करनाल: हिन्दू धर्म में एकादशी का काफी महत्व बताया जाता है. इस दिन व्रत रखने व पूजा करने से इंसान के कई प्रकार के दोष दूर होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है. इसलिए विजया एकादशी का भी धार्मिक रूप से बड़ा महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि इस पावन तिथि को जो कोई भक्त पूर्ण विधि विधान के साथ व्रत का पालन करता है तो उस व्रती को उसके हर एक कार्य में सफलता प्राप्त होती है. इन्हीं एकादशी में से एक है विजया एकादशी. विजया एकादशी के नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि यह व्रत विजय प्रादन करने वाला व्रत है. इस व्रत का वर्णन पद्म पुराण और स्कन्द पुराण किया गया है. इस व्रत को करने वाल अपने शत्रुओं पर विजया पा सकता है. विजया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.
विजया एकादशी व्रत और शुभ मुहूर्त: हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि की शुरुआत 16 फरवरी को सुबह 5 बजकर 32 मिनट पर हो रही है और अंत 17 फरवरी को मध्यरात्रि 2 बजकर 51 मिनट तक होगा. ऐसे में दशमी तिथि को क्षय हो रहा है और उदया तिथि के आधार पर एकादशी का व्रत 16 फरवरी को ही किया जाएगा. वैष्णव समुदाय की एकादशी 17 फरवरी को ही मनाई जाएगी. विजया एकादशी का पारण 17 फरवरी को सुबह 08 बजकर 01 मिनट से लेकर 09 बजकर 12 मिनट तक रहेगा.
विजया एकादशी पूजा विधि: विजया एकादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. व्रत करने वाले व्यक्ति को सुबह उठने के बाद सबसे नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए. एकादशी से एक दिन पूर्व एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान्य रखें. सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी का कलश उस पर स्थापित करें. एकादशी के दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें. पंचपल्लव कलश में रखकर भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें. धूप, दीप, चंदन, फल, फूल व तुलसी आदि से श्री हरि की पूजा करें. उपवास के साथ-साथ भगवन कथा का पाठ करें. रात्रि में श्री हरि के नाम का ही भजन कीर्तन करते हुए जगराता करें.
द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन आदि करवाएं व कलश को दान कर दें. इसके बाद व्रत का पारण करें. व्रत से पूर्व सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. इस प्रकार विधि पूर्वक उपवास रखने से उपासक को कठिन से कठिन हालातों पर भी विजय प्राप्त होती है. इस दिन 'विष्णु सहस्त्रनाम' और 'नारायण स्तोत्र' का पाठ करना शुभ माना जाता है.
विजया एकादशी व्रत कथा: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार विजया एकादशी व्रत कथा कुछ इस प्रकार है. ऐसा कहा जाता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे, तब मर्यादा पुरुषोत्तम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की परन्तु समुद्र देव ने श्री राम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया. तब श्री राम ने वकदालभ्य मुनि की आज्ञा के अनुसार विजय एकादशी का व्रत विधि पूर्वक किया जिसके प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया. इसके साथ ही विजया एकादशी का व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में सहायक सिद्ध हुआ. तभी से इस तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है.
विजया एकादशी का महत्व: हिंदू धर्म में सभी व्रतों में एकादशी का व्रत सबसे प्राचीन माना जाता है. पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था कि, 'एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है.' मान्यता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक जाते हैं. साथ ही व्रती को हर कार्य में सफलता प्राप्त होती ही है और उसे पूर्व जन्म से लेकर इस जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है.