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पवार और हुड्डा ने साबित कर दी अपनी शूरवीरता ! - undefined

एनसीपी प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा आज अपने-अपने राज्यों में सबसे अहम हस्तियां हैं. हालांकि, उनकी पार्टियां सरकार बनाने सफल नहीं रही हैं. लेकिन उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. आइए एक नजर डालते हैं इनके उदय का क्या महत्व है.

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Published : Oct 30, 2019, 1:43 PM IST

Updated : Oct 30, 2019, 2:37 PM IST

भले ही कांग्रेस और एनसीपी सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्या नहीं जुटा सके हों, लेकिन एनसीपी प्रमुख शरद पवार (78) और कांग्रेस के पुराने योद्धा भूपिंदर सिंह हुड्डा (72) ने अपनी-अपनी ताकत का एहसास अवश्य करा दिया है. वे, मौजूदा हाल में, अपने-अपने राज्य में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं.

इस चुनाव में पवार युग को अंत करने की भाजपा की विनाशकारी योजना को विफल करते हुए महाराष्ट्र में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने 56 सीटों पर जीत हासिल की, और 15 सीटों पर अपनी बढ़त बना ली. अपनी पार्टी के प्रभावशाली प्रदर्शन के तुरंत बाद, पवार ने कहा, 'लोग सत्ता के अहंकार को नापसंद करते हैं'. पवार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनाव प्रचार के दौरान दिए बयान पर जवाब दे रहे थे जिसमें शाह ने कहा था, 'अगर हम अपना दरवाजा खोलते हैं, तो पवार को छोड़कर सभी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता भाजपा में शामिल हो जायेंगे.'

चुनाव से ठीक पहले बीजेपी-शिवसेना में जाने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताओं पर निशाना साधते हुए पवार ने कहा, 'लोग दलबदलुओं को भी नापसंद करते हैं.' उल्लेखनीय है कि, ऐसे कई दलबदलू नेता जो पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा स्थित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गढ़ों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों से हार गए हैं.'

उल्लेखनीय रूप से, पवार ने महाराष्ट्र में विपक्षी अभियान का नेतृत्व अकेले ही किया, क्योंकि कांग्रेस के नेता आपस में ही उलझे रहे और राज्य में मजबूत नेतृत्व की कमी देखी गई.

पूर्व मुख्यमंत्री ने सतारा में अपना भाषण तेज बारिश में भी जारी रखा तब भी जब उनकी सफेद कमीज बारिश में शराबोर हो गई. इसका विडियो सोशल मीडिया और मुख्य धारा की मीडिया में खूब वायरल हुआ.यह पूरे चुनाव अभियान की परिभाषित छवियों में से एक बन गया है. अपनी बढ़ती आयु और लगातार पार्टी को छोड़कर जाते साथियों को नजरअंदाज कर पवार अपना रास्ता बनाते रहे और रैलियों को संबोधित करते रहे. नतीजतन, वे अकेले सत्तारूढ़ भाजपा के निशाने पर आ गए.

इस अनुभवी राजनेता ने अपने खिलाफ किए गए व्यक्तिगत हमलों को अपने फायदे के लिए पलट दिया और कहा- 'महाराष्ट्र शिवाजी महाराज की भूमि है. यह दिल्ली के सामने कभी नहीं झुकेगा.' यह जानते हुए कि लोग स्तर से गिरे हुए हमलों को अस्वीकार करते हैं, जब मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें सत्तर वर्ष का बूढ़ा प्रचारक कहकर मजाक उड़ाया था. तो पवार ने राज्य के लोगों को इसका जवाब देने के लिए छोड़ दिया.

पवार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकरण के अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर राज्य के चुनाव में वोट बटोरने के भाजपा के प्रयासों का भी पूरा लाभ उठाया. 'इन मुद्दों की राज्य के चुनाव में बहुत कम प्रासंगिकता है जहां लोग बेरोजगारी और कृषि-संकट जैसे वास्तविक मुद्दों से अधिक चिंतित हैं.'

ये भी पढ़ें : दंड संहिता को पुनर्जीवित करने के लिए सुधार

उनके प्रयास व्यर्थ नहीं गए. उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पहली बार राज्य में वरिष्ठ गठबंधन सहयोगी के रूप में उभरी, जिससे कांग्रेस का दर्जा महाराष्ट्र में नंबर चार हो गया.

