताह की नाबालिग गर्भवती को दी गर्भपात की इजाजत

पढ़ें- गर्भ में पल रहे 25 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की मिली अनुमति, दोनों किडनी नहीं विकसित

(पीटीआई-भाषा)

कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय बुधवार को दुष्कर्म की एक और नाबालिग पीड़िता की मदद के लिए आगे आया और उसे गर्भपात कराने की अनुमति दे दी. उच्च न्यायालय द्वारा पिछले एक हफ्ते में दिया गया यह ऐसा तीसरा आदेश है.

ऐसा पहला आदेश 14 सितंबर को पारित किया गया था. पहले के दोनों मामलों में पीड़िताएं 26 हफ्तों से ज्यादा की गर्भवती थीं और चिकित्सा बोर्ड की अनुशंसा के आधार पर गर्भपात की अनुमति दी गई.

मौजूदा मामले में 16 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता आठ हफ्तों की गर्भवती है और उसे अदालत का रुख इसलिए करना पड़ा क्योंकि निजी अस्पताल ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया था.

सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि मौजूदा मामले में अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट' के तहत 12 हफ्तों से कम गर्भ का समापन चिकित्सक कर सकता है अगर उसकी यह राय है कि गर्भावस्था जारी रखने से पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा.

इसके बाद उच्च न्यायालय ने लड़की के पिता को गर्भपात के लिए आदेश की एक प्रति के साथ सरकारी अस्पताल जाने का निर्देश दिया और याचिका का निस्तारण कर दिया.

केरल में बढ़ रहे ऐसे मामले
केरल में चिकित्सकीय रूप से गर्भपात कराने की अपील लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाली नाबालिग बलात्कार पीड़िताओं की संख्या में वृद्धि हुई है. सितंबर में ही उच्च न्यायालय में तीन ऐसे मामले सामने आए हैं. हालांकि इनमें से दो मामलों में मेडिकल बोर्ड का विचार था कि गर्भावस्था जारी रखने से नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा.

बोर्ड ने दोनों मामलों में यह भी कहा कि भ्रूण इस प्रक्रिया से बच सकता है, जिससे अदालत ने अस्पताल के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बच्चे का जीवन सुरक्षित रहे. अदालत ने अस्पताल को दोनों मामलों में डीएनए मैपिंग सहित आवश्यक चिकित्सा परीक्षण करने के लिए भ्रूण के रक्त और ऊतक के नमूनों को संरक्षित करने का भी निर्देश दिया था. इससे पहले उच्च न्यायालय ने जुलाई में एक अन्य मामले में गर्भपात की अनुमति दी थी, जहां दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग थी और मानसिक रूप से दिव्यांग भी थी.

नौ महीने में सात मामलों में दी कोर्ट ने राहत
पिछले साल मई और जनवरी 2021 के बीच, उच्च न्यायालय ने सात नाबालिग लड़कियों को ऐसी ही राहत दी थी, जिनका कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अलग-अलग मामलों में यौन उत्पीड़न किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वे गर्भवती हो गईं. इन पीड़िताओं की माताओं की याचिका पर अदालत ने उन्हें राहत दी थी और एक मेडिकल बोर्ड ने सिफारिश की थी कि गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है.

पढ़ें- केरल: हाई कोर्ट ने 26 सप्ताह की नाबालिग गर्भवती को दी गर्भपात की इजाजत

पढ़ें- गर्भ में पल रहे 25 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की मिली अनुमति, दोनों किडनी नहीं विकसित

(पीटीआई-भाषा)

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