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सुरक्षा प्रणाली की खामियों के कारण ही होते हैं बड़े अग्निकांड

1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने के बाद, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई, हाल ही में दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में लगी भीषण आग ने सभी को दहला कर रख दिया. इतिहास में कई ऐसे भीषण अग्निकांड हुए, जिनसे पूरा देश दहल उठा. देश में हुए इन अग्निकांड से कुछ सबक लिया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में देश को इस समस्या से बचाया जा सके.

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भारत में आग का संकट
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Published : Dec 13, 2019, 4:35 PM IST

हमें बदकिस्मती पर आह भरकर रह जाने की आदत सी हो गई है. खासकर जब हम किसी हादसे में लोगों की जाने चली जाने की खबर सुनते हैं, लेकिन करीब से निरीक्षण करने पर प्रणालीगत खामियां उजागर होती हैं. उत्तरी दिल्ली के अनाज मंडी में एक अवैध बैग निर्माण कारखाने में भीषण आग्निकांड में 43 श्रमिकों की मौत हो गई. 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने के बाद, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी. यह दूसरा सबसे घातक अग्निकांड है.

अधिकारियों ने पुष्टि की कि इस अग्निकांड के पीछे शॉर्ट सर्किट कारण था. 600 गज़ क्षेत्र में निर्मित चार मंजिला कारखाने को न तो अग्निशमन विभाग की अनुमति प्राप्त थी और न ही सामान्य अग्निकांड से बचने की कोई तैयारी थी. हालांकि 150 अग्निशामकों और 30 दमकल गाड़ियों ने घंटों तक मशक्कत की और 63 लोगों की जान बचाई. भयानक आग की लपटों ने इस दौरान कई लोगों की जान ले ली. इस फरवरी में दिल्ली के करोल बाग स्थित एक होटल के 17 निवासियों की इसी तरह से आग लगने से मौत हो गई थी.

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दिल्ली में हुए भीषण अग्निकांड का ब्योरा

अग्निशमन विभाग प्राधिकरण की घटना के बाद 'सतर्क' हो गया था और 57 होटलों की अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) रद कर दी थी. एनओसी हो या एनओसी के बिना किसी को भी भारत में सुरक्षा और प्रशासन की वास्तविक स्थिति के बारे में भ्रम नहीं है. 144 शहर जिनकी आबादी एक लाख या उससे अधिक है, उनमें अग्नि निवारण प्रणाली निराशाजनक है. मुनाफा कमाने की होड़ में निर्माण करने वाले बिल्डरों के आगमन के बाद अग्नि सुरक्षा की कीमत पर घटिया इमारतों का निर्माण कर लोगों के जीवन को लगातार खतरे की ओर धकेला जा रहा है.

दिल्ली के उच्च न्यायालय ने आग से सुरक्षा के तरीकों की कमी का डैमोकल्स की तलवार के रूप में सही विवरण किया था. हालांकि नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारतीय राष्ट्रीय भवन कोड (एनबीसी) की शुरुआत की गई थी, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों ने इसे बेकार कर दिया. मई में एक इमारत में आग लगने से 22 छात्र झुलस गए थे. मुंबई के कमला मिल्स में दिसंबर 2017 में लगी आग में 14 मजदूर मारे गए थे.

अगस्त में नई दिल्ली स्थित एम्स की वायरोलॉजी यूनिट आग की चपेट में आ गया था. अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान, सिनेमा हॉल, उद्योग कोई भी आग की त्रासदी से नहीं बचे हैं. देशभर में आग की दुर्घटनाओं के कारण औसतन 60 लोगों की जान चली जाती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2010-14 के दौरान 1,12,000 अग्नि दुर्घटनाओं में 1,13,000 लोगों की जान गई थी, जबकि अनैतिकतापूर्ण शहरीकरण ने खतरों की बढ़ती संभावना को जगह दी है, लेकिन इसका मुकाबला करने के लिए कार्रवाई की कोई समान योजना नहीं है.

