कुरुक्षेत्र: भारत के पौराणिक और गौरवमई इतिहास में हरियाणा का महत्वपूर्ण स्थान है. हरियाणे का कण-कण प्रदेश का गौरवशाली इतिहास, संस्कृति कला, विकास सुनी-अनसुनी कहानियों से भरा हुआ है. कुरुक्षेत्र जिले में महाभारत का युद्ध लड़ा गया था. किस्सा हरियाणा के इस एपिसोड में हम आपको महाभारत से जुड़े प्रसंग के बारे में बताने जा रहे है.
जब भीष्म पितामह ने जल पीने की इच्छा व्यक्त की. तो सिपाहियों को आदेश देकर जल लाने के लिए कहा गया. मगर भीष्म पितामह ने अपनी इच्छा व्यक्त की कि, जिसने मुझे यह सरसैया दी है, वहीं मुझे जल पिलायेगा. तब अर्जुन ने धरती पर बाण चलाकर गंगा प्रकट की. और भिष्म पितामह की प्यास बुझाई इसलिए इसे भीष्म कुंड कहा जाता है.
महाभारत में ऐसे हुआ है इस प्रसंग का जिक्र
बाणों से छलनी भीष्म पितामह युद्ध के मैदान में थे. वो बाणों की सरसैय्या पर थे, लेकिन उनके प्राण नहीं निकले. वो एक श्राप झेल रहे थे. इस बारे में युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण को रोक कर पितामाह ने श्रीकृष्ण से पूछा था, "मधुसूदन, मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं सरसैया पर पड़ा हुआ हूँ?'' ये बात सुनकर मधुसूदन मुस्कराये और पितामह भीष्म से पूछा, 'पितामह आपको कुछ पूर्व जन्मों का ज्ञान है?'' इस पर पितामह ने कहा, 'हाँ''। श्रीकृष्ण मुझे अपने सौ पूर्व जन्मों का ज्ञान है कि मैंने किसी व्यक्ति का कभी अहित नहीं किया.
इस पर कृष्ण बोले पितामह आपने ठीक कहा कि आपने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया, लेकिन एक सौ एक वें पूर्वजन्म में आज की तरह आपने तब भी राजवंश में जन्म लिया था और अपने पुण्य कर्मों से बार-बार राजवंश में जन्म लेते रहे, लेकिन उस जन्म में जब आप युवराज थे, तब एक बार आप शिकार खेलकर जंगल से निकल रहे थे, तभी आपके घोड़े के अग्रभाग पर एक सर्प वृक्ष से नीचे गिरा. आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीठ के पीछे फेंक दिया, उस समय वह बेरिया के पेड़ पर जा कर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गये क्योंकि पीठ के बल ही जाकर गिरा था?
कृष्ण ने बताया कि सांप जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस तरह सांप अठारह दिन जींदा रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा, ' जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ, ठीक इसी प्रकार उसे भी कष्ट हो'' तो, हे पितामह भीष्म! तुम्हारे पुण्य कर्मों की वजह से आज तक तुम पर सर्प का श्राप लागू नहीं हो पाया, लेकिन हस्तिनापुर की राज सभा में द्रोपदी का चीर-हरण होता रहा और आप मूक दर्शक बनकर देखते रहे. जबकि आप सक्षम थे उस अबला पर अत्याचार रोकने में, लेकिन आपने दुर्योधन और दुःशासन को नहीं रोका. इसी वजह से पितामह आपके सारे पुण्यकर्म खत्म हो गये और सर्प का 'श्राप' आप पर लागू हो गया.
इस स्थान से जुड़ी एक और कहानी का है जिक्र
कहा जाता है कि अर्जुन ने यहां बाण चलाकर गंगा को प्रकट किया था. कहा ये भी जाता है कि युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ घोड़े लगातार दौड़ते रहने के कारण थक गए थे. तब श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने इसी स्थान पर अपने बाण से प्रहार कर गंगा को प्रकट किया था तब जाकर श्रीकृष्ण के घोड़ों की प्यास बुझी थी. यहां दक्षिण भारत के लोगों की काफी मान्यता है. दक्षिण भारत से लोग इस तीर्थ पर पहुंच कर पूजा अर्चना करते हैं. फिलहाल यहां जिर्णाद्धार का काम चल रहा है.
बाण गंगा का जिक्र श्रीमद्भागवत गीता में भी विस्तृत रूप से किया है. इस तीर्थ स्थान का हिंदू धर्म में काफी मान्यता है. फिलहाल किस्सा हरियाणे का के इस एपिसोड में इतना ही. अगली बार आपको रूबरू करवाएं हरियाणा के किसी और नए किस्से से.
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