नूंह: बड़ा मदरसा संचालक मुफ्ती जाहिद हुसैन ने रमजान में एतकाफ के महत्व के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि रमजान के पवित्र महीने के आखिरी असरे में असर की नमाज के बाद एक व्यक्ति दस दिन तक शबे कद्र की तलाश में मशगुल हो जाता है. उन्होंने कहा कि कई बार चांद एक दिन पहले दिखाई देता है. तो 29 वें रोजे को ही एतकाफ खत्म हो जाता है.
मदरसा संचालक मुफ्ती हुसैन ने बताया कि बीसवें रोजे के बाद हर मस्जिद में शबे कद्र की रात को इबादत के लिए इंसान एतकाफ में बैठता है. उन्होंने बताया कि रमजान में 21,23,25,27,29वीं रात को शबे कद्र की रात होती है. इस रात में इबादत करना हजार महीने के बराबर होता है. उन्होंने बताया कि कुरान पाक में भी इस बात का जिक्र है कि क्यों यह महीना हजार महीनों से बेहतर है.
मुफ्ती जाहिद हुसैन ने कहा कि शबे की रात में इबादत कर रहा व्यक्ति किसी से नहीं मिलता और ना ही बाहर आता है. एतकाफ में मोमिन मस्जिद में ही नमाज पढ़ता है. इस दौरान वह अपने चारों तरफ पर्दे लगाकर मस्जिद के किसी कोने में दिन रात अल्लाह की इबादत करता है. उन्होंने बताया कि एतकाफ का इस्लाम में बड़ा महत्व है. एतकाफ में बैठने वाले व्यक्ति को बहुत हिम्मत से काम लेना होता है. क्योंकि दस दिन तक ना तो वह किसी से मिल सकता है और ना ही अपने घर जा सकता है.
खास बात यह है कि 29वें रोजे को चांद नजर आए या तीसवें रोजे को. एकताफ पूरा होने के बाद ही एतकाफ उठता है. एतकाफ का नियम काफी सख्त होता है.जिले के मस्जिदों में या फिर हर बस्ती में एतकाफ में कोई ना कोई जरूर बैठता है. ताकि उसपर अल्लाह की रहमत बनी रहे.
एतकाफ में बैठे व्यक्ति को खाना-पीना उसी स्थान पर बिना अंदर प्रवेश किए दिया जाता है. एतकाफ में बैठा व्यक्ति किसी से बात तक नहीं करता. शौच इत्यादि के लिए भी रात के अंधेरे में या फिर अकेले में ही बाहर आता है.
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