सिरसा: पंजाब के बाद अब हरियाणा नशे चंगुल में बुरी तरह फंसता जा रहा है और यहां के युवाओं का भविष्य नशे की लत में पड़ने से अंधकार की तरफ जा रहा है. अगर हरियाणा की ही बात करें तो सबसे ज्यादा यहां का सिरसा जिला नशे से ग्रस्त है. सिरसा जो पंजाब और राजस्थान के बॉर्डर के पास स्थित है वहां नशा और नशेड़ी दोनों आम सी बात हैं. यही वजह है कि आए दिन पुलिस के हत्थे कोई ना कोई नशा तस्कर चढ़ता रहता है.
अगर बात करें उन लोगों की जो लोग इस नशे की गिरफ्त से बाहर निकलना चाहते हैं और खुद का इलाज करवाकर अपनी जिंदगी को फिर से खुशहाल बनाना चाहते हैं उनकी संख्या में भी काफी बढ़ोतरी आई है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है की जहां सरकार एक तरफ नशा तस्करों को पकड़ने के लिए कड़े कानून बना रही है. वहीं दूसरी तरफ नशा छोड़ने वालों के लिए सिरसा में डॉक्टरों और नशा मुक्ति केंद्रों की संख्या काफी कम है. जिसकी तरफ सरकार का ध्यान बिल्कुल भी नहीं जा रहा है.
बिन ड्रग रिहैब सेंटर्स नशा मुक्ति कैसे संभव!
जहां राजनेता सिरसा और फतेहाबाद में पकड़े गए नशीले पदार्थों को सरकार की नशे के खिलाफ छेड़ी की मुहीम की सफलता बताते नहीं थकते. उन्हीं राजनेताओं का ध्यान इस मामले के दूसरे पहलू की तरफ बिल्कुल भी नहीं जा रहा है. ये दावे तो कर रहे हैं कि वो प्रदेश से नशा को खत्म कर देंगे, लेकिन जो लोग इस अंधकार से बाहर निकलना चाहते हैं. उनके लिए कोई नेता बात नही कर रहा है.
ये आंकड़े चिंताजनक हैं
सिरसा जिला के स्वास्थ्य अधिकारियों से मिले आंकड़ों के अनुसार सिरसा के नागरिक अस्पताल में 2014 में लगभग 5600 ड्रग एडिक्ट अपना इलाज करवाने आए थे. साल 2018 में यह संख्या बढ़कर 18,551 हो गई. लेकिन 2019 में यह आंकड़े 30 हजार के भी पार चली गई. इन आंकड़ों से पता चलता है लोग अब नशे के खिलाफ जागरूक होने लगे हैं.
सिरसा जिले में नशा मुक्ति केंद्रों की संख्या करीब 10 है, जिसमें सबसे बड़ा नशा मुक्ति केंद्र सिरसा के नागरिक अस्पताल में है जो कि सिर्फ 10 बेड का है. इसके अलावा एक ड्रग रिहैब सेंटर कालांवाली में है जो समाज कल्याण विभाग की देख रेख में चलाया जा रहा है. शह में 9 प्राइवेट साइकेट्रिस्ट है, जिसमें 3 डबवाली और 6 सिरसा सिटी में है.
क्या होता है ड्रग रिहैब सेंटर ?
हरियाणा ड्रग रिहैब सेंटर आम तौर पर स्थानीय अस्पतालों में एक वार्ड बना दिया जाता है जहां ड्रग एडिक्ट लोगों का इलाज किया जाता है. इस वार्ड में नशा मुक्ति विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिकों की टीम काम करती है. जो ड्रग एडिक्ट मरीजों को नशा छुड़वाने में मदद करती है.
पीड़ितों के पास सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों में इलाज करवाने के अलावा दूसरा कोई आस नहीं है, क्योंकि नशे की लत में पड़ने की वजह से उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो जाती है. यही वजह है कि वो प्राइवेट नशा मुक्ति केंद्रों में अपना इलाज करवाने के काबिल नहीं रह जाते हैं.
पूरे जिले में दो नशा मुक्ति केंद्र, बहुत नाइंसाफी है!
जिला में दो सरकारी नशा मुक्ति केंद्र का होना यह बताता है कि सरकार इस दलदल से निकलने की कोशिश करने वाले लोगों के लिए कितनी सीरियस है. बड़ी बात ये भी है कि जो विपक्ष सरकार पर नशे के मामले में खुल कर और सरेआम उंगली उठाता है, लेकिन उसका भी ध्यान इस पहलू पर नहीं जा रहा है.
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डॉक्टरों की भारी कमी है!
सरकार आए दिन अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों को खोलने के दावे करती है, लेकिन धरातल पर उनके यह दावे फेल नजर आते हैं. हाल ही में गृहमंत्री अनिल विज ने भी हरियाणा में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोलने के दावे किए और यह भी माना कि प्रदेश में करीब 700 डॉक्टरों की कमी है. उन्होंने दावा किया कि जल्द ही इन डॉक्टरों की कमी को पूरा किया जाएगा और 400 डॉक्टर परमानेंट और 300 डॉक्टरों को कॉन्ट्रैक्ट बेस पर लगाया जाएगा, लेकिन गृह मंत्री अनिल विज ने अपने इस दावे में नशा मुक्ति केंद्र खोले जाने पर कुछ विशेष बात नहीं की ,कि उसमें से कितने नशा मुक्ति केंद्र होंगे.
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जिले में पुलिस आए दिन किसी ना किसी नशा तस्कर को पकड़ती है और सरकार उसे अपनी बड़ी सफलता बताती है, लेकिन जब सालों से नशे की लत में फंसे लोग इस दलदल से निकलने की कोशिश कर हैं तो सरकार का ध्यान उनकी तरफ नहीं जा रहा है. अब देखना यह होगा कि गृह मंत्री अनिल विज अपने इस दावे को कब अमलीजामा कब पहनाते हैं और कब तक डॉक्टरों की कमी को पूरा कर पाते है ताकि कोई शख्स अगर नशे के चुंगल से निकलना भी चाहे तो उसकी सहायता के लिए कम से कम हमारे पास अधारभूत सुविधाए तो हों.