झज्जर: 20 किलोमीटर पैदलचाल स्पर्धा में टोक्यो ओलंपिक के लिए चयनित हुए राहुल रोहिल्ला बहादुरगढ़ की इंदिरा मार्केट के बेहद साधारण परिवार से संबंध रखते हैं. ओलंपिक में चयन होने के बाद घर पहुंचे राहुल का स्वजनों व रोहिल्ला समाज की ओर से जोरदार स्वागत किया गया.
राहुल के घर के आर्थिक हालात नहीं थे अच्छे
इस दौरान राहुल ने अपने सफर के बारे में बताते हुए कहा कि वर्ष 2013 में जब मैंने खेलना शुरू किया था तो दिन-रात एक ही सपना देख था कि मैं भी ओलंपिक में खेलूंगा और देश के लिए पदक जीतूंगा. ये सपना उस समय अचानक टूटता हुआ दिखाई दिया जब 2016 में मेरे मां-बाप अचानक बीमार पड़ गए. पिता इलैक्ट्रिशियन का काम करते हैं और मां गृहिणी हैं, घर के हालात अच्छे नहीं थे. हर माह उनके लिए करीब 10-12 हजार रुपये की दवाई आने लगी.
मां-बाप के बीमार होने पर छोड़ना पड़ा खेल
ऐसे में मेरी डाइट और वाकिंग के लिए जूतों का खर्च मुश्किल हो गया. मां-बाप की दवा के लिए मैंने बीच में ही खेल छोड़ दिया, मगर रात-रातभर में सो नहीं पाता था. हमेशा मुझे मेरा टूटता हुआ सपना याद आ जाता था. इससे में परेशान होने लगा था. कुछ माह ऐसे ही चलता रहा.
मां-बाप ने छोड़ी अपनी बीमारी की दवा
मुझे परेशान देखकर मेरी मां ने एक दिन झूठ बोलते हुए कहा कि बेटा तू खेलने लग जा. मैं अब ठीक हो गई हूं. मेरे पिता ने भी अपनी बीमारी का खर्च आधा कर लिया और दिसंबर 2016 में मेरा गेम दोबारा शुरू करा दिया. फरवरी 2017 में खेल कोटे से जबलपुर में आर्मी की भर्ती हुई जिसमें मैं सिपाही के पद पर भर्ती हो गया. इसके बाद मुझे कोई समस्या नहीं आई और मैंने कड़ी मेहनत की और अब ओलंपिक में खेलने का मेरा सपना पूरा होने जा रहा है.
फौज की नौकरी मिलने पर हालात हुए ठीक
राहुल ने कहा कि मैं ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना चाहता हूं. इसके लिए मैंने अभी से ही पूरी तैयारी शुरू कर दी है. राहुल ने बताया कि मेरे पिता रोहताश घर में ही इलैक्ट्रिशियन की दुकान चलाते हैं और मां रामरती गृहिणी हैं. पिता जी को सांस की दिक्कत है, मां भी अक्सर बीमार रहती हैं. दोनों की दवाईयां अब भी चली हुई हैं. मेरी दो छोटी बहनें भी हैं. मगर अब मेरी फौज में नौकरी होने की वजह से कोई परेशानी नहीं होती.
2019 में जो नहीं कर पाए इस बार किया
राहुल ने बताया कि ओलंपिक क्वालीफाई करने के लिए 20 किलोमीटर पैदलचाल एक घंटा 21 मिनट में पूरी करनी होती है. वर्ष 2019 में रांची में हुई प्रतियोगिता में मैंने यह दूरी एक घंटा 21 मिनट और 59 सेकंड में पूरी की थी. 59 सेकंड का समय ज्यादा लगने के कारण मेरा ओलंपिक में चयन नहीं हो पाया, मगर एशियाड के लिए मेरा चयन हो गया. मैंने सोचा कि एशियाड में खेलकर मैं अपना चयन ओलंपिक के लिए करा लूंगा, लेकिन कोरोना के कारण ये गेम्स रद्द हो गए.
ताऊ के लड़के ने की मदद
ऐसे में मेरे पास टोक्यो ओलंपिक के लिए एक आखिरी मौका रांची में होने वाली प्रतियोगिता थी. इसे मैं किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था. इसीलिए मैंने दो बार फौज से छुट्टी ली. घर आकर ढाई घंटे के बजाय तीन घंटे कड़ा अभ्यास किया. मेरी प्रेरणा रहे ताऊ के लड़के आशीष ने तकनीकी व मानसिक तौर पर मुझे सुदृढ़ करते हुए मेरा कड़ा अभ्यास कराया.
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आशीष भी इसी स्पर्धा में जूनियर नेशनल में रिकार्ड बना चुका है. मैंने उनकी देखरेख में अभ्यास किया और रांची में एक घंटा 20 मिनट 26 सेकंड में 20 किलोमीटर की दूरी पूरी करके मैंने ना केवल रजत पदक जीता, बल्कि ओलंपिक के लिए भी अपना टिकट पक्का कराया.
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