पानीपत: पानीपत का एक ऐसा गांव है, जहां चाहकर भी आप नया घर नहीं बना सकते. इसके पीछे एक बड़ा कारण भी है. दरअसल, माना ये जा रहा है कि इस गांव का वाटर लेवल कभी-कभी जीरो हो जाता है तो कभी बढ़ जाता है. जिसके चलते यहां पर घर बनाना संभव नहीं है. इन सभी कारणों के पीछे एक बड़ा कारण पानीपत का थर्मल पावर प्लांट भी है. पानीपत से 10 किलोमीटर दूर स्थित खुकराना गांव के पास पानीपत का थर्मल पावर स्टेशन बना हुआ है.
थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख को गांव के पास ही एक झील में स्टोर किया जाता है. राख को स्टोर करने के बाद उस पर पानी डाल दिया जाता है. लगभग 20 फुट ऊंची इस राख की झील के बीच गांव के लोगों का रहना दूभर हो गया है. आलम ये है कि पानीपत में बनी राख की झील से इस गांव का वाटर लेवल इतना ऊपर आ गया कि एक फीट गड्ढा खोदने पर उसमें से पानी निकलने लगता है. यह कोई आज की समस्या नहीं है, लगभग 20 साल से यह गांव इस समस्या से जूझ रहा है.
ग्रामीणों का कहना है कि जब से यह समस्या शुरू हुई तो उन्होंने इसकी शिकायत प्रशासन और थर्मल पावर स्टेशन के अधिकारियों को भी दी. सरकार और प्रशासन ने इस गांव को शिफ्ट कराने की बात तो कही लेकिन किया नहीं. ग्रामीणों का कहना है कि लगभग 20 साल बीत गए लेकिन इस गांव को शिफ्ट नहीं किया गया. गांव को शिफ्ट करने के लिए जमीन तो अधिग्रहण कर लिया गया. पर अभी तक लोगों को वहां प्लाट नहीं दिया गया. ग्रामीण कहते हैं कि यहां से कई घर पलायन कर चुके हैं.
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बारिश के दिनों में तो यहां के नलकूप खुद ही पानी शुरू कर देते हैं. इस गांव के घरों के हालात यहां की तस्वीरें बयां कर रही हैं. खुकराना गांव के सभी घरों की हालत खस्ता है. नया घर यहां बनाया नहीं जा सकता, और पुराने घरों की मरम्मत कर यहां रहना गांव वालों की मजबूरी बन चुकी है. ग्रामीणों का कहना है कि जब सरकार ने उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया है तो प्लाट देने में देरी क्यों की जा रही है. ग्रामीणों ने मांग की है कि 2001 में जिस रेट पर गांव की जमीन का रेट लगाया गया था, 13 साल बाद भी उसी रेट पर जमीन खरीदने की बात कर रहे हैं. सरकार को चाहिए कि 13 साल बाद जमीन के रेट को दोगुना कर उनकी जमीन और प्लाटों का मुआवजा दिया जाए.