रेवाड़ी: साल 2017 की शुरुआत में ही बीएसएफ में बतौर जवान रहे तेज बहादुर यादव की एक वीडियो ने बवाल मचा दिया था. सोशल मीडिया पर ये वीडियो खूब वायरल हुआ. तेज बहादुर यादव ने इस वीडियो के जरिए फौजियों को मिलने वाले खाने की शिकायत की. ऐसा पहली बार हुआ था कि एक फौजी ने सार्वजनिक तौर पर सेना की खिलाफत की थी चाहे वो सिर्फ खाने को लेकर हुआ हो. ये वीडियो रातो रात वायरल हुआ और मुद्दा सेना क्षेत्र से बाहर राजनीतिक हो चुका था. कुछ दिनों बाद तेज बहादुर को बर्खास्त कर दिया गया. तेज बहादुर ने इस कार्रवाई को अपने साथा नाइंसाफी समझा और अपने साथ राजनीति होना बताया था.
मोदी को हराने की ख्वाहिश लिए वाराणसी पहुंचे थे!
ये वहीं तेज बहादुर यादव हैं जो दोबारा पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी से पर्चा भरा था. तेज बहादुर यादव बर्खास्त होने के बाद लगातार सरकार का विरोध करते रहे. यही वजह थी आम चुनाव में उन्होंने सीधे पीएम मोदी को वाराणसी से निर्दलीय टक्कर देने का विचार बनाया और निर्दलीय पर्चा भरने चुनाव कार्यालय पहुंच गए, हालांकि तेज बहादुर यादव को बाद में सपा ने टिकट दे दी थी.
सुप्रीम कोर्ट से निराश लौटे थे तेज बहादुर!
वाराणसी से महागठबंधन के उम्मीदवार तेज बहादुर यादव का नामांकन रद्द हो गया था. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जनहित याचिका के तौर पर इसमें दखल देने का कोई आधार नहीं है.
मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने दिया था साथ
सुप्रीम कोर्ट की ओर से दो टूक जवाब मिलने के बाद तेज बहादुर की ओर से प्रशान्त भूषण ने सफाई दी थी कि उनका मकसद चुनाव को चुनौती नहीं था बल्कि उनका तो बस ये कहना था कि तेज बहादुर का नामांकन गलत तरीके से और गैरकानूनी तरीके से खारिज हुआ है. प्रशांत भूषण ने कहा था कि मैंने तेज बहादुर के बर्खास्तगी का आदेश नामांकन के साथ संलग्न किया था. हमें जवाब रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया.
अब इलाहाबाद हाई कोर्ट से जागी उम्मीद
अब दोबारा तेज बहादुर चर्चा में आ चुके हैं. तेज बहादुर की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन को रद्द करने के लिए रविवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. निर्वाचन रद्द करने की यह याचिका बीएसएफ से बर्खास्त जवान तेजबहादुर यादव ने दायर की है. तेजबहादुर ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष याचिका दाखिल की. याचिका का आधार तेजबहादुर ने वाराणसी लोकसभा सीट से अपना नामांकन नियम के विरुद्ध रद्द करना बताया है. इस याचिका को हाई कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया.