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नार्दन ग्लास जमीन विवादः जमीन वापस लेने पर अड़े किसान, सरकार को आंदोलन की चेतावनी

नार्दन ग्लास के लिए 47 साल पहले 44 एकड़ जमीन में से 28 एकड़ जमीन को किसानों ने वापस लेने के लिए सांखौल गांव में पंचायत की. इस दौरान फैसला लिया गया कि सरकार को एक इंच की जमीन भी नहीं देंगे, क्योंकि किसी ने भी सरकार से एक रुपया भी मुआवजा नहीं लिया है. इस कारण किसान ही जमीन के मालिक है.

northern glass land dispute
नार्दन ग्लास जमीन विवादः जमीन वापस लेने पर अड़े किसान
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Published : Dec 24, 2019, 1:22 PM IST

झज्जरः बहादुरगढ़ के साथ सटे सांखौल गांव के किसान अपनी 44.79 एकड़ जमीन को लेकर आंदोलन पर उतर गए हैं. किसानों का कहना है कि जमीन उनकी है, जिसका उन्होंने मुआवजा तक नहीं लिया और सरकार जबरदस्ती उस पर प्लॉट काटकर मुनाफा कमाना चाहती है.

इसको लेकर पहले ग्राम सभा भी हुई और उसके बाद किसानों ने एचएसआईआईडीसी के दफ्तर पर जाकर प्रदर्शन कर अपनी जमीन वापस लेने के लिए ज्ञापन भी दिया है. किसानों ने चेतावनी दी है कि सरकार ने अगर जमीन वापस नहीं की तो मजबूरी में उन्हें धरना प्रदर्शन भी करना पड़ सकता है.

नार्दन ग्लास जमीन विवादः जमीन वापस लेने पर अड़े किसान

किसानों ने वापस मांगी जमीन
नार्दन ग्लास के लिए 47 साल पहले 44 एकड़ जमीन में से 28 एकड़ जमीन को किसानों ने वापस लेने के लिए सांखौल गांव में पंचायत की. इस दौरान फैसला लिया गया कि सरकार को एक इंच की जमीन भी नहीं देंगे, क्योंकि किसी ने भी सरकार से एक रुपया भी मुआवजा नहीं लिया है.

इस कारण किसान ही जमीन के मालिक हैं. पंचायत में कहा गया कि सरकार को भी किसानों और गांव की हालत को लेकर दया का भाव रखना चाहिए. अपनी इन्हीं मांगों के साथ सोमवार को किसान एचएसआआईडीसी कार्यालय पहुंचे और ज्ञापन सौंपा.

विधायक से मिले ग्रामीण
सांखोल गांव की पंचायत ने समस्या को लेकर विधायक राजेंद्र जून से भी मुलाकात की थी. ग्रामीणों ने बताया कि सांखौल ग्राम पंचायत की 28 एकड़ और गांववासियों की 16 एकड़ जमीन नार्दन ग्लास कंपनी के नाम से अधिग्रहित की गई थी.

उस दौरान ग्रामीणों को झूठा आश्वासन दिया था कि कंपनी स्थापित होने के बाद ग्रामीणों को रोजगार दिया जाएगा. ग्राम पंचायत ने विधायक को बताया कि नार्दन ग्लास कंपनी के नाम अधिग्रहित की गई इस जमीन पर आज तक ये कंपनी शुरू नहीं हो पाई है.

ये भी पढ़ेंः गृह मंत्री अनिल विज की नाक तले भ्रष्टाचार! अंबाला छावनी नगर परिषद ईओ को किया गया सस्पेंड

प्लॉट धारकों को मिली राहत
नार्दन ग्लास फैक्ट्रियों की जमीन पर व्यापार कर रहे करीब 110 प्लाट धारकों और उनके परिजनों को हाईकोर्ट की तरफ से फिलहाल कुछ राहत मिली है. फिलहाल यहां खाली पड़े प्लाटों की नीलामी के लिए 15 दिसंबर से आवेदन का सिलसिला जारी है और आज 24 दिसंबर को आवेदन की अंतिम तारिख है. नार्दन ग्लास वाली जमीन पर बसी फैक्ट्रियों को रेगुलराइज करने के लिए कलेक्टर रेट और मार्केट रेट की बजाय नीलामी से निर्धारित रेट पर जमीन दी जानी है.

HC के आदेशानुसार होगा फैसला- एजीएम
एचएसआईआईडीसी के एजीएम विजय गोदारा का कहना है कि जिस जमीन पर कोई स्टे नहीं है उस पर ही औद्योगिक प्लाट के लिए आवेदन मांगे गए हैं. हाईकोर्ट में भी लोगों ने याचिका डाली थी लेकिन हाईकोर्ट ने ऑक्शन प्रोसेस को इस शर्त पर जारी रखने को कहा है कि विभाग अलॉटमेंट का आखिरी फैसला हाईकोर्ट के आदेशानुसार ही किया लेगा.

क्या है पूरा मामला
तत्कालीन बंसीलाल सरकार ने साल 1971-72 में दिल्ली-रोहतक रोड पर सांखौल की पंचायती जमीन में करीब 44 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. ये जमीन नार्दर्न ग्लास फैक्टरी को इस शर्त पर दी गई थी कि वो यहां पर फैक्ट्री की स्थापना करे और रोजगार प्रदान करे.

सरकार के उद्योग विभाग व फैक्ट्री प्रबंधन के बीच हुए करार में ये शर्त रखी थी कि अगर इस जमीन का प्रयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया या फिर बेचा तो सरकार इस जमीन को रिज्यूम कर लेगी.

बता दें कि कई सालों तक ये जमीन ऐसे ही पड़ी रही और यहां पर कोई फैक्ट्री नहीं लगाई गई. कुछ साल बाद इस जमीन को बेच दिया गया. जब इस बात का पता गांव की पंचायत व सरकार को लगा तो सरकार ने इस जमीन को रिज्यूम कर लिया और अब किसान अपनी जमीन वापसी की मांग कर रहे हैं.

झज्जरः बहादुरगढ़ के साथ सटे सांखौल गांव के किसान अपनी 44.79 एकड़ जमीन को लेकर आंदोलन पर उतर गए हैं. किसानों का कहना है कि जमीन उनकी है, जिसका उन्होंने मुआवजा तक नहीं लिया और सरकार जबरदस्ती उस पर प्लॉट काटकर मुनाफा कमाना चाहती है.

इसको लेकर पहले ग्राम सभा भी हुई और उसके बाद किसानों ने एचएसआईआईडीसी के दफ्तर पर जाकर प्रदर्शन कर अपनी जमीन वापस लेने के लिए ज्ञापन भी दिया है. किसानों ने चेतावनी दी है कि सरकार ने अगर जमीन वापस नहीं की तो मजबूरी में उन्हें धरना प्रदर्शन भी करना पड़ सकता है.

नार्दन ग्लास जमीन विवादः जमीन वापस लेने पर अड़े किसान

किसानों ने वापस मांगी जमीन
नार्दन ग्लास के लिए 47 साल पहले 44 एकड़ जमीन में से 28 एकड़ जमीन को किसानों ने वापस लेने के लिए सांखौल गांव में पंचायत की. इस दौरान फैसला लिया गया कि सरकार को एक इंच की जमीन भी नहीं देंगे, क्योंकि किसी ने भी सरकार से एक रुपया भी मुआवजा नहीं लिया है.

इस कारण किसान ही जमीन के मालिक हैं. पंचायत में कहा गया कि सरकार को भी किसानों और गांव की हालत को लेकर दया का भाव रखना चाहिए. अपनी इन्हीं मांगों के साथ सोमवार को किसान एचएसआआईडीसी कार्यालय पहुंचे और ज्ञापन सौंपा.

विधायक से मिले ग्रामीण
सांखोल गांव की पंचायत ने समस्या को लेकर विधायक राजेंद्र जून से भी मुलाकात की थी. ग्रामीणों ने बताया कि सांखौल ग्राम पंचायत की 28 एकड़ और गांववासियों की 16 एकड़ जमीन नार्दन ग्लास कंपनी के नाम से अधिग्रहित की गई थी.

