यमुनानगर: कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन का असर यमुनानगर के खरबूजे उगाने वाले किसानों पर भी पड़ा है. यमुनानगर के खरबूजे देश के कई हिस्सों में जाते हैं. लेकिन इस बार लॉकडाउन की ऐसी मार पड़ी है कि तैयार खरबूजे खेतों में सड़ रहे हैं.
देश के कई हिस्सों में जाते हैं यमुनानगर के खरबूजे
खरबूजों को तैयार होने में 6 महीने का वक्त लगता है. दिल्ली-पानीपत और खासकर चंडीगढ़ के होटलों में यमुनानागर के खरबूजों की डिमांड रहती है. लेकिन लॉकडाउन के चलते होटल बंद हैं और इन खरबूजों की मिठास या तो लोकल मंडी या फिर खेतों में सड़ रहे हैं.
किसानों की लागत नहीं निकली
खरबूजे की खेती करने वाले किसान जो कभी इससे अच्छा खासा मुनाफा कमाया करते थे. आज उनकी लागत भी पूरी नहीं हो रही है. खेतों में ही खरबूजों के ढेर लगे हुए हैं. और किसान इस उम्मीद में इसकी देखभाल कर रहे हैं कि शायद उनकी फसल पहले की तरह एक बार फिर बिक जाए. लेकिन लॉकडाउन और खराब मौसम से इनकी उम्मीदों पर पानी फेर सकता है.
लॉकडाउन से हुआ नुकसान- किसान
किसान रमनजीत सिंह ने बताया कि लॉकडाउन ने बहुत बुरे हालात बना दिए हैं. कोरोना के कारण बहुत नुकसान हुआ है. उत्पाद अच्छा होने के बाद भी इसकी सेल बिल्कुल नहीं हो रही है. जो खरबूजा चंडीगढ़-पानीपत और दिल्ली की मंडी में 30 से 35 रुपये किलो में बिकता था. वो अब खेतों में सड़ रहा है और जो थोड़ा बहुत बिक भी रहा तो दाम बहुत कम हैं.
उन्होंने कहा कि इतना मंदा उन्होंने पिछले 9 सालों में कभी नहीं देखा है. हालात ये हैं कि लागत भी पूरी नहीं हो रही है. रमनजीत सिंह का कहना है कि सरकार घोषणा तो बहुत करती है, लेकिन ग्राउंड लेवल पर कोई भी मदद किसानों तक नहीं पहुंचती.
किसान रमनजीत का कहना है कि हमें लगता है कि फल सब्जियों की खेती छोड़कर गेहूं की तरफ जाना पड़ेगा. क्योंकि उसकी खरीद तो सरकार पूरा करती है लेकिन फल -सब्जियों वाले किसानों के बारे में सरकार कुछ नहीं सोचती है. उन्होंने कहा कि प्रति एकड़ एक से डेढ़ लाख रुपये का नुकसान हुआ है.
मदद की गुहार लगाई
वहीं किसान सचिन ने बताया कि इस बार नुकसान बहुत ज्यादा हुआ है. खरबूजे खेत में खराब हो रहे हैं. मंडी में कोई खरीदने वाला नहीं है. इससे उनकी लागत भी पूरी नहीं हो रही है. वो सरकार से ही उम्मीद करते हैं कि उनकी कुछ ना कुछ मदद की जाए.
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