रोहतक: तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में अब पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता बीरेंद्र सिंह भी कूद पड़े हैं. शुक्रवार को उन्होंने रोहतक में ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि छोटूराम विचार मंच किसान आंदोलन के समर्थन में भूख हड़ताल और यात्राएं करेगा. साथ ही उन्होंने मांग की कि जीएसटी की तरह ही तीनों कृषि कानूनों में भी संशोधन होना चाहिए.
'हमने आंदोलन समर्थन की रणनीति बना ली है'
जहां भारतीय जनता पार्टी के नेता तीन कृषि कानूनों को सही बताने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं और एसवाईएल का पानी लाने के लिए उपवास भी रखने की बात चल रही है. ऐसे में भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह किसान आंदोलन के समर्थन में कूद चुके हैं. उन्होंने आज रोहतक में ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि छोटूराम विचार मंच ने किसान आंदोलन के समर्थन के लिए अपनी रणनीति तैयार कर ली है.
गांव-गांव विरोध यात्रा निकालेंगे
बीरेंद्र सिंह ने बताया कि वो और उनके समर्थन दिल्ली के चारों तरफ हरियाणा के जिलों में भूख हड़ताल करेंगे और गांव-गांव यात्रा निकाली जाएंगी. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि हर मुद्दे का हल बातचीत से होता है और उन्हें उम्मीद है कि यह हल भी बातचीत से निकल आएगा.
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'जीएसटी की तरह कानूनों में बदलाव होना चाहिए'
उन्होंने सरकार से मांग की कि जीएसटी के बदलाव की तरह इन कानूनों में भी बदलाव होना चाहिए ताकि किसानों को फायदा मिल सके. उन्होंने कहा कि भाजपा नेताओं से भी बातचीत करेंगे. उन्होंने कहा कि अगर किसान यूनियन के नेता धरना स्थल पर बुलाएंगे तो जरुर जाकर वहां अपनी बात रखेंगे. उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता उनके पीछे रहेगा और वह कार्यक्रम की अगुआई करेंगे.
'SYL का पानी तो आ जाएगा, पहले इस मुद्दे का समाधान जरूरी'
वहीं बीरेंद्र सिंह ने कहा कि भाजपा आज जो एसवाईएल के मुद्दे को उठा रही है. एसवाईएल का पानी तो बाद में भी आ जाएगा फिलहाल किसानों के मुद्दे का समाधान करना चाहिए. जहां तक इस आंदोलन को कांग्रेस द्वारा हाईजैक करने की बात उठ रही है तो कांग्रेसी तो सिर्फ पांच मठाधीशों की पार्टी बनकर रह गई है. उनमें इतनी ताकत ही नहीं है कि वह किसी आंदोलन को हाईजैक कर सकें. हरियाणा में जेजेपी पार्टी द्वारा सरकार का साथ छोड़ने के मुद्दे पर बीरेंद्र सिंह बोले की जेजेपी और भाजपा का गठबंधन हरियाणा में है, लेकिन एक ओर तो किसानों का दबाव है तो दूसरी ओर सत्ता, यह फैसला जेजेपी पार्टी को करना है.
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