कुरुक्षेत्र: कोरोना और लॉकडाउन के दौरान कई ऐसी चीजें हो रही हैं जो आमतौर पर शायद यकीन के लायक ना लगें. लेकिन ये सच है. लॉकडाउन का असर सिर्फ इंसानों पर नहीं गली-मोहल्लों में रहने वाले जानवरों पर भी देखने को मिल रहा है. लॉकडाउन के सन्नाटे के बीच गली मुहल्लों में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ गई है. और कुत्ते आम दिनों की तुलना में ज्यादा आक्रामक हो गए.
वहीं मेडिकल स्टोर संचालक जितेंद्र ने बताया कि वो लगभग हर रोज 10 से 15 इंजेक्शन बेचते हैं. लॉकडाउन में इन इंजेक्शन की ब्रिक्री ना के बराबर रही. हालांकि लॉकडाउन के बीच कुत्तों की संख्या भले ही बढ़ गई हो लेकिन लोगों के बाहर ना निकलने के चलते कुत्तों के काटने के केस लगभग आधे हो गए हैं.
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले की बात करें तो यहां लॉकडाउन के दौरान कुत्तों के काटने के मामल 50 फीसदी तक कम हो गए. पहले जिले में महीने में औसतन 630 मरीज सामने आते थे. अब ये आंकड़ा 300 के करीब रह गया है. हलांकि डॉक्टर का दावा है कि स्वास्थ्य विभाग ने इसके लिए पख्ता इतंजाम किए हैं.
कुत्ते के काटने पर ज्यादा से ज्यादा 24 घंटे के अंदर रेबिज का इंजेक्शन लगवाना जरूरी होता है. कुत्ते के काटने से हाइड्रोफोबिया और एरोफोबिया जैसी घातक लाइलाज बीमारी हो सकती हैं. इन बीमारियों में रोशनी और पानी से मरीज को नफरत हो जाती है. डॉक्टर्स के मुताबिक इस स्टेज पर मरीज को नहीं बचाया जा सकता. इसलिए ये जरूरी है कि आप कुत्तों से सावधान रहें.
कैसे होता है रेबीज:
जानवर जैसे कुत्ता, बंदर, सुअर, चमगादड़ आदि के काटने से जो लार व्यक्ति के खून में मिल जाती है, उससे रेबीज नामक बीमारी होने का खतरा रहता है. रेबीज रोग सीधे रोगी के मानसिक संतुलन को खराब कर देता है. जिससे रोगी का अपने दिमाग पर कोई संतुलन नहीं होता है, किसी भी चीज को देख कर भड़क सकता है.
रेबीज रोग के लक्षण:
रेबीज रोगी को सबसे अधिक पानी से डर लगता है. क्योंकि जिस किसी को रेबीज हो जाता है, ये रोग दिमाग के साथ-साथ गले को भी अपनी चपेट में ले लेता है. अगर रोगी पानी पीने मात्र की भी सोचता है तो उसके कंठ में जकड़न महसूस होती है. जिससे उसको सबसे अधिक पानी से ही खतरा होता है.
रोगी के नाकों, मुहं से लार निकलती है. यहां तक की वो भौंकना भी शुरू कर देता है. रोग की एक ऐसी भी अवस्था होती है कि वो अपने आपको निडर महसूस करता है. रोगी को रोशनी से डर लगता है. रोगी हमेशा शांत और अंधेरे वातावरण में रहना पसंद करता है. रोगी किसी भी बात को लेकर भड़क सकता है.
रेबीज रोग उपचार:
रेबीज होने के बाद कोई भी इलाज संभव नहीं है. हालांकि इसकी रोकथाम के लिए अभी रिसर्च बेशक चल रहे हो, लेकिन अभी तक इसका कोई उपचार नहीं है. फिर भी रेबीज की रोकथाम के लिए अस्पतालों में किसी भी जंगली जानवर के काटे जाने के 72 घंटे तक घाव की सफाई कर उस पर बीटाडीन लगाई जाती है, ताकि घाव को फैलने से रोका जा सके.
जंगली जानवर के काटे जाने के बाद एंटी रेबीज वैक्सीन के इंजेक्शन लगाए जाते हैं. जिनको नियमानुसार पहला इंजेक्शन 72 के अंदर, दूसरा तीन दिन बाद, तीसरा सात दिन बाद, चौथा 14 दिन बाद व पांचवा 28 दिन के बाद लगाया जाता है, लेकिन अब पांचवा इंजेक्शन चिकित्सक की सलाह से ही लगाया जाता है.