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BKU protest in Karnal: शामलात देह और जुमला मुस्तरका मालकान भूमि वापस लेने के खिलाफ भाकियू का प्रदर्शन - what is shamlat deh land

शामलात देह व जुमला मुस्तरका मालकान भूमि (Jumla Mushtarka Malkan Bhoomi) किसानों से वापस लेकर दोबारा पंचायतों के नाम करने के फैसले के खिलाफ किसान सड़क पर उतरने लगे हैं. इसी के विरोध में करनाल में भारतीय किसान यूनियन धरना शुरू कर दिया है.

BKU protest in Karnal
भाकियू का सरकार के खिलाफ प्रदर्शन
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Published : Jul 25, 2022, 3:13 PM IST

करनालः भारतीय किसान यूनियन को सरकार के विरोध करने के लिए एक (BKU protest in Karnal) और मुद्दा मिल गया है. भाकियू ने सुप्रीर्म कोर्ट के आदेशों पर अमल कर रही हरियाणा सरकार के खिलाफ फिर मोर्चा खोल दिया है. सरकार ने ने शामलात देह व जुमला मुस्तरका मालकान भूमि के इंतकाल तोड़ कर पंचायतों व नगरपालिकाओं के नाम करने शुरू कर दिए हैं. किसानों ने सुप्रीम कोर्ट के (Supreme Court of india) फैसले का विरोध करते हुए तहसील स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा.

शामलात देह और जुमला मुस्तरका मालकान भूमि (Jumla Mushtarka Malkan Bhoomi) पंजाब विलेज काॅमन लैंड रेगुलेशन अधिनियम 1961 (punjab village common Land act) के तहत काश्तकारों और काब्जिों के नाम हो चुकी थी. माल रिकॉर्ड के अनुसार किसान इनके मालिक हैं और वो इनको बेच, खरीद और रेहन कर सकते हैं. इन जमीनों पर मकान, दुकान, फैक्टरी भी बनी हुई हैं. साल 1992 में तत्कालीन सरकार ने विलेज काॅमन लैंड रेगुलेशन अधिनियम 1961 में संशोधन कर जुमला मुस्तरका मालकान जमीनों को पंचायती जमीन करार दे दिया था. सरकार के इस फैसले के विरोध में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में किसानों ने याचिका डाली थी. हाईकोर्ट ने फैसला किसानो के पक्ष में दिया था.

BKU protest in Karnal
भाकियू का सरकार के खिलाफ प्रदर्शन

लेकिन 7 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से शामलात देह और जुमला मुस्तरका मालकान भूमि वापस पंचायतों और नगरपालिकाओं को करने के आदेश दिए हैं. हरियाणा सरकार के वित्त आयुक्त ने इस फैसले को लागू करवाने के लिए 21 जून 2022 को सभी जिला उपायुक्तों को लेटर जारी कर दिया था. इसके विरोध में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. किसान मांग कर रहे हैं कि इस फैसले को लागू न किया जाए. किसानों की मांग है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को अध्यादेश के जरिए कैंसिल करे.

इन जमीनों पर पीढ़ियों से काश्तकारी कर रहे किसान बेदखल हो जाएंगे और उनकी भूमि उनसे छिन जाएगी. ये भूमि आजादी के बाद हुई पहली चकबंदी के बाद से किसानों ने कोर्ट में केस जीतकर अपने नाम तकसीम करवाई है. बहुत बार आगे खीरीदी बेची भी जा चुकी है. इस भूमि पर मकान, दुकान और फैक्ट्री भी बनाई जा चुकी है. इसलिए इन जमीनों को किसानों से वापस लेने का फैसला आमजन के हित में नहीं है. राकेश बैंस, प्रवक्ता, भारतीय किसान यूनियन (चढूनी)

क्या है शामलात देह जमीन- शामलात देह जमीन (what is shamlat deh land) वो होती है जिसे आजादी से पहले से खेती या अन्य किसी कार्य में कोई प्रयोग करता आ रहा है. आजादी के बाद ये जमीन काश्तकारों और काबिज लोगों के नाम कर दी गई थी. दशकों से इन जमीनों पर उन्हीं का कब्जा है और जमीनें अब उनके नाम हैं.

