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1984 की दर्दनाक दास्तां बयां करता बेचिराग हो चुका हौंद गांव

सिख समाज के कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए गांव में ही घरों के समीप बने कुएं में छलांग लगा दी थी. लेकिन वहां भी उन्हें मौत ही मिली. कुछ महिलाएं और बच्चे दंगाईयों से बचने के लिए एक मकान की दूसरी मंजिल पर छुप गए थे, लेकिन दंगाइयों ने उस मकान को ही आग के हवाले कर दिया. जिसमें सभी जिंदा जल गए.

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Published : Oct 31, 2019, 11:24 PM IST

Updated : Nov 1, 2019, 10:17 AM IST

रेवाड़ीः 31 अक्टूबर 1984 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों में रेवाड़ी जिले में कभी गुलजार रहे हौंद गांव को विरान बना दिया. 2 नवंबर 1984 को दंगाइयों ने गांव के 32 सिख परिवार के लोगों को जिंदा जलाकर मौत के घाट उतार दिया. 32 लोगों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.

जान बचाने के लिए कुएं में कूद गए लोग
सिख समाज के कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए गांव में ही घरों के समीप बने कुएं में छलांग लगा दी थी. लेकिन वहां भी उन्हें मौत ही मिली. कुछ महिलाएं और बच्चे दंगाईयों से बचने के लिए एक मकान की दूसरी मंजिल पर छुप गए थे, लेकिन दंगाइयों ने उस मकान को ही आग के हवाले कर दिया. जिसमें सभी जिंदा जल गए.

1984 के सिख विरोधी दंगों ने हौंद गांव को उजाड़ दिया, क्लिक कर देखें वीडियो.

ये भी पढ़ेंः- दिल्ली में प्रदूषण को लेकर AAP का प्रदर्शन, हरियाणा और पंजाब के खिलाफ खोला मोर्चा

न्याय की आस में भटक रही हैं आत्माएं
देश की आजादी के बाद विरान और शमशाम में तब्दिल हुआ शायद देश का ये पहला गांव होगा. जो 1984 से पहले तक जीवंत था. लेकिन सिख विरोधी दंगों के 35 वर्ष बीत जाने के बाद आज भी बेचिराग है. सरकारें आती रही, जाती रहीं. लेकिन शायद देश के बड़े नरसंहार का दंश झेल चुका ये गांव और उसकी भेंट चढ़ चुके लोगों की आत्माएं आज भी न्याय की गुहार लगा रही हैं.

गांव में सक्रिय हुए सिख संगठन
अब यहां अकाली दल, शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, हरियाणा के लिए बनी एडहोक कमेटी, अखिल भारतीय सिख स्टूडेंट फेडरेशन जैसे संगठन सक्रिय है और खंडहर में तब्दील गांव के गुरुद्वारे में हर 2 नवंबर को नगर कीर्तन और लंगर होता है, वहीं सिख संगठन अब यहां एक चेरिटेबल हॉस्पिटल बनवाना चाहते है. जिससे लोगों का इलाज हो सके.

हॉस्पिटल अगर बन जाता है तो इलाज कराने वालों में वो लोग भी शामिल हो सकेंगे, जिनके हाथ इस गांव को विरान बनाने के वक्त नहीं कांपे थे. लेकिन अब जरूर कांप रहे होंगे क्योंकि अब हाथ कांपने की उनकी उम्र हो गई होगी.

ये भी पढ़ेंः- भूपेंद्र हुड्डा पर विज का विवादित बयान, बोले- कसाईयों के कहने से भैंसे नहीं मरती

रेवाड़ीः 31 अक्टूबर 1984 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों में रेवाड़ी जिले में कभी गुलजार रहे हौंद गांव को विरान बना दिया. 2 नवंबर 1984 को दंगाइयों ने गांव के 32 सिख परिवार के लोगों को जिंदा जलाकर मौत के घाट उतार दिया. 32 लोगों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.

जान बचाने के लिए कुएं में कूद गए लोग
सिख समाज के कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए गांव में ही घरों के समीप बने कुएं में छलांग लगा दी थी. लेकिन वहां भी उन्हें मौत ही मिली. कुछ महिलाएं और बच्चे दंगाईयों से बचने के लिए एक मकान की दूसरी मंजिल पर छुप गए थे, लेकिन दंगाइयों ने उस मकान को ही आग के हवाले कर दिया. जिसमें सभी जिंदा जल गए.