मज़बूत अग्नि सुरक्षा तंत्र वाले राष्ट्र सामूहिक अभ्यास कार्य यानी मॉक ड्रिल का आयोजन करके अपने नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा कर रहे हैं. 1995 में डबवाली आग त्रासदी में 445 लोगों की जान चली गई. 2004 में कुंभकोणम आग त्रासदी में 94 बच्चे मारे गए थे. इन हृदय विदारक दुर्घटनाओं की यादें अब भी ताज़ा है, लेकिन कई अग्नि आपदाओं के बाद भी सरकारों ने अग्नि सुरक्षा के प्रति अपने ढीले दृष्टिकोण को नहीं बदला है. भारतीय संविधान की बारहवीं अनुसूची के तहत अग्निशमन सेवाओं को शामिल किया गया है. अक्षम अधिकारियों और प्रबंधक निकाय जो सुरक्षा दिशानिर्देशों और आग सुरक्षा उपायों को लागू करने में विफल रहे, नागरिक सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं.

सरकारी भवन, राष्ट्रीय भवन संहिता का उल्लंघन करते हुए निजी निर्माणों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. 2014 में केंद्रीय सूचना आयोग ने संसद और सर्वोच्च न्यायालय की इमारतों में आग से सुरक्षा की कमियों को उजागर किया था. एनबीसी लागू करने के विषय में आरटीआई आवेदन के जवाब में सर्वोच्च न्यायलय ने जुलाई 2018 में नोटिस जारी किए थे. शीर्ष अदालत ने आग और जीवन सुरक्षा उपायों को लागू करने की कमी की ओर इशारा किया था. पूरी तरह से जांच के बाद ही निर्माण के लिए परमिट जारी किया जाना चाहिए. अग्निशमन विभाग को मजबूत किया जाना चाहिए और अग्नि सुरक्षा जागरूकता सत्र आयोजित किए जाने चाहिए. इन कदमों के तालमेल से देश को आग लगने से बचाया जा सकता है.

हमें बदकिस्मती पर आह भरकर रह जाने की आदत सी हो गई है. खासकर जब हम किसी हादसे में लोगों की जाने चली जाने की खबर सुनते हैं, लेकिन करीब से निरीक्षण करने पर प्रणालीगत खामियां उजागर होती हैं. उत्तरी दिल्ली के अनाज मंडी में एक अवैध बैग निर्माण कारखाने में भीषण आग्निकांड में 43 श्रमिकों की मौत हो गई. 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने के बाद, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी. यह दूसरा सबसे घातक अग्निकांड है.

अधिकारियों ने पुष्टि की कि इस अग्निकांड के पीछे शॉर्ट सर्किट कारण था. 600 गज़ क्षेत्र में निर्मित चार मंजिला कारखाने को न तो अग्निशमन विभाग की अनुमति प्राप्त थी और न ही सामान्य अग्निकांड से बचने की कोई तैयारी थी. हालांकि 150 अग्निशामकों और 30 दमकल गाड़ियों ने घंटों तक मशक्कत की और 63 लोगों की जान बचाई. भयानक आग की लपटों ने इस दौरान कई लोगों की जान ले ली. इस फरवरी में दिल्ली के करोल बाग स्थित एक होटल के 17 निवासियों की इसी तरह से आग लगने से मौत हो गई थी.

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दिल्ली में हुए भीषण अग्निकांड का ब्योरा

अग्निशमन विभाग प्राधिकरण की घटना के बाद 'सतर्क' हो गया था और 57 होटलों की अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) रद कर दी थी. एनओसी हो या एनओसी के बिना किसी को भी भारत में सुरक्षा और प्रशासन की वास्तविक स्थिति के बारे में भ्रम नहीं है. 144 शहर जिनकी आबादी एक लाख या उससे अधिक है, उनमें अग्नि निवारण प्रणाली निराशाजनक है. मुनाफा कमाने की होड़ में निर्माण करने वाले बिल्डरों के आगमन के बाद अग्नि सुरक्षा की कीमत पर घटिया इमारतों का निर्माण कर लोगों के जीवन को लगातार खतरे की ओर धकेला जा रहा है.

दिल्ली के उच्च न्यायालय ने आग से सुरक्षा के तरीकों की कमी का डैमोकल्स की तलवार के रूप में सही विवरण किया था. हालांकि नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारतीय राष्ट्रीय भवन कोड (एनबीसी) की शुरुआत की गई थी, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों ने इसे बेकार कर दिया. मई में एक इमारत में आग लगने से 22 छात्र झुलस गए थे. मुंबई के कमला मिल्स में दिसंबर 2017 में लगी आग में 14 मजदूर मारे गए थे.

