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लॉकडाउन के चलते मजदूरी करने को विवश साहित्य अकादमी विजेता शिक्षक - फेसाटी

महाराष्ट्र के सांगली जिले के रहने वाले नवनाथ गोरे को 2018 में साहित्य अकादमी युवा लेखक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. यह पुरस्कार भी ऐसे समय में किसी व्यक्ति को कैसे संत्वाना दे सकता है, जो महामारी की वजह से बुरी स्थिति में फंस गया हो. नौकरी जाने की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपने परिवार की रोजी-रोटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए गृह जिले में मजदूरी करने के लिए विवश है.

खेतों में मजदूरी करने को मजबूर साहित्य अकादमी विजेता
खेतों में मजदूरी करने को मजबूर साहित्य अकादमी विजेता
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Published : Sep 26, 2020, 2:37 PM IST

पुणे : महाराष्ट्र के सांगली जिले के रहने वाले नवनाथ गोरे मार्च तक अहमदनगर जिले के एक कॉलेज में प्रवक्ता (लेक्चरर) के पद पर कार्यरत थे, लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन की वजह से उनकी अनुबंध वाली नौकरी चली गई और वह अब खेतिहर मजदूर होकर रह गए हैं.

सांगली जिला स्थित जाट तहसील के एक छोटे से गांव निगड़ी के रहने वाले 32 वर्षीय गोरे को 2018 में साहित्य अकादमी युवा लेखक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, लेकिन यह पुरस्कार भी ऐसे समय में किसी व्यक्ति को कैसे संत्वाना दे सकता है, जो महामारी की वजह से बुरी स्थिति में फंस गया हो.

नौकरी जाने की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपने परिवार की रोजी-रोटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए गृह जिले में मजदूरी शुरू कर दी.

गोरे के पास कोल्हापुर जिले के शिवाजी विश्वविद्यालय से मराठी में परास्नातक की डिग्री है. उन्होंने परास्नातक की पढ़ाई के दौरान ही अपना पहला उपन्यास 'फेसाटी' लिखना शुरू किया था. यह किताब 2017 में प्रकाशित हुई और उन्हें अगले साल साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

गोरे ने कहा पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद मुझे अहमदनगर जिले के एक कॉलेज से नौकरी की पेशकश हुई और मैंने वहां घंटे के हिसाब से व्याख्याता के रूप में काम करना शुरू किया और इसके लिए मझे हर महीने 10,000 रुपये की राशि मिल जाती थी. उन्होंने कहा इस साल फरवरी में मेरे पिता का निधन हो गया और मेरी मां और 50 साल के दिव्यांग भाई की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई.पिता के निधन के बाद गोरे फरवरी में घर गए थे और कोविड-19 महमारी को रोकने के लिए मार्च अंत में लागू बंद की वजह से कॉलेज नहीं लौट सके. उन्होंने कहा मैं फरवरी में गांव आया था. मेरी नौकरी अनुबंध पर थी, इसलिए कॉलेज से होने वाली कमाई भी रुक गई. आय नहीं होने की वजह से जरूरतें पूरी करने में मुश्किलें आने लगीं और तब से मैंने छोटे-मोटे काम करने शुरू किए और क्षेत्र में खेतिहर किसान के रूप में भी काम करना शुरू कर दिया. गोरे काम की तलाश में क्षेत्र में काफी दूर निकल जाते हैं और वह बताते हैं कि अगर वह पूरा दिन काम करते हैं तो उन्हें 400 रुपये की राशि मिलती है.

गोरे कोल्हापुर के अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि परास्नातक की पढ़ाई करते हुए वह अपने परिवार को सहायता पहुंचाने के लिए एटीएम केंद्र पर गार्ड की नौकरी करते थे. गोरे की किताब 'फेसाटी' में एक ऐसे युवक की कहानी है, जो तमाम परेशानियों के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी करता है. इस किताब में किसानों की परेशानियों और उनकी स्थिति को दर्शाया गया है.