अपनी पार्टी के प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद, पवार ने प्रत्याशित रूप से, प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उन सभी बातों के लिए धन्यवाद दिया, जो उन सबने चुनाव प्रचार के दौरान उनके खिलाफ कहीं थीं.

पवार ने सतारा के अपने पूर्व पार्टी सांसद, उदयनराजे भोसले (शिवाजी महाराज के वंशज) जैसे दलबदलुओं पर भी हमला किया, जो संसदीय उपचुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार से हार गए हैं.

इसी तरह से हरियाणा में, कांग्रेस के पुराने योद्धा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस समय स्पष्ट रूप से सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं. राहुल गांधी के साथ गंभीर मतभेदों का सामना कर रहे थे और बेहद नाराज थे. सोनिया गांधी एक बार फिर से जब पार्टी की अध्यक्ष बन गईं तो हुड्डा ने पार्टी में अपनी दूसरी पारी बतौर कांग्रेस विधायक दल का नेता और चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख की जिम्मेदारियों के साथ शुरू की.

उन्होंने आधी जंग तब ही जीत ली थी जब हुड्डा ने राहुल गांधी द्वारा नियुक्त किये गये अशोक तंवर को राज्य कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटवा दिया. नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा के साथ अपने पहले के मतभेदों को दरकिनार करते हुए, हुड्डा ने राज्य में अपने पुराने संबंधों पर ध्यान दिया.

एक सदाबहार दोस्त की भूमिका में, हुड्डा हमेशा लंबे समय तक सहकर्मियों के साथ संपर्क में रहते हैं, चाहे वे कहीं भी हों. निजी बातचीत में, हुड्डा हमेशा कहते हैं 'कोई नहीं जानता है कि कब कौन काम आ सकता है', इसी विश्वास पर निर्भर होते हुए कांग्रेस जननायक जनता पार्टी का समर्थन हासिल करने की कोशिश की थी. हरियाणा में, हुड्डा के पुनरुत्थान में, कांग्रेस को एक नया जीवन मिला है.

यह घटनाक्रम अन्य राज्यों में राहुल गांधी के चहेते राजनेताओं के लिए शुभ सन्देश नहीं है. हुड्डा के नेतृत्व में भजपा को कड़ी टक्कर देने बाद, अन्य राज्यों में वरिष्ठ नेता – मध्यप्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत के समक्ष, राहुल गांधी के पसंदीदा ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट का कद घट जायेगा.

भले ही कांग्रेस और एनसीपी सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्या नहीं जुटा सके हों, लेकिन एनसीपी प्रमुख शरद पवार (78) और कांग्रेस के पुराने योद्धा भूपिंदर सिंह हुड्डा (72) ने अपनी-अपनी ताकत का एहसास अवश्य करा दिया है. वे, मौजूदा हाल में, अपने-अपने राज्य में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं.

इस चुनाव में पवार युग को अंत करने की भाजपा की विनाशकारी योजना को विफल करते हुए महाराष्ट्र में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने 56 सीटों पर जीत हासिल की, और 15 सीटों पर अपनी बढ़त बना ली. अपनी पार्टी के प्रभावशाली प्रदर्शन के तुरंत बाद, पवार ने कहा, 'लोग सत्ता के अहंकार को नापसंद करते हैं'. पवार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनाव प्रचार के दौरान दिए बयान पर जवाब दे रहे थे जिसमें शाह ने कहा था, 'अगर हम अपना दरवाजा खोलते हैं, तो पवार को छोड़कर सभी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता भाजपा में शामिल हो जायेंगे.'

चुनाव से ठीक पहले बीजेपी-शिवसेना में जाने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताओं पर निशाना साधते हुए पवार ने कहा, 'लोग दलबदलुओं को भी नापसंद करते हैं.' उल्लेखनीय है कि, ऐसे कई दलबदलू नेता जो पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा स्थित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गढ़ों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों से हार गए हैं.'

उल्लेखनीय रूप से, पवार ने महाराष्ट्र में विपक्षी अभियान का नेतृत्व अकेले ही किया, क्योंकि कांग्रेस के नेता आपस में ही उलझे रहे और राज्य में मजबूत नेतृत्व की कमी देखी गई.

