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आधुनिक तरीकों से बदल गया किसानी का तरीका, अब पानी में भी की जा सकती है खेती - हाइड्रोपोनिक्स खेती

आज तकनीक का दायरा काफी बढ़ चुका है. इसकी बदौलत अब खेती किसानी भी पूरी तरह बदल चुकी है. कुछ दशक पहले मिट्टी के बगैर खेती करने की कोई सोच भी नहीं सकता था लेकिन अब ऐसा संभव है. बिन मिट्टी के खेती करने वाले इस तरीके हाइड्रोपोनिक्स नाम दिया गया (hydroponics technology Farming) है.

Haryana Agricultural University
विश्वविद्यालय में भी हाइड्रोपोनिक खेती के लिए शोध चल रहा है
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Published : Feb 11, 2022, 9:46 AM IST

Updated : Feb 11, 2022, 1:48 PM IST

हिसार: आए दिन नई खोज कृषि को और भी सुगम और सरल बना रही है. नई-नई तकनीकें अब खेती में प्रयोग की जा रही हैं. तकनीकों में हाइड्रोपोनिक खेती भी शामिल है. आज से कुछ दशक पहले मिट्टी के बगैर खेती करने की कोई सोच भी नहीं सकता था लेकिन अब ऐसा संभव है. इस तकनीक के जरिए सब्जी के फसल की खेती की जा रही है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (Haryana Agricultural University) में भी इसको लेकर रिसर्च चल रही है कि किन परिस्थितियों में और कैसे इस तकनीक के जरिए अच्छी गुणवत्ता की सब्जियां उगाई जा सके.

कृषि विश्वविद्यालय हिसार के वैज्ञानिक डॉ अरविंद मलिक ने बताया कि हम शुरू से ही प्रयास करते आ रहे हैं कि नई- नई तकनीकें किसानों तक पहुंचे ताकि वे अच्छी व आधुनिक खेती कर सके. इसी कड़ी में हमारे विश्वविद्यालय में भी हाइड्रोपोनिक खेती (hydroponics technology Farming) के लिए शोध चल रहा है. इसमें दो तकनीक मुख्य हैं सॉयललेस मिट्टी और डायरेक्ट पानी. इसका मुख्य फायदा यह है कि जिन लोगों के पास जमीन नहीं है या फिर जमीन में नमक ज्यादा है ऐसे में वह इस तकनीक के जरिए सब्जियों की खेती कर सकते हैं.

आधुनिक तरीकों से बदल गया किसानी का तरीका, अब पानी में भी की जा सकती है खेती

डॉ अरविंद मलिक ने कहा कि हमारे पास कई तरह के मॉडल है जिनको लेकर शोध किया जा रहा है. मौजूदा वक्त में हम अलग-अलग फसलों को इन मॉडल के जरिए लगाकर देख रहे हैं कि किस परिस्थिति में कौन सी फसल सही गुणवत्ता के साथ पैदा होती है. ऐसे में उन फसलों को परीक्षण कर जमीन में उगाई गई फसलों के साथ भी तुलना की जाती है. फिलहाल हम चेरी, टमाटर, लेट्यूस, सलाद, पत्ता व स्ट्रौबरी पर शोध कर रहे है.

Haryana Agricultural University
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है

उन्होंने कहा कि अब तक के रिसर्च में यह निकल कर सामने आया है कि लेट्यूस या सलाद पत्ता की फसल इस तकनीक से बड़ी आसानी से की जा सकती है. इसकी उपज भी बेहद बढ़िया होती है किसान चाहे तो इसका उत्पादन कर सकते हैं. यह अच्छे दाम में मार्केट में बिक जाता है. डॉक्टर अरविंद मलिक ने बताया कि हाइड्रोपोनिक तकनीक के तीन मुख्य मॉडल है. पहला डच बकेट सिस्टम. दूसरा न्यूट्रिएंट्स फिल्म तकनीक और तीसरा हाइड्रोपोनिक ग्रो टॉवर्स.

