पलवल: होली के इस पवित्र पर्व पर सुबह से ही महिलाएं जहां मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए पहुंचनी शुरू हो गई. वहीं होलिका दहन स्थल पर पहुंचकर होलिका की पूजा - अर्चना की. इस दौरान महिलाओं ने अपने हाथों से होलिका पर गाय के गोबर से बनी बुरकली और लकड़ी चढ़ाई. होलिका पर महिलाओं ने दूध और गंगाजल चढ़ाकर सुख-समृद्धि की कामना की.
इस होलिका दहन त्योहार को अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में मनाया जाता है. होलिका दहन त्योहार के जरिए ये संदेश दिया जाता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर हो लेकिन हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है.
क्यों मनाया जाता है होलिका दहन का त्योहार ?
बताया जाता है कि हिरणकश्यप की बहन को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती थी. वहीं हिरणकश्यप को भगवान की भक्ति ठीक नहीं लगती थी. क्योंकि वह अपने आपको भगवान समझता था. वहीं उसका बेटा प्रह्लाद भगवान का भक्त था. जिसको मारने के लिए हिरणकश्यप अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अग्नि में प्रह्लाद को लेकर बैठ जाए. जिससे कि प्रह्लाद मर जाए. जिसके बाद हिरणकश्यप की बहन होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई. लेकिन भगवान के चमत्कार के कारण होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया. होलिका के जलने के अवसर पर ही होलिका दहन मनाया जाता है.
वहीं इस संबंध में महिला श्रद्धालु गायत्री ने कहा कि यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का हमें संदेश देता है. उन्होंने कहा कि हमें कभी भी बुराई नहीं करनी चाहिए.
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