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ऑनलाइन वेबिनार: कृषि वैज्ञानिकों ने कपास के मुख्य रोगों के लक्षण और समाधान बताए

'कपास फसल में कीट और रोगों का एकीकृत प्रबंधन' को लेकर हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में वेबिनार का आयोजन किया गया. वेबिनार में किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और कृषि अधिकारियों ने हिस्सा लिया.

Online webinar held at Haryana Agricultural University
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Published : Sep 4, 2020, 8:24 PM IST

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में पौध प्रजनन एवं आनुवांशिकी विभाग के कपास अनुभाग द्वारा एक ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया. वेबिनार का मुख्य विषय वर्तमान में 'कपास फसल में कीट और रोगों का एकीकृत प्रबंधन' था.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने कहा कि कपास की फसल में बेहतर उत्पादन के लिए कीट व रोगों का एकीकृत प्रबंधन जरूरी है. उन्होंने कहा कि किसान फसल के मुख्य कीट व रोगों की पहचान करने के बाद विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई दवाइयों का ही प्रयोग करें. इसके अलावा, फसल में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के बिना कीटनाशकों का छिड़काव नुकसानदायक हो सकता है.

वेबिनार के संयोजक व आनुवाशिकी एवं पौद्य प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार छाबड़ा ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया. उन्होंने बताया कि इस वेबिनार का आयोजन कपास की फसल में आने वाले कीटों व बीमारियों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत की देखरेख में आयोजित किया गया.

ये भी पढ़ें- हरियाणा में इतने प्रतिशत लोगों को कोरोना होने पर पता भी नहीं चला, खुद ही हो गए ठीक

कपास वैज्ञानिक डॉ. ओमेन्द्र सांगवान ने मंच का ऑनलाइन संचालन किया और धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया. वेबिनार के दौरान संदीप, अक्षय कुमार, तेजराम बघेल, अनिल, दीपक आदि किसान व कृषि अधिकारियों डॉ. अरूण यादव, डॉ. अजय यादव, डॉ. कुसुम चौधरी, डॉ. मंदीप राठी आदि ने विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों से कपास की फसल में मौजूदा समय में आई समस्याओं को लेकर सवाल भी किए, जिनका कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बेहतर तरीके से जवाब दिया गया.

कीट वैज्ञानिक डॉ. अनिल जाखड़ ने कपास में आने वाले कीटों के बारे में विस्तार से बताया कि कपास कि फसल में रस चूसने वाले कीड़ों में सफेद मक्खी, थ्रिप्स व हरा तेला मुख्य हैं जो फसल को नुकसान पहुचाते हैं. उन्होंने बताया कि इनमें सफेद मक्खी सबसे ज्यादा नुकसान पहुचाती है.

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में पौध प्रजनन एवं आनुवांशिकी विभाग के कपास अनुभाग द्वारा एक ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया. वेबिनार का मुख्य विषय वर्तमान में 'कपास फसल में कीट और रोगों का एकीकृत प्रबंधन' था.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने कहा कि कपास की फसल में बेहतर उत्पादन के लिए कीट व रोगों का एकीकृत प्रबंधन जरूरी है. उन्होंने कहा कि किसान फसल के मुख्य कीट व रोगों की पहचान करने के बाद विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई दवाइयों का ही प्रयोग करें. इसके अलावा, फसल में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के बिना कीटनाशकों का छिड़काव नुकसानदायक हो सकता है.

वेबिनार के संयोजक व आनुवाशिकी एवं पौद्य प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार छाबड़ा ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया. उन्होंने बताया कि इस वेबिनार का आयोजन कपास की फसल में आने वाले कीटों व बीमारियों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत की देखरेख में आयोजित किया गया.

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कपास वैज्ञानिक डॉ. ओमेन्द्र सांगवान ने मंच का ऑनलाइन संचालन किया और धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया. वेबिनार के दौरान संदीप, अक्षय कुमार, तेजराम बघेल, अनिल, दीपक आदि किसान व कृषि अधिकारियों डॉ. अरूण यादव, डॉ. अजय यादव, डॉ. कुसुम चौधरी, डॉ. मंदीप राठी आदि ने विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों से कपास की फसल में मौजूदा समय में आई समस्याओं को लेकर सवाल भी किए, जिनका कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बेहतर तरीके से जवाब दिया गया.

कीट वैज्ञानिक डॉ. अनिल जाखड़ ने कपास में आने वाले कीटों के बारे में विस्तार से बताया कि कपास कि फसल में रस चूसने वाले कीड़ों में सफेद मक्खी, थ्रिप्स व हरा तेला मुख्य हैं जो फसल को नुकसान पहुचाते हैं. उन्होंने बताया कि इनमें सफेद मक्खी सबसे ज्यादा नुकसान पहुचाती है.

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