कुरुक्षेत्र: अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में देश की सांस्कृतिक विविधता देखने को मिल रही है. यहां पर देश भर से कलाकार आकर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. ये कलाकार धर्मनगरी में आए हुए सैलानियों का मनोरंजन कर रहे हैं. पुरुषोत्तम भाग में बने हरियाणा पवेलियन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इस पवेलियन में हरियाणवी संस्कृति की साफ झलक देखी जा सकती (haryana pavilion in Gita Mahotsav)है. हरियाणा के खान-पान से लेकर पहनावे, पुराने आभूषण जैसी सभी चीजों को दर्शाया गया है जो लोगों को खूब पसंद आ रही है.
इंटरनेशनल गीता जयंती महोत्सव (International Gita Jayanti Mahotsav In Kurukshetra) में बनाए गए पवेलियन में हरियाणा के पुराने गांव की झलक मिलती है. यहां चूल्हे पर खाना बनाया जा रहा है. पेड़ की टहनियों से टोकरे बनाए जा रहे हैं. खाट भरी जा रही है. इन सभी पर हाथ से काम करने वाले लोगों ने कहा कि जैसे हमारी खाट भरने की कला है वह लुप्त होती जा रही है. आने वाली पीढ़ियों को नहीं पता कि हमारी खाट जिसको चारपाई बोलते हैं उसकी बिनाई कैसे की जाती है. आने वाले कुछ समय में यह बिल्कुल लुप्त हो जाएगी क्योंकि खाट की जगह बेड और फोल्डिंग ने ले ली है. पहले महिला और पुरुष के पहने जाने वाले कपड़े जैसे- चोली दामन, धोती, पजामा, कुर्ता पगड़ी सभी को यहां पर रखा गया है.
ये एक धरोहर के रूप में काम कर रहा है. इसके बारे में हमारी आने वाली पीढ़ियों को पता चलता है कि कुछ दशकों पहले हमारे जो लोग थे वह कैसी वेशभूषा धारण करते थे. यहां पर पुराने कांसी के बर्तन भी रखे हुए हैं. आज के समय में यह घरों से बर्तन विलुप्त होते जा रहे हैं लेकिन कहीं ना कहीं स्टाल में लगाने पर एक संदेश भी दिया जा रहा है कि हमारे जो पुराने बर्तन होते थे वह कैसे होते थे. उनमें भोजन बनाने से लेकर खाने तक अच्छा रहता था. बुजुर्गों का मानना है कि इन बर्तनों में खाना बनाने से बीमारियां कम होती थी. पवेलियन में दूसरी तरफ हरियाणा के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी चल रहे हैं. इसमें कलाकार अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं. कलाकारों ने प्रस्तुतियों के जरिए प्रदेश की संस्कृति का गुणगान किया. प्रस्तुतियों पर प्रतिभागियों ने खूब वाहवाही बटोरी.
हरियाणा पवेलियन में पानी भरने से लेकर खेतों में खड़ी फसल का पहरा देने तक की सभी चीजों को भी दर्शाया गया है. क्योंकि अब वह समय नहीं रहा जो आज से कई दशक पहले हरियाणा में होता था. जैसे- जैसे समय बदल रहा है. वैसे- वैसे हरियाणा में रहन-सहन बदल रहा है. गीता जयंती में हरियाणवी संस्कृति (haryanvi culture in gita jayanti festival) को खूब बारीकी से दर्शाया गया है. यहां पर एक साइड में हरियाणा के खानपान को भी तैयार किया जा रहा है. इसको वह यहां पर आए हुए शैलानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है. यहां पर सरसों के साग के साथ मक्के और बाजरे की रोटी बनाई जा रही है जिसको लोग खूब पसंद कर रहे हैं. कहीं ना कहीं खानपान के जरिए भी हरियाणा पवेलियन में राज्य की पुरानी झलक देखने को मिल रही है.
गीता जयंती में आए सैलानियों का कहना है कि जिसने कुछ दशकों पहले का हरियाणा नहीं देखा वह एक बार हरियाणा पवेलियन में आए तो उसको अपने पुराने हरियाणा की झलक यहां देखने को मिलेगी. कहीं ना कहीं हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए यह जरूरी भी है. उनको पता होना चाहिए कि उनका हरियाणा कैसा होता था. उनके हरियाणा की संस्कृति कैसी होती थी.
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