अगस्त में नई दिल्ली स्थित एम्स की वायरोलॉजी यूनिट आग की चपेट में आ गया था. अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान, सिनेमा हॉल, उद्योग कोई भी आग की त्रासदी से नहीं बचे हैं. देशभर में आग की दुर्घटनाओं के कारण औसतन 60 लोगों की जान चली जाती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2010-14 के दौरान 1,12,000 अग्नि दुर्घटनाओं में 1,13,000 लोगों की जान गई थी, जबकि अनैतिकतापूर्ण शहरीकरण ने खतरों की बढ़ती संभावना को जगह दी है, लेकिन इसका मुकाबला करने के लिए कार्रवाई की कोई समान योजना नहीं है.

मज़बूत अग्नि सुरक्षा तंत्र वाले राष्ट्र सामूहिक अभ्यास कार्य यानी मॉक ड्रिल का आयोजन करके अपने नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा कर रहे हैं. 1995 में डबवाली आग त्रासदी में 445 लोगों की जान चली गई. 2004 में कुंभकोणम आग त्रासदी में 94 बच्चे मारे गए थे. इन हृदय विदारक दुर्घटनाओं की यादें अब भी ताज़ा है, लेकिन कई अग्नि आपदाओं के बाद भी सरकारों ने अग्नि सुरक्षा के प्रति अपने ढीले दृष्टिकोण को नहीं बदला है. भारतीय संविधान की बारहवीं अनुसूची के तहत अग्निशमन सेवाओं को शामिल किया गया है. अक्षम अधिकारियों और प्रबंधक निकाय जो सुरक्षा दिशानिर्देशों और आग सुरक्षा उपायों को लागू करने में विफल रहे, नागरिक सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं.

सरकारी भवन, राष्ट्रीय भवन संहिता का उल्लंघन करते हुए निजी निर्माणों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. 2014 में केंद्रीय सूचना आयोग ने संसद और सर्वोच्च न्यायालय की इमारतों में आग से सुरक्षा की कमियों को उजागर किया था. एनबीसी लागू करने के विषय में आरटीआई आवेदन के जवाब में सर्वोच्च न्यायलय ने जुलाई 2018 में नोटिस जारी किए थे. शीर्ष अदालत ने आग और जीवन सुरक्षा उपायों को लागू करने की कमी की ओर इशारा किया था. पूरी तरह से जांच के बाद ही निर्माण के लिए परमिट जारी किया जाना चाहिए. अग्निशमन विभाग को मजबूत किया जाना चाहिए और अग्नि सुरक्षा जागरूकता सत्र आयोजित किए जाने चाहिए. इन कदमों के तालमेल से देश को आग लगने से बचाया जा सकता है.

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क्या हम भारत के आग के संकट से बच सकते हैं?



हमें बदकिस्मती पर आह भरकर रह जाने की आदत सी हो गई है खासकर जब हम किसी हादसे में लोगों की जाने चली जाने की ख़बर सुनते हैं. लेकिन करीब से निरीक्षण करने पर, हम प्रणालीगत कमियाँ उजागर हो जाती हैं. उत्तरी दिल्ली के अनाज मंडी में एक अवैध बैग निर्माण कारखाने में भीषण आग दुर्घटना में 43 श्रमिकों की मौत हो गई. 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने के बाद जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी यह दूसरा सबसे घातक अग्निकांड है. अधिकारियों ने पुष्टि की कि इस आग दुर्घटना के पीछे शॉर्ट सर्किट कारण था. 600-गज़ क्षेत्र में निर्मित चार-मंजिला विनिर्माण कारखाने को न तो अग्निशमन विभाग की अनुमति प्राप्त थी और न ही सामान्य अग्निकांड से बचने की कोई तैयारी थी. हालांकि 150 अग्निशामकों और 30 दमकल गाड़ियों ने घंटों तक मशक्कत की और 63 लोगों की जान बचाई; भयानक आग की लपटों ने इस दौरान कई लोगों की जान ले ली. इस फरवरी में, दिल्ली के करोल बाग स्थित एक होटल के 17 निवासियों की इसी तरह से आग लगने से मौत हो गई थी. अग्निशमन विभाग प्राधिकरण को घटना के बाद "सतर्क" हो गया था और 57 होटलों की अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) रद्द कर दी थी. एनओसी हो या एनओसी के बिना किसी को भी भारत में सुरक्षा और प्रशासन की वास्तविक स्थिति के बारे में भ्रम नहीं है. 144 शहर जिनकी आबादी 1 लाख या उससे अधिक है, उनमें अग्नि निवारण प्रणाली निराशाजनक है. मुनाफे कमाने की होड़ में निर्माण करने वाले बिल्डरों के आगमन के बाद अग्नि सुरक्षा की कीमत पर, घटिया इमारतों के निर्माण कर लोगों के जीवन को लगातार खतरे की ओर धकेला जा रहा है.



