रोहतक: जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने डिलीवरी के समय एक महिला को हुए संक्रमण के लिए पीजीआईएमएस रोहतक को जिम्मेदार माना है. आयोग की जांच में सामने आया कि वार्ड में तैनात महिला डॉक्टरों की कोई कमी नहीं थी. महिला को सफाई व्यवस्था और सेवाओं में कमी की वजह से संक्रमण हुआ था. बाद में महिला का इलाज शहर के निजी अस्पताल में हुआ. ऐसे में आयोग के अध्यक्ष नागेंद्र कादियान ने पीजीआईएमएस के चिकित्सा अधीक्षक को इलाज पर खर्च हुए 68 हजार 263 रुपये 9 प्रतिशत ब्याज के साथ देने के आदेश दिए हैं.
पीजीआईएमएस को 50 हजार रुपये का मुआवजा और 10 हजार रुपये कानूनी खर्च भी पीड़ित महिला को देना होगा. दरअसल भरत कॉलोनी रोहतक की सरिता कौशिक को प्रसव पीड़ा के चलते 15 जुलाई 2017 को पीजीआईएमएस के वार्ड नंबर 2 की यूनिट नंबर 4 में डिलीवरी के लिए दाखिल कराया गया था. महिला ने सामान्य डिलीवरी के जरिए एक बच्ची को जन्म दिया, लेकिन पीजीआई में साफ सफाई और सुविधाओं की कमी की वजह से महिला को गुप्तांग में संक्रमण हो गया. 18 जुलाई को महिला के परिजन उसे पीजीआईएमएस से छुट्टी कराकर घर ले गए.
घर पहुंचने महिला की हालत थोड़ी खराब हो गई. जिसके बाद परिजनों ने महिला को नजदीक सनफ्लैग ग्लोबल अस्पताल में भर्ती करवाया. वहां पर डॉक्टरों ने महिला को दवाई दी और 21 जुलाई को आने के लिए कहा. जब महिला की तबीयत सही नहीं हुई तो डॉक्टरों ने उसे 21 जुलाई को भर्ती कर लिया. महिला 29 जुलाई तक निजी अस्पताल में भर्ती रही. ठीक होने के बाद 15 जुलाई 2018 को सरिता कौशिक ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग शिकायत दर्ज करा दी. जिसमें डिलीवरी के दौरान लापरवाही के लिए डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराया.
महिला ने कहा कि पीजीआईएमएस के यूनिट नंबर 4 की एचओडी डॉक्टर मीनाक्षी चौहान, पीजीआईएमएस के चिकित्सा अधीक्षक और वार्ड नंबर 2 की महिला चिकित्सक डॉक्टर भोपाली दास को जिम्मेदार ठहराया. महिला का कहना था कि डिलीवरी के दौरान पीजीआईएमएस में काफी लापरवाही बरती गई. एचओडी डॉक्टर मीनाक्षी चौहान ने खुद डिलीवरी कराने की बजाय, जिम्मेदारी पीजी स्टूडेंट्स को सौंप दी. डॉक्टर भोपाली दास ने भी अपनी ड्यूटी सही तरीके से नहीं की. सामान्य डिलीवरी के बावजूद काफी खून बहा और दर्द हुआ. अच्छे तरीके से टांके नहीं लगाए गए.
महिला ने कहा कि 18 जुलाई तक उसका इलाज चला, लेकिन कोई आराम नहीं हुआ. इसके बाद पीजीआईएमएस से उसे जबरन छुट्टी भी दे दी गई. बाद में उसे सनफ्लैग ग्लोबल हॉस्पिटल में इलाज कराना पड़ा. जिस पर काफी राशि खर्च हुई. उसकी बच्ची को भी पीलिया हो गया था. सरिता कौशिक ने 4 लाख रुपये मुआवजा और 50 हजार रुपये हर्जाने के तौर पर पीजीआईएमएस से मांग की. महिला की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने पीजीआईएमएस के चिकित्सा अधीक्षक और महिला डॉक्टरों को नोटिस जारी किए.
अपने जवाब में पीजीआईएमएस ने बताया कि सरिता कौशिक की डिलीवरी के लिए रेजीडेंट डॉक्टर्स को तैनात किया गया था. एचओडी डॉक्टर मीनाक्षी चौहान और डॉक्टर भोपाली दास की कोई गलती नहीं थी. लेबर रूम में तैनात महिला डॉक्टरों ने डिलीवरी कराई थी. डिलीवरी के बाद रक्तस्राव सामान्य है. महिला को पीजीआईएमएस से जबरन छुट्टी नहीं दी गई. महिला और उसके परिजन पीजीआईएमएस से घर जाना चाहते थे. परिजनों ने इस बारे में सहमति दी थी. नवजात बच्ची की देखरेख भी शिशु रोग विशेषज्ञ ने की थी और उसे भी बेहतर इलाज दिया गया था.
डॉक्टरों ने कहा कि डिलीवरी और उसके बाद महिला व उसके परिजनों ने किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं की थी. उपभोक्ता आयोग के सामने निजी अस्पताल की महिला चिकित्सक डॉक्टर आशीलू डागर के भी बयान दर्ज हुए. उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष नागेंद्र कादियान और सदस्य तृप्ति पानू व विजेंद्र सिंह ने ये निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में पीजीआईएमएस की महिला डॉक्टरों की तो कोई लापरवाही नहीं थी, लेकिन पीजीआईएमएस में साफ सफाई और सुविधाओं की कमी की वजह से सरिता कौशिक को संक्रमण हुआ. टॉयलेट में भी सफाई नहीं पाई गई. ऐसे में पीजीआईएमएस को निजी अस्पताल में खर्च हुई राशि 68 हजार 263 रुपये 9 प्रतिशत ब्याज और मुआवजा के तौर पर 50 हजार रुपये व कानूनी खर्च के तौर पर 10 हजार रुपये देने होंगे.