करनाल: हिंदू पंचांग के आधार पर ही सनातन धर्म में प्रत्येक दिन की गणना की जाती है और उस आधार पर ही प्रत्येक व्रत ओर त्योहार मनाए जाते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार 29 जुलाई को सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी 2023 है. वहीं, सावन 2 महीने के होने के चलते सावन महीने में अधिक मास भी पड़ रहा है. अधिक मास में आने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. सनातन धर्म में पद्मिनी एकादशी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा अर्चना की जाती है. तो जानिए पद्मिनी एकादशी का व्रत शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि.
पद्मिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त: हिंदू पंचांग के अनुसार अधिक मास शुक्ल एकादशी तिथि का आरंभ 28 जुलाई को दोपहर 02.51 बजे शुरू होकर अधिक मास शुक्ल एकादशी तिथि समाप्त 29 जुलाई को दोपहर 01.05 बजे होगा. पद्मिनी एकादशी व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त सुबह 05.41 बजे से 30 जुलाई को सुबह 08.24 बजे होगा. सूर्य उदय तिथि के साथ कोई भी दिन मनाया जाता है, इसलिए पद्मिनी एकादशी का व्रत 29 जुलाई को रखा जाएगा.
पद्मिनी एकादशी का महत्व: हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि, सभी एकादशी में से पद्मिनी एकादशी का बहुत ज्यादा महत्व होता है. क्योंकि, यह अधिक मास में आती है. अधिक मास विष्णु भगवान का प्रिय महीना होता है. एकादशी का व्रत विष्णु भगवान को ही समर्पित होता है, इसलिए इसका ज्यादा महत्व हो जाता है. पद्मिनी एकादशी के दिन व्रत के दौरान भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करने से भगवान विष्णु अपनी कृपा अपने भक्त और उसके परिवार पर बनाए रखते हैं.
पद्मिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी माता की पूजा का विशेष महात्म्य: भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजन किया जाता है. मान्यता है कि, इस दिन दान करने से इंसान के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनकी कृपा उनके परिवार पर बनी रहती है. हिंदू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत 3 साल में एक बार आता है. माना जाता है कि जिस इंसान की मनोकामना पूर्ण नहीं हो रही उसको एकादशी का व्रत रखना चाहिए. इससे उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. ऐसा करने से मनुष्य के यश और कीर्ति में भी वृद्धि होती है. मान्यता है कि जो भी इंसान यह व्रत रखता है भगवान विष्णु उसके सभी पापों को नष्ट कर देते हैं और वह मनुष्य बैकुंठ में स्थान प्राप्त करता है. यह भी मान्यता है कि जो भी इंसान नि:संतान है, उस इंसान को यह व्रत जरूर रखना चाहिए, क्योंकि पद्मिनी एकादशी व्रत रखने से इंसान को पुत्र की प्राप्ति भी होती है.
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा: शास्त्रों में बताया गया है कि, माहिष्मती पुरी के राजा कृतवीर्य की 100 रानियां थीं. लेकिन, राज्य को किसी भी रानी से पुत्र सुख की प्राप्ति नहीं हुई. ऐसे में राजा कृतवीर्य ने एक साधु के कहने पर गंधमान पर्वत पर जाकर तपस्या करने का फैसला लिया. राजा कृतवीर्य के साथ उनकी एक रानी पद्मिनी भी वन जाने के लिए तैयार हो गईं. दोनों राजपाट त्याग कर नगर से निकल गए और गंधमादन पर्वत पर चले गए. राजा ने 10,000 साल तक तपस्या की थी. लेकिन, उसके बावजूद भी उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई.
एक दिन अनुसूया ने रानी पद्मिनी से कहा कि उसको मल मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन विधि पूर्वक एकादशी का व्रत रखना चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए. ऐसा करने से पुत्र की प्राप्ति होगी. इसके बाद रानी ने मल मास के शुक्ल एकादशी का व्रत रखा, जिसके चलते भगवान विष्णु रानी पद्मिनी से प्रसन्न हो गए और उनको पुत्र प्राप्ति के लिए आशीर्वाद दे दिया. इसके बाद रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. मान्यता है कि तभी से पद्मिनी एकादशी का व्रत चलता आ रहा है. मान्यता है कि पद्मिनी एकादशी का व्रत वंश बढ़ोतरी के लिए भी रखा जाता है.
पद्मिनी एकादशी व्रत पूजा विधि: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि, पद्मिनी एकादशी के दिन मनुष्य को जल्दी सूर्योदय से पहले स्नान इत्यादि करके व्रत रखने का प्रण लेना चाहिए. उसके बाद अपने घर के मंदिर में या विष्णु भगवान के मंदिर में जाकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा अर्चना करनी चाहिए. इस दौरान भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीली मिठाई, पीले फल, पीले फूल, चंदन, दुर्वा अर्पित करनी चाहिए और उनके आगे देसी घी का दीपक जलाना चाहिए.
एकादशी के दिन करें ये काम: एकादशी के दिन व्रत रखने वाले मनुष्य को पूरा दिन बिना अन्न के रहना होता है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और आरती करें और विष्णु चालीसा का भी पाठ करें. शाम के समय भगवान विष्णु की आरती करने बाद व्रत वाले फल खा सकते हैं. वहीं, अगले दिन व्रत के पारण के समय भगवान विष्णु को भोग लगाने बाद गरीब, जरूरतमंद और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और उनको अपनी इच्छा अनुसार दान देना चाहिए. इसके बाद व्रत का पारण करें.