पढ़ें :किया था 'मी लाभार्थी' योजना का विज्ञापन, खुद फसल के नुकसान से परेशान

इसी बीच गोरे की स्थिति को देखकर महाराष्ट्र के मंत्री विश्वजीत कदम ने कहा कि उन्होंने गोरे को पुणे स्थित शैक्षणिक संस्थाओं के समूह में नौकरी की पेशकश की है. कदम भारती विद्यापीठ के प्रबंधन से जुड़े हैं. मंत्री ने कहा कि उन्होंने गोरे से बात की है और उन्हें आश्वस्त किया है कि उन्हें एक ऐसा माहौल भी प्रदान किया जाएगा, जहां उनकी साहित्यिक प्रतिभा को बढ़ावा मिल सके.

पुणे : महाराष्ट्र के सांगली जिले के रहने वाले नवनाथ गोरे मार्च तक अहमदनगर जिले के एक कॉलेज में प्रवक्ता (लेक्चरर) के पद पर कार्यरत थे, लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन की वजह से उनकी अनुबंध वाली नौकरी चली गई और वह अब खेतिहर मजदूर होकर रह गए हैं.

सांगली जिला स्थित जाट तहसील के एक छोटे से गांव निगड़ी के रहने वाले 32 वर्षीय गोरे को 2018 में साहित्य अकादमी युवा लेखक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, लेकिन यह पुरस्कार भी ऐसे समय में किसी व्यक्ति को कैसे संत्वाना दे सकता है, जो महामारी की वजह से बुरी स्थिति में फंस गया हो.

नौकरी जाने की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपने परिवार की रोजी-रोटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए गृह जिले में मजदूरी शुरू कर दी.

गोरे के पास कोल्हापुर जिले के शिवाजी विश्वविद्यालय से मराठी में परास्नातक की डिग्री है. उन्होंने परास्नातक की पढ़ाई के दौरान ही अपना पहला उपन्यास 'फेसाटी' लिखना शुरू किया था. यह किताब 2017 में प्रकाशित हुई और उन्हें अगले साल साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

गोरे ने कहा पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद मुझे अहमदनगर जिले के एक कॉलेज से नौकरी की पेशकश हुई और मैंने वहां घंटे के हिसाब से व्याख्याता के रूप में काम करना शुरू किया और इसके लिए मझे हर महीने 10,000 रुपये की राशि मिल जाती थी. उन्होंने कहा इस साल फरवरी में मेरे पिता का निधन हो गया और मेरी मां और 50 साल के दिव्यांग भाई की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई.पिता के निधन के बाद गोरे फरवरी में घर गए थे और कोविड-19 महमारी को रोकने के लिए मार्च अंत में लागू बंद की वजह से कॉलेज नहीं लौट सके. उन्होंने कहा मैं फरवरी में गांव आया था. मेरी नौकरी अनुबंध पर थी, इसलिए कॉलेज से होने वाली कमाई भी रुक गई. आय नहीं होने की वजह से जरूरतें पूरी करने में मुश्किलें आने लगीं और तब से मैंने छोटे-मोटे काम करने शुरू किए और क्षेत्र में खेतिहर किसान के रूप में भी काम करना शुरू कर दिया. गोरे काम की तलाश में क्षेत्र में काफी दूर निकल जाते हैं और वह बताते हैं कि अगर वह पूरा दिन काम करते हैं तो उन्हें 400 रुपये की राशि मिलती है.

गोरे कोल्हापुर के अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि परास्नातक की पढ़ाई करते हुए वह अपने परिवार को सहायता पहुंचाने के लिए एटीएम केंद्र पर गार्ड की नौकरी करते थे. गोरे की किताब 'फेसाटी' में एक ऐसे युवक की कहानी है, जो तमाम परेशानियों के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी करता है. इस किताब में किसानों की परेशानियों और उनकी स्थिति को दर्शाया गया है.

पढ़ें :किया था 'मी लाभार्थी' योजना का विज्ञापन, खुद फसल के नुकसान से परेशान

इसी बीच गोरे की स्थिति को देखकर महाराष्ट्र के मंत्री विश्वजीत कदम ने कहा कि उन्होंने गोरे को पुणे स्थित शैक्षणिक संस्थाओं के समूह में नौकरी की पेशकश की है. कदम भारती विद्यापीठ के प्रबंधन से जुड़े हैं. मंत्री ने कहा कि उन्होंने गोरे से बात की है और उन्हें आश्वस्त किया है कि उन्हें एक ऐसा माहौल भी प्रदान किया जाएगा, जहां उनकी साहित्यिक प्रतिभा को बढ़ावा मिल सके.

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