पूर्व मुख्यमंत्री ने सतारा में अपना भाषण तेज बारिश में भी जारी रखा तब भी जब उनकी सफेद कमीज बारिश में शराबोर हो गई. इसका विडियो सोशल मीडिया और मुख्य धारा की मीडिया में खूब वायरल हुआ.यह पूरे चुनाव अभियान की परिभाषित छवियों में से एक बन गया है. अपनी बढ़ती आयु और लगातार पार्टी को छोड़कर जाते साथियों को नजरअंदाज कर पवार अपना रास्ता बनाते रहे और रैलियों को संबोधित करते रहे. नतीजतन, वे अकेले सत्तारूढ़ भाजपा के निशाने पर आ गए.

इस अनुभवी राजनेता ने अपने खिलाफ किए गए व्यक्तिगत हमलों को अपने फायदे के लिए पलट दिया और कहा- 'महाराष्ट्र शिवाजी महाराज की भूमि है. यह दिल्ली के सामने कभी नहीं झुकेगा.' यह जानते हुए कि लोग स्तर से गिरे हुए हमलों को अस्वीकार करते हैं, जब मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें सत्तर वर्ष का बूढ़ा प्रचारक कहकर मजाक उड़ाया था. तो पवार ने राज्य के लोगों को इसका जवाब देने के लिए छोड़ दिया.

पवार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकरण के अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर राज्य के चुनाव में वोट बटोरने के भाजपा के प्रयासों का भी पूरा लाभ उठाया. 'इन मुद्दों की राज्य के चुनाव में बहुत कम प्रासंगिकता है जहां लोग बेरोजगारी और कृषि-संकट जैसे वास्तविक मुद्दों से अधिक चिंतित हैं.'

ये भी पढ़ें : दंड संहिता को पुनर्जीवित करने के लिए सुधार

उनके प्रयास व्यर्थ नहीं गए. उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पहली बार राज्य में वरिष्ठ गठबंधन सहयोगी के रूप में उभरी, जिससे कांग्रेस का दर्जा महाराष्ट्र में नंबर चार हो गया.

अपनी पार्टी के प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद, पवार ने प्रत्याशित रूप से, प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उन सभी बातों के लिए धन्यवाद दिया, जो उन सबने चुनाव प्रचार के दौरान उनके खिलाफ कहीं थीं.

पवार ने सतारा के अपने पूर्व पार्टी सांसद, उदयनराजे भोसले (शिवाजी महाराज के वंशज) जैसे दलबदलुओं पर भी हमला किया, जो संसदीय उपचुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार से हार गए हैं.

इसी तरह से हरियाणा में, कांग्रेस के पुराने योद्धा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस समय स्पष्ट रूप से सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं. राहुल गांधी के साथ गंभीर मतभेदों का सामना कर रहे थे और बेहद नाराज थे. सोनिया गांधी एक बार फिर से जब पार्टी की अध्यक्ष बन गईं तो हुड्डा ने पार्टी में अपनी दूसरी पारी बतौर कांग्रेस विधायक दल का नेता और चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख की जिम्मेदारियों के साथ शुरू की.

उन्होंने आधी जंग तब ही जीत ली थी जब हुड्डा ने राहुल गांधी द्वारा नियुक्त किये गये अशोक तंवर को राज्य कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटवा दिया. नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा के साथ अपने पहले के मतभेदों को दरकिनार करते हुए, हुड्डा ने राज्य में अपने पुराने संबंधों पर ध्यान दिया.

एक सदाबहार दोस्त की भूमिका में, हुड्डा हमेशा लंबे समय तक सहकर्मियों के साथ संपर्क में रहते हैं, चाहे वे कहीं भी हों. निजी बातचीत में, हुड्डा हमेशा कहते हैं 'कोई नहीं जानता है कि कब कौन काम आ सकता है', इसी विश्वास पर निर्भर होते हुए कांग्रेस जननायक जनता पार्टी का समर्थन हासिल करने की कोशिश की थी. हरियाणा में, हुड्डा के पुनरुत्थान में, कांग्रेस को एक नया जीवन मिला है.

यह घटनाक्रम अन्य राज्यों में राहुल गांधी के चहेते राजनेताओं के लिए शुभ सन्देश नहीं है. हुड्डा के नेतृत्व में भजपा को कड़ी टक्कर देने बाद, अन्य राज्यों में वरिष्ठ नेता – मध्यप्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत के समक्ष, राहुल गांधी के पसंदीदा ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट का कद घट जायेगा.

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Last Updated : Oct 30, 2019, 2:37 PM IST

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