दिल्ली के उच्च न्यायालय ने आग से सुरक्षा के तरीकों की कमी का डैमोकल्स की तलवार के रूप में सही विवरण किया था. हालांकि नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारतीय राष्ट्रीय भवन कोड (एनबीसी) की शुरुआत की गई थी, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों ने इसे बेकार कर दिया. मई में एक इमारत में आग लगने से 22 छात्र झुलस गए थे. मुंबई के कमला मिल्स में दिसंबर 2017 में लगी आग में 14 मजदूर मारे गए थे. अगस्त में, नई दिल्ली स्थित एम्स की वायरोलॉजी यूनिट आग की चपेट में आ गया था. अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान, सिनेमा हॉल, उद्योग कोई भी आग की त्रासदी से नहीं बचे हैं. देश भर में आग की दुर्घटनाओं के कारण औसतन 60 लोगों की जान चली जाती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2010-14 के दौरान 1,12,000 अग्नि दुर्घटनाओं में 1,13,000 लोगों की जान गई थी. जबकि अनैतिकतापूर्ण शहरीकरण ने खतरों की बढ़ती संभावना को जगह दी है, लेकिन इसका मुकाबला करने के लिए कार्रवाई की कोई समान योजना नहीं है.



मज़बूत अग्नि सुरक्षा तंत्र वाले राष्ट्र सामूहिक अभ्यास कार्य यानि मॉक ड्रिल का आयोजन करके अपने नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा कर रहे हैं. 1995 में डबवाली आग त्रासदी में 445 लोगों की जान चली गई. 2004 में, कुंभकोणम आग त्रासदी में 94 बच्चे मारे गए थे. इन हृदय विदारक दुर्घटनाओं की यादें अभी भी ताज़ा हैं लेकिन कई अग्नि आपदाओं के बाद भी सरकारों ने अग्नि सुरक्षा के प्रति अपने ढीले दृष्टिकोण को नहीं बदला है. भारतीय संविधान की बारहवीं अनुसूची के तहत अग्निशमन सेवाओं को शामिल किया गया है. अक्षम अधिकारियों और प्रबंधक निकाय जो सुरक्षा दिशानिर्देशों और आग सुरक्षा उपायों को लागू करने में विफल रहे, नागरिक सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं. सरकारी भवन राष्ट्रीय भवन संहिता का उल्लंघन करते हुए निजी निर्माणों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.  2014 में, केंद्रीय सूचना आयोग ने संसद और सर्वोच्च न्यायालय की इमारतों में आग से सुरक्षा की कमियों को उजागर किया था. एनबीसी लागू करने के विषय में आरटीआई आवेदन के जवाब में, सर्वोच्च न्यायलय ने जुलाई, 2018 में नोटिस जारी किए थे. शीर्ष अदालत ने आग और जीवन सुरक्षा उपायों को लागू करने की कमी की ओर इशारा किया था. पूरी तरह से जांच के बाद ही निर्माण के लिए परमिट जारी किया जाना चाहिए. अग्निशमन विभाग को मजबूत किया जाना चाहिए और अग्नि सुरक्षा जागरूकता सत्र आयोजित किए जाने चाहिए. इन कदमों के तालमेल से देश को आग लगने से बचाया जा सकता है.


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