1984 के सिख विरोधी दंगों ने हौंद गांव को उजाड़ दिया, क्लिक कर देखें वीडियो.

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न्याय की आस में भटक रही हैं आत्माएं
देश की आजादी के बाद विरान और शमशाम में तब्दिल हुआ शायद देश का ये पहला गांव होगा. जो 1984 से पहले तक जीवंत था. लेकिन सिख विरोधी दंगों के 35 वर्ष बीत जाने के बाद आज भी बेचिराग है. सरकारें आती रही, जाती रहीं. लेकिन शायद देश के बड़े नरसंहार का दंश झेल चुका ये गांव और उसकी भेंट चढ़ चुके लोगों की आत्माएं आज भी न्याय की गुहार लगा रही हैं.

गांव में सक्रिय हुए सिख संगठन
अब यहां अकाली दल, शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, हरियाणा के लिए बनी एडहोक कमेटी, अखिल भारतीय सिख स्टूडेंट फेडरेशन जैसे संगठन सक्रिय है और खंडहर में तब्दील गांव के गुरुद्वारे में हर 2 नवंबर को नगर कीर्तन और लंगर होता है, वहीं सिख संगठन अब यहां एक चेरिटेबल हॉस्पिटल बनवाना चाहते है. जिससे लोगों का इलाज हो सके.

हॉस्पिटल अगर बन जाता है तो इलाज कराने वालों में वो लोग भी शामिल हो सकेंगे, जिनके हाथ इस गांव को विरान बनाने के वक्त नहीं कांपे थे. लेकिन अब जरूर कांप रहे होंगे क्योंकि अब हाथ कांपने की उनकी उम्र हो गई होगी.

ये भी पढ़ेंः- भूपेंद्र हुड्डा पर विज का विवादित बयान, बोले- कसाईयों के कहने से भैंसे नहीं मरती

Intro:रेवाड़ी, 31 अक्टूबर।
जिले के छोटे से गांव होंद में 32 सिखों को जिंदा जला दिया गया था।


Body:31 अक्टूबर 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों में 2 नवंबर 1984 को रेवाड़ी जिले के छोटे से गांव होंद में दंगाइयों ने 32 सिख परिवार के लोगों को जिंदा जलाकर मौत के घाट उतार दिया गया। 32 लोगों में महिलाएं, बच्चे भी शामिल थे। कुछ सिख समाज के लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए गांव में ही घरों के समीप बने कुएं में मौत की छलांग लगा दी थी। जिन महिलाओं और बच्चों ने मकान की दूसरी मंजिल पर दंगाइयों से अपने आपको सुरक्षित रखने के लिए छुपे हुए थे, लेकिन दंगाइयों ने उस मकान को ही आग के हवाले कर दिया था। जिसमें सभी जिंदा जल गए, उनकी चींखें आज भी यह दीवारें बयां करतीं है।
देश का यह पहला गांव है जो 84 से पहले जीवंत था लेकिन आज 35 वर्ष बीत जाने के बाद भी बेचिराग है। यहां देश का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था। सरकारें बदलती रही लेकिन आज तो न्याय की बात जोह रहा सिख समाज उन आत्माओं की शांति नही कर पाया। अब यहां अकाली दल, शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, हरियाणा के लिए बनी एडहोक कमेटी, अखिल भारतीय सिख स्टूडेंट फेडरेशन जैसे संगठन सक्रिय है और यह सभी सरकार से यहां एक चेरिटेबल हॉस्पिटल बनवाना चाहते है। ताकि जिन दंगाइयों ने सिखों की हत्या की थी अब उनकी उम्र इतनी हो गई होगी कि अब उन्हें इलाज की जरूरत होगी। जिन हाथों ने हत्या की है अब सिख समाज उन्हें जीवन देना चाहता है।
ईटीवी संवाददाता महेंद्र भारती रेवाड़ी।


Conclusion:एक छोटे से जीवंत गांव को अब बेचिराग का नाम दिया गया है।
Last Updated : Nov 1, 2019, 10:17 AM IST
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