नूंह: ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्यों में अभूतपूर्व बदलाव के मकसद से इस बार हरियाणा सरकार ने विधानसभा के मानसून सत्र में राइट टू रिकॉल बिल पास किया. इस बिल के तहत अब ग्रामीणों को ये अधिकार मिला है कि वो काम में लापरवाही बरतने वाले सरपंच को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा सकेंगे.
ईटीवी भारत ने जब इस बिल को लेकर नूंह के लोगों से बात की तो लोग इससे सहमत नजर आए, लेकिन जब गांव के सरपंच, पंचों और पार्षदों से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने इस बिल के नुकसान भी बताए.
दरअसल सरपंच को हटाने के लिए गांव के 33 प्रतिशत मतदाता लिखित में अविश्वास शिकायत संबंधित अधिकारी को देंगे. ये प्रस्ताव खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी तथा सीईओ के पास जाएगा. इसके बाद ग्राम सभा की बैठक बुलाकर 2 घंटे के लिए चर्चा करवाई जाएगी. इस बैठक के तुरंत बाद गुप्त मतदान करवाया जाएगा. अगर उसमें 67 प्रतिशत ग्रामीणों ने सरपंच के खिलाफ मतदान किया तो सरपंच पदमुक्त हो जाएगा.
सरपंच और पंचों ने जताई बिल पर आपत्ति
सरपंच चुने जाने के एक साल बाद ही इस नियम के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकेगा. फिरोजपुर तेड गांव के सरपंच रहीस और जिला पार्षद जान मोहम्मद ने कहा कि ये बिल भविष्य में खतरनाक साबित होगा. उन्होंने माना है कि इससे भाईचारा खत्म हो जाएगा. क्योंकि विपक्ष के लोग बिना किसी बात पर भी लोगों को भड़काकर इस बिल का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं.
'राइट टू रिकॉल बिल से खराब होगा भाईचारा'
इस बिल में एक बात ये भी है कि अगर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरपंच के विरोध में निर्धारित दो तिहाई मत नहीं डलते हैं तो आने वाले एक साल तक दोबारा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा. इस तरह 'राइट टू रिकॉल' एक साल में सिर्फ एक बार ही लाया जा सकेगा. पिनगवां के सरपंच संजय सिंगला और स्थानीय निवासी राजकुमार तनेजा का मानना है कि गांवों में इससे पार्टीबाजी ज्यादा बढ़ेगी. विपक्ष के लोग इस बिल का गलत फायदा उठाएंगे. जो भविष्य के लिए अच्छा नहीं होगा.
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आम लोगों से जब इस बारे में बात की गई तो उनमें भी मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिली. कुछ ने इस बिल को अच्छा बताया तो कुछ इससे असहमत नजर आए. ये बिल पंचायती राज में विकास कार्यों में अभूतपूर्व बदलाव के लिए अहम कड़ी साबित होगा या फिर इसके दुष्परिणाम निकलेंगे ये तो वक्त ही बताएगा.