जुमला मुश्तरका मालकान भूमि- ये वो जमीनें हैं जिन्हें गांव के लोगों ने सामाजिक कार्यो जैसे गौशाला, तालाब व अन्य किसी काम के लिए लिया था. इनमें से जो जमीन प्रयोग के बाद बची वो उन्हीं काश्तकारों और काब्जिों के नाम हैं जिन्होंने दी थी. इन्हें जमीनों को जुमला मुस्तरका मालकान भूमि कहा जाता है. इन जमीनों को भी सुप्रीम कोर्ट ने पंचायतों और नगरपालिकाओं के नाम करने के आदेश दिए हैं.

करनालः भारतीय किसान यूनियन को सरकार के विरोध करने के लिए एक (BKU protest in Karnal) और मुद्दा मिल गया है. भाकियू ने सुप्रीर्म कोर्ट के आदेशों पर अमल कर रही हरियाणा सरकार के खिलाफ फिर मोर्चा खोल दिया है. सरकार ने ने शामलात देह व जुमला मुस्तरका मालकान भूमि के इंतकाल तोड़ कर पंचायतों व नगरपालिकाओं के नाम करने शुरू कर दिए हैं. किसानों ने सुप्रीम कोर्ट के (Supreme Court of india) फैसले का विरोध करते हुए तहसील स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा.

शामलात देह और जुमला मुस्तरका मालकान भूमि (Jumla Mushtarka Malkan Bhoomi) पंजाब विलेज काॅमन लैंड रेगुलेशन अधिनियम 1961 (punjab village common Land act) के तहत काश्तकारों और काब्जिों के नाम हो चुकी थी. माल रिकॉर्ड के अनुसार किसान इनके मालिक हैं और वो इनको बेच, खरीद और रेहन कर सकते हैं. इन जमीनों पर मकान, दुकान, फैक्टरी भी बनी हुई हैं. साल 1992 में तत्कालीन सरकार ने विलेज काॅमन लैंड रेगुलेशन अधिनियम 1961 में संशोधन कर जुमला मुस्तरका मालकान जमीनों को पंचायती जमीन करार दे दिया था. सरकार के इस फैसले के विरोध में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में किसानों ने याचिका डाली थी. हाईकोर्ट ने फैसला किसानो के पक्ष में दिया था.

BKU protest in Karnal
भाकियू का सरकार के खिलाफ प्रदर्शन

लेकिन 7 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से शामलात देह और जुमला मुस्तरका मालकान भूमि वापस पंचायतों और नगरपालिकाओं को करने के आदेश दिए हैं. हरियाणा सरकार के वित्त आयुक्त ने इस फैसले को लागू करवाने के लिए 21 जून 2022 को सभी जिला उपायुक्तों को लेटर जारी कर दिया था. इसके विरोध में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. किसान मांग कर रहे हैं कि इस फैसले को लागू न किया जाए. किसानों की मांग है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को अध्यादेश के जरिए कैंसिल करे.

इन जमीनों पर पीढ़ियों से काश्तकारी कर रहे किसान बेदखल हो जाएंगे और उनकी भूमि उनसे छिन जाएगी. ये भूमि आजादी के बाद हुई पहली चकबंदी के बाद से किसानों ने कोर्ट में केस जीतकर अपने नाम तकसीम करवाई है. बहुत बार आगे खीरीदी बेची भी जा चुकी है. इस भूमि पर मकान, दुकान और फैक्ट्री भी बनाई जा चुकी है. इसलिए इन जमीनों को किसानों से वापस लेने का फैसला आमजन के हित में नहीं है. राकेश बैंस, प्रवक्ता, भारतीय किसान यूनियन (चढूनी)

क्या है शामलात देह जमीन- शामलात देह जमीन (what is shamlat deh land) वो होती है जिसे आजादी से पहले से खेती या अन्य किसी कार्य में कोई प्रयोग करता आ रहा है. आजादी के बाद ये जमीन काश्तकारों और काबिज लोगों के नाम कर दी गई थी. दशकों से इन जमीनों पर उन्हीं का कब्जा है और जमीनें अब उनके नाम हैं.

जुमला मुश्तरका मालकान भूमि- ये वो जमीनें हैं जिन्हें गांव के लोगों ने सामाजिक कार्यो जैसे गौशाला, तालाब व अन्य किसी काम के लिए लिया था. इनमें से जो जमीन प्रयोग के बाद बची वो उन्हीं काश्तकारों और काब्जिों के नाम हैं जिन्होंने दी थी. इन्हें जमीनों को जुमला मुस्तरका मालकान भूमि कहा जाता है. इन जमीनों को भी सुप्रीम कोर्ट ने पंचायतों और नगरपालिकाओं के नाम करने के आदेश दिए हैं.

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