Haryana Agricultural University
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है

ये भी पढ़ें-परंपरागत खेती छोड़ किसानों ने अपनाई खेती की नई तकनीक, अब हो रहा लाभ

अब सबसे पहले डच बकेट सिस्टम की बात करते हैं. इस विधि में पानी से भरी हुई बकेट पर पौधा ढक्कन से सपोर्ट देकर खड़ा किया जाता है. इस पानी में बिजली के मोटर के जरिए हवा चलती रहती है. जिससे खड़े हुए पानी में ऑक्सीजन की कमी नहीं आती. जबकि न्यूट्रिएंट्स फिल्म तकनीक में पानी लगातार पाइप में चलता रहता है. इससे पौधों की जड़ें उस में डूबी रहती हैं. इसे एक पाइपलाइन पर इंस्टाल किया जाता है. वहीं हाइड्रोपोनिक ग्रो टॉवर्स की तकनीक में प्लास्टिक के पाइप से चैंबर बनाया जाता है जिसे कोको-पिट कहा जाता है. इसमें पौधे को लगाया जाता है और समय अनुसार पानी छोड़ा जाता है. इससे पौधे को जितनी जरूरत होती है वे उतना पानी सोख लेते हैं.

Haryana Agricultural University
लेट्यूस या सलाद पत्ता की फसल इस तकनीक से बड़ी ही आसानी से की जा सकती है.

क्या होती है हाइड्रोपोनिक्स तकनीक- आसान भाषा में कहें तो हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है. पौधे के लिए सभी आवश्यक खनिज और उर्वरक पानी के माध्यम से दी जाती है. फसल उत्पादन के लिए सिर्फ 3 चीजें पानी, पोषक तत्व और प्रकाश की जरूरत है. यदि ये 3 चीजों हम बिना मिट्टी के उपलब्ध करा दें तो पौधे फल-फूल सकते हैं. इसी को हाइड्रोपोनिक्स तकनीक कहते हैं. बढ़ती आबादी और खेती की लिए कम पड़ती ज़मीन को देखते हुए हाइड्रोपोनिक्स तकनीक बहुत ही कारगार है. ऊंची इमारतों की छत पर भी इस विधि से खेती की जा सकती है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का बड़े स्तर पर इस्तेमाल इजराइल, सिंगापुर और जापान जैसे देशों में किया जाता है. हमारे देश में भी हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से देश के कई क्षेत्रों में बिना जमीन और मिट्टी के पौधे उगाए जा रहे हैं और फसलें पैदा की जा रही हैं. राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में जहाँ चारे के उत्पादन के लिये विपरीत जलवायु वाली परिस्थितियां हैं उन क्षेत्रों में यह तकनीक वरदान सिद्ध हो सकती है.

हरियाणा की विश्वसनीय खबरों को पढ़ने के लिए गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें Etv Bharat APP

हिसार: आए दिन नई खोज कृषि को और भी सुगम और सरल बना रही है. नई-नई तकनीकें अब खेती में प्रयोग की जा रही हैं. तकनीकों में हाइड्रोपोनिक खेती भी शामिल है. आज से कुछ दशक पहले मिट्टी के बगैर खेती करने की कोई सोच भी नहीं सकता था लेकिन अब ऐसा संभव है. इस तकनीक के जरिए सब्जी के फसल की खेती की जा रही है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (Haryana Agricultural University) में भी इसको लेकर रिसर्च चल रही है कि किन परिस्थितियों में और कैसे इस तकनीक के जरिए अच्छी गुणवत्ता की सब्जियां उगाई जा सके.

कृषि विश्वविद्यालय हिसार के वैज्ञानिक डॉ अरविंद मलिक ने बताया कि हम शुरू से ही प्रयास करते आ रहे हैं कि नई- नई तकनीकें किसानों तक पहुंचे ताकि वे अच्छी व आधुनिक खेती कर सके. इसी कड़ी में हमारे विश्वविद्यालय में भी हाइड्रोपोनिक खेती (hydroponics technology Farming) के लिए शोध चल रहा है. इसमें दो तकनीक मुख्य हैं सॉयललेस मिट्टी और डायरेक्ट पानी. इसका मुख्य फायदा यह है कि जिन लोगों के पास जमीन नहीं है या फिर जमीन में नमक ज्यादा है ऐसे में वह इस तकनीक के जरिए सब्जियों की खेती कर सकते हैं.

