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मजदूर से ज्यादा मजबूर हैं प्रवासी, मंडी में काम करवाकर नहीं दिए पैसे, पैदल लौट रहे घर

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Published : May 12, 2020, 7:40 PM IST

भले ही प्रदेश सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य छोड़ने की व्यवस्था कर दी है, लेकिन अभी भी हजारों मजदूर सड़कों पर देखे जा रहे हैं, जो मजबूर होकर पैदल ही अपने घर की तरफ बढ़ चले हैं. इनका कहना है कि हक के पैसे भी नहीं दे रहे ठेकेदार.

migrant labours
मंडी में काम करवाकर नहीं दिए पगार

झज्जर: हरियाणा से लगातार प्रवासियों मजदूरों को रजिस्ट्रेशन के बाद ट्रेन और बस से उनके राज्यों तक पहुंचाया रहा है. दूर राज्यों के मजदूर ट्रेन से भेजे जा रहे हैं और पड़ोसी राज्यों के प्रवासी मजदूरों को बसे के जरिए रजिस्ट्रेशन के बाद भेजा जा रहा है, लेकिन इस सब के बीच हालात के मारे इन प्रवासियों को अब काम करवाकर पैसे भी नहीं दिए जा रहे. झज्जर में पैदल जा रहे कुछ मजदूरों ने ETV भारत से कहा कि ठेकेदार ने हक के पैसे भी नहीं दे रहे हैं, ऐसे में घर से दूर रहकर काम करने का फायदा ही क्या है.

झज्जर में ETV भारत से बातचीत में मजदूरों ने कहा कि वो अनाज मंडियों में ठेकेदार के अंदर काम करते थे, इस दौरान उन्हें राशन के अलावा कोई पगार नहीं मिल रहा था. मजदूरों ने कहा कि करीब 35 हजार रुपए तक उनकी मजदूरी बनती है जो कि ठेकेदार की तरफ से नहीं दिया गया. ऐसे में उनके पास क्या उपाय है. कौन सुनेगा उनकी. मजदूरों ने ठेकेदार का नाम मनोज मोहन बताया है.

देखिए रिपोर्ट.

पढ़ें- फसल खरीद प्रक्रिया में सरकार के सफल बदलाव से कांग्रेस परेशान है: जेपी दलाल

मजदूरों ने कहा कि उनका न तो रजिस्ट्रेशन हुआ और नहीं ही शेल्टर होम की कोई सुविधा मिली, जिस वजह से अब यहां रहना उनके मुश्किल हो रहा था. बता दें कि लॉकडाउन को बुधवार को 50 दिन पूरे हो रहे हैं और इन 49 दिनों में लॉकडाउन में सबसे ज्यादा कोई वर्ग परेशान हुआ है तो वो है प्रवासी मजदूर वर्ग. सरकारों की तरफ से लगातार मदद का भरोसा दिया जा रहा है. ट्रेन और बसों से मजदूरों को भेजा भी जा रहा है, लेकिन अब मजदूरों से सब्र का बांध टूटता जा रहा है इसलिए अब वो इंतजार करने के बजाए अपने-अपने घरों की तरफ लगतार निकल रहे हैं.

झज्जर: हरियाणा से लगातार प्रवासियों मजदूरों को रजिस्ट्रेशन के बाद ट्रेन और बस से उनके राज्यों तक पहुंचाया रहा है. दूर राज्यों के मजदूर ट्रेन से भेजे जा रहे हैं और पड़ोसी राज्यों के प्रवासी मजदूरों को बसे के जरिए रजिस्ट्रेशन के बाद भेजा जा रहा है, लेकिन इस सब के बीच हालात के मारे इन प्रवासियों को अब काम करवाकर पैसे भी नहीं दिए जा रहे. झज्जर में पैदल जा रहे कुछ मजदूरों ने ETV भारत से कहा कि ठेकेदार ने हक के पैसे भी नहीं दे रहे हैं, ऐसे में घर से दूर रहकर काम करने का फायदा ही क्या है.

झज्जर में ETV भारत से बातचीत में मजदूरों ने कहा कि वो अनाज मंडियों में ठेकेदार के अंदर काम करते थे, इस दौरान उन्हें राशन के अलावा कोई पगार नहीं मिल रहा था. मजदूरों ने कहा कि करीब 35 हजार रुपए तक उनकी मजदूरी बनती है जो कि ठेकेदार की तरफ से नहीं दिया गया. ऐसे में उनके पास क्या उपाय है. कौन सुनेगा उनकी. मजदूरों ने ठेकेदार का नाम मनोज मोहन बताया है.

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मजदूरों ने कहा कि उनका न तो रजिस्ट्रेशन हुआ और नहीं ही शेल्टर होम की कोई सुविधा मिली, जिस वजह से अब यहां रहना उनके मुश्किल हो रहा था. बता दें कि लॉकडाउन को बुधवार को 50 दिन पूरे हो रहे हैं और इन 49 दिनों में लॉकडाउन में सबसे ज्यादा कोई वर्ग परेशान हुआ है तो वो है प्रवासी मजदूर वर्ग. सरकारों की तरफ से लगातार मदद का भरोसा दिया जा रहा है. ट्रेन और बसों से मजदूरों को भेजा भी जा रहा है, लेकिन अब मजदूरों से सब्र का बांध टूटता जा रहा है इसलिए अब वो इंतजार करने के बजाए अपने-अपने घरों की तरफ लगतार निकल रहे हैं.

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