हिसार: अगर मूंग की ऐसी किस्म मिले जिसमें पीला मौजेक, पत्ता झूरी, पत्ता मरोड़ जैसे विषाणु रोग ना लगें और ये किस्म अब तक उपलब्ध किस्मों से भी 20 प्रतिशत तक अधिक उत्पादन दे तो किसानों का खुश होना लाज़्मी है. साथ ही एक ऐसी किस्म जो देश में पहले से अधिक भूभाग पर उगाई जा सके तो सोने पे सुहागा होगा.
ये सच कर दिखाया है हिसार में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस वर्ष मूंग की नई रोग प्रतिरोधी किस्म एमएच 1142 को विकिसत कर एक ओर उपलब्धि को विश्वविद्यालय के नाम किया है. मूंग की इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है. किसानों के लिए इस किस्म के बीज अगले वर्ष से बाजार में उपलब्ध होंगे.
इस नई किस्म में खास बात ये है कि ये खरीफ मौसम में बोई जाने वाली किस्म है और इसे भारत के उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व के मैदानी इलाकों में काश्त के लिए अनुमोदित किया गया है. मतलब कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल और असम के इलाकों में इस किस्म से मूंग की पैदावार ली जा सकती है.
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विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने इस उपलब्धी पर कृषि वैज्ञानिकों को बधाई दी और किस्म विकसित करने की घोषणा की. कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजेश यादव के अनुसार इस किस्म को तैयार करने में 13 साल के करीब का समय लगा है, लेकिन ये फसल वर्तमान समय के विषाणुओं के लिए भी रोग प्रतिरोधी है.
इस किस्म की खासियत ये है कि इसकी फसल एक साथ पककर तैयार होती है. इस किस्म की फलियां काले रंग की होती हैं और बीज मध्यम आकार के हरे और चमकीले होते हैं. इसका पौधा कम फैलावदार, सीधा एवं सीमित बढ़वार वाला है, जिससे इसकी कटाई आसान हो जाती है. ये किस्म विभिन्न राज्यों में 63 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार 12 क्विंटल से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है.