आधुनिक तरीकों से बदल गया किसानी का तरीका, अब पानी में भी की जा सकती है खेती

डॉ अरविंद मलिक ने कहा कि हमारे पास कई तरह के मॉडल है जिनको लेकर शोध किया जा रहा है. मौजूदा वक्त में हम अलग-अलग फसलों को इन मॉडल के जरिए लगाकर देख रहे हैं कि किस परिस्थिति में कौन सी फसल सही गुणवत्ता के साथ पैदा होती है. ऐसे में उन फसलों को परीक्षण कर जमीन में उगाई गई फसलों के साथ भी तुलना की जाती है. फिलहाल हम चेरी, टमाटर, लेट्यूस, सलाद, पत्ता व स्ट्रौबरी पर शोध कर रहे है.

Haryana Agricultural University
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है

उन्होंने कहा कि अब तक के रिसर्च में यह निकल कर सामने आया है कि लेट्यूस या सलाद पत्ता की फसल इस तकनीक से बड़ी आसानी से की जा सकती है. इसकी उपज भी बेहद बढ़िया होती है किसान चाहे तो इसका उत्पादन कर सकते हैं. यह अच्छे दाम में मार्केट में बिक जाता है. डॉक्टर अरविंद मलिक ने बताया कि हाइड्रोपोनिक तकनीक के तीन मुख्य मॉडल है. पहला डच बकेट सिस्टम. दूसरा न्यूट्रिएंट्स फिल्म तकनीक और तीसरा हाइड्रोपोनिक ग्रो टॉवर्स.

Haryana Agricultural University
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है

ये भी पढ़ें-परंपरागत खेती छोड़ किसानों ने अपनाई खेती की नई तकनीक, अब हो रहा लाभ

अब सबसे पहले डच बकेट सिस्टम की बात करते हैं. इस विधि में पानी से भरी हुई बकेट पर पौधा ढक्कन से सपोर्ट देकर खड़ा किया जाता है. इस पानी में बिजली के मोटर के जरिए हवा चलती रहती है. जिससे खड़े हुए पानी में ऑक्सीजन की कमी नहीं आती. जबकि न्यूट्रिएंट्स फिल्म तकनीक में पानी लगातार पाइप में चलता रहता है. इससे पौधों की जड़ें उस में डूबी रहती हैं. इसे एक पाइपलाइन पर इंस्टाल किया जाता है. वहीं हाइड्रोपोनिक ग्रो टॉवर्स की तकनीक में प्लास्टिक के पाइप से चैंबर बनाया जाता है जिसे कोको-पिट कहा जाता है. इसमें पौधे को लगाया जाता है और समय अनुसार पानी छोड़ा जाता है. इससे पौधे को जितनी जरूरत होती है वे उतना पानी सोख लेते हैं.

Haryana Agricultural University
लेट्यूस या सलाद पत्ता की फसल इस तकनीक से बड़ी ही आसानी से की जा सकती है.

क्या होती है हाइड्रोपोनिक्स तकनीक- आसान भाषा में कहें तो हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है. पौधे के लिए सभी आवश्यक खनिज और उर्वरक पानी के माध्यम से दी जाती है. फसल उत्पादन के लिए सिर्फ 3 चीजें पानी, पोषक तत्व और प्रकाश की जरूरत है. यदि ये 3 चीजों हम बिना मिट्टी के उपलब्ध करा दें तो पौधे फल-फूल सकते हैं. इसी को हाइड्रोपोनिक्स तकनीक कहते हैं. बढ़ती आबादी और खेती की लिए कम पड़ती ज़मीन को देखते हुए हाइड्रोपोनिक्स तकनीक बहुत ही कारगार है. ऊंची इमारतों की छत पर भी इस विधि से खेती की जा सकती है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का बड़े स्तर पर इस्तेमाल इजराइल, सिंगापुर और जापान जैसे देशों में किया जाता है. हमारे देश में भी हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से देश के कई क्षेत्रों में बिना जमीन और मिट्टी के पौधे उगाए जा रहे हैं और फसलें पैदा की जा रही हैं. राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में जहाँ चारे के उत्पादन के लिये विपरीत जलवायु वाली परिस्थितियां हैं उन क्षेत्रों में यह तकनीक वरदान सिद्ध हो सकती है.

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Last Updated : Feb 11, 2022, 1:48 PM IST
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