उस दौरान ग्रामीणों को झूठा आश्वासन दिया था कि कंपनी स्थापित होने के बाद ग्रामीणों को रोजगार दिया जाएगा. ग्राम पंचायत ने विधायक को बताया कि नार्दन ग्लास कंपनी के नाम अधिग्रहित की गई इस जमीन पर आज तक ये कंपनी शुरू नहीं हो पाई है.

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प्लॉट धारकों को मिली राहत
नार्दन ग्लास फैक्ट्रियों की जमीन पर व्यापार कर रहे करीब 110 प्लाट धारकों और उनके परिजनों को हाईकोर्ट की तरफ से फिलहाल कुछ राहत मिली है. फिलहाल यहां खाली पड़े प्लाटों की नीलामी के लिए 15 दिसंबर से आवेदन का सिलसिला जारी है और आज 24 दिसंबर को आवेदन की अंतिम तारिख है. नार्दन ग्लास वाली जमीन पर बसी फैक्ट्रियों को रेगुलराइज करने के लिए कलेक्टर रेट और मार्केट रेट की बजाय नीलामी से निर्धारित रेट पर जमीन दी जानी है.

HC के आदेशानुसार होगा फैसला- एजीएम
एचएसआईआईडीसी के एजीएम विजय गोदारा का कहना है कि जिस जमीन पर कोई स्टे नहीं है उस पर ही औद्योगिक प्लाट के लिए आवेदन मांगे गए हैं. हाईकोर्ट में भी लोगों ने याचिका डाली थी लेकिन हाईकोर्ट ने ऑक्शन प्रोसेस को इस शर्त पर जारी रखने को कहा है कि विभाग अलॉटमेंट का आखिरी फैसला हाईकोर्ट के आदेशानुसार ही किया लेगा.

क्या है पूरा मामला
तत्कालीन बंसीलाल सरकार ने साल 1971-72 में दिल्ली-रोहतक रोड पर सांखौल की पंचायती जमीन में करीब 44 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. ये जमीन नार्दर्न ग्लास फैक्टरी को इस शर्त पर दी गई थी कि वो यहां पर फैक्ट्री की स्थापना करे और रोजगार प्रदान करे.

सरकार के उद्योग विभाग व फैक्ट्री प्रबंधन के बीच हुए करार में ये शर्त रखी थी कि अगर इस जमीन का प्रयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया या फिर बेचा तो सरकार इस जमीन को रिज्यूम कर लेगी.

बता दें कि कई सालों तक ये जमीन ऐसे ही पड़ी रही और यहां पर कोई फैक्ट्री नहीं लगाई गई. कुछ साल बाद इस जमीन को बेच दिया गया. जब इस बात का पता गांव की पंचायत व सरकार को लगा तो सरकार ने इस जमीन को रिज्यूम कर लिया और अब किसान अपनी जमीन वापसी की मांग कर रहे हैं.

Intro: ना तो पंचायत को और ना ही किसानों को मुआवजा दिया गया। बावजूद इसके सरकारी हठधर्मिता ये कि पंचायती जमीन पर औद्योगिक प्लाट काटे जा रहे हैं। किसान और ग्राम पंचायत अब विरोध में आमने सामने आ खड़ी हुई है। ये पूरा किस्सा सांखौल गांव का है। जहां 1973 में तत्कालीन बंसीलाल सरकार ने पंचायत और किसानों की कुल मिलाकर 44.79 एकड़ जमीन को एक्वायर किया था। इसमें 28 एकड़ जमीन पंचायती चरागाह की थी और करीब साढ़े 16 एकड़ जमीन किसानों की थी। किसानों ने अब जमीन वापिस पाने के लिये आन्दोलन की चेतावनी दी है।Body:बहादुरगढ़ शहर के साथ सटे सांखौल गांव की बेशकीमती 44.79 एकड़ जमीन को लेकर किसान आन्दोलन पर अमादा हो गये हैं। किसानों का कहना है कि जमीन उनकी है जिसका उन्होनंे मुआवजा तक नही लिया और सरकार जबरदस्ती उस पर प्लाट काट कर मुनाफा कमाना चाहती है। इसको लेकर पहले ग्राम सभा भी हुई और आज किसानों ने एचएसआईआईडीसी के दफ्तर पर जाकर प्रर्दशन किया और अपनी जमीन वापिस लेने के लिये ज्ञापन भी दिया है। किसानों ने चेतावनी दी है कि सरकार ने अगर जमीन वापिस नही की तो मजबूरी में उन्हे धरना प्रर्दशन भी करना पड़ सकता है।
बाईट भगवान सिंह और देवेन राठी

साल 1974 में किसानों को अधिग्रहित 44.79 एकड़ जमीन का मुआवजा 1 रूप्ये 80 पैसे प्रति गज के हिसाब से दिया गया। किसानों का कहना है कि करीब करीब 3 लाख 93 हजार रूप्ये उस वक्त पूरी जमीन का मुआवजा मिला था। मुआवजा बढ़ोतरी के लिये किसान 1979 में जिला अदालत रोहतक गये । और उसके बाद 1988 में हाईकोर्ट में गये जहां से किसानों का मुआवजा बढ़ाकर 5 रूप्ये 50 पैसे प्रति वर्ग गज कर दिया गया। जिला अदालत और हाईकोर्ट द्वारा बढ़ाया गया मुआवजा किसानों को कभी दिया ही नही गया। इसी कारण किसान 1991 में फिर से हाईकोर्ट गये। हाईकोर्ट ने 1992 में किसानों के हक में फैसला सुनाया । किसान उमेश राठी ने बताया कि हाईकोर्ट ने किसानों को बिना ब्याज का मुआवजा वापिस सरकार के पास जमा करवाने और जमीन का कब्जा लेने का आदेश दिया था। जिसके बाद 1992 में ही किसानों की जमीन का इंतकाल किसानों के नाम भी चढ़ गया था और किसान तभी से उस जमीन पर खेती कर रहे हैं।
बाईट उमेश राठी किसान और सरपंच हुक्म ंिसह

उद्योग एवं वाणिज्य विभाग ने जुलाई 2018 में 44.79 एकड़ जमीन का इंतकाल यानि म्यूटेशन अपने नाम करवा लिया और उसके करीब 6 महीने बाद उद्योग विभाग ने हरियाणा राज्य आधारभूत संरचना एवं विकास निगम यानि एचएसआईआईडीसी को जमीन सौंप दी। अब एचएसआईआईडीसी पंचायती जमीन पर औद्योगिक प्लाट काट रही है। जिसके लिये ऑनलाईन आवदेन भी 24 दिसम्बर तक मांग रखे हैं। एचएसआईआईडीसी के एजीएम विजय गोदारा का कहना है कि जिस जमीन पर कोई स्टे नही है उस पर ही औद्योगिक प्लाट के लिये आवेदन मांगे गये हैं। हाईकोर्ट में भी लोगों ने याचिका डाली थी लेकिन हाईकोर्ट ने ऑक्शन प्रौसेस को इस शर्त पर जारी रखने को कहा है कि विभाग अलॉटमैंट का आखिरी फैसला हाईकोर्ट के आदेशानुसार ही किया लेगा।
बाईट विजय गोदारा एजीएम एचएसआईआईडीसीConclusion:बहादुरगढ़ शहर के साथ सटे सांखौल गांव की बेशकीमती 44.79 एकड़ जमीन को लेकर किसान आन्दोलन पर अमादा हो गये हैं। किसानों का कहना है कि जमीन उनकी है जिसका उन्होनंे मुआवजा तक नही लिया और सरकार जबरदस्ती उस पर प्लाट काट कर मुनाफा कमाना चाहती है। इसको लेकर पहले ग्राम सभा भी हुई और आज किसानों ने एचएसआईआईडीसी के दफ्तर पर जाकर प्रर्दशन किया और अपनी जमीन वापिस लेने के लिये ज्ञापन भी दिया है।
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