हिसारः भाटला सामाजिक बहिष्कार का चर्चित मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया है. भाटला गांव में कथित सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे लोगों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका को कोर्ट ने मंजूर कर लिया.
इस पर सोमवार को बेंच ने हरियाणा सरकार के वकील को तलब किया, लेकिन हरियाणा सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल अदालत में हाजिर नहीं थे. इसके बाद अदालत ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर निर्देश दिया कि मंगलवार को हरियाणा सरकार के वकील अदालत में हाजिर हों और अपना पक्ष रखें.
अब इस मामले की सुनवाई 5 नवंबर को होगी जिसमें हरियाणा सरकार के अधिवक्ता पेश होकर अपनी बात रखेंगे. भाटला सामाजिक बहिष्कार प्रकरण के विभिन्न मुकदमों की पैरवी कर रहे अधिवक्ता रजत कलसन ने बताया कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में भाटला सामाजिक बहिष्कार प्रकरण पर सुनवाई हुई.
सुप्रीम कोर्ट में भाटला सामाजिक बहिष्कार के पीड़ित अजय, जयभगवान सोडी, विकास, राजेश व सुनील द्वारा एक याचिका दायर की गई थी. भाटला के सामाजिक बहिष्कार के पीड़ितों ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भाटला सामाजिक बहिष्कार प्रकरण में पीड़ितों द्वारा दर्ज किए गए मुकदमा नंबर 225 में गांव के सरपंच सहित सात लोगों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन पुलिस ने अपनी फाइनल जांच रिपोर्ट में केवल एक आरोपी को सामाजिक बहिष्कार का दोषी मानते हुए अदालत में चार्जशीट दी थी. बाकी छह अन्य लोगों को क्लीन चिट दे दी थी.
पीड़ितों ने अपनी याचिका में बताया कि सामाजिक बहिष्कार के मामले में दर्ज अपराधिक मुकदमे में पीड़ित 500 दलित परिवारों में से केवल एक दलित अजय कुमार चार्जशीट में शामिल किया गया है और बाकी गवाह उन लोगों को रखा गया है जिन लोगों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार के आरोप हैं. याचिका में दलितों द्वारा हरियाणा सरकार व पुलिस पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने दलितों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए हैं. याचिका में भाटला के दलित पीड़ितों ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की है और गांव के सभी दलित पीड़ितों को मुआवजा देने की मांग भी की गई है.
सोमवार को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट की बेंच न्यायमूर्ति एन वी रमण और वी रामा सुब्रमण्यम ने सुनवाई की. इस दौरान पीड़ित पक्ष की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस व अधिवक्ता रजत कलसन पेश हुए. पीड़ित पक्ष ने अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बड़ी हैरानी की बात है कि हरियाणा पुलिस 500 दलित परिवारों के सामाजिक बहिष्कार के लिए केवल एक व्यक्ति को दोषी बता रही है. लोगों को सामाजिक बहिष्कार से तंग आकर गांव से बाहर की दुकानों से किरयाना व अन्य सामान लेकर तक आना पड़ रहा है.
ये है पूरा मामला
बता दें कि भाटला गांव में अनुसूचित जाति व सवर्ण समुदाय के लोगों के बीच बीते 3 वर्षों से जातीय विवाद चल रहा है. अनुसूचित जाति के लोगों का आरोप है कि सवर्ण जाति के लोगों ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर रखा है. पिछले हफ्ते हाईकोर्ट ने भी एक मामले में सुनावाई करते हुए अपना फैसला सुनाया था. जिसमें कोर्ट ने मामले में किसी भी अन्य एजेंसी से मामले की जांच करवाने से इंकार दिया था. जबकि एससी समुदाय के लोग लंबे समय से सीबीआइ जांच की मांग करते आ रहे हैं.
इसी मामले में अब जयभगवान, राजेश, सुनील व विकास ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई है. जस्टिस एनवी रमन व वी रामा सुब्रमणियम इस मामले में सुनवाई करेंगे. याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में एक बार फिर पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाए हैं व उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. याचिकाकर्ताओं द्वारा अन्य जांच एजेंसी से जांच ना करवाने संबंधित हाइकोर्ट के आदेश को भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा जाएगा व सीबीआइ जांच की मांग को फिर दोहाराया जाएगा. इस मामले को अधिवक्ता सत्या मित्रा अनुसूचित जाति के याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट में पेश होंगे.
भाईचारा कमेटी भी कठघरे में
याचिकाकर्ताओं द्वारा मामले में भाईचारा कमेटी पर भी सवाल उठाए गए हैं. जबकि भाईचारा कमेटी का गठन मामले को सुलझाने के लिए किया गया था, लेकिन कई ग्रामीणओं ने कमेटी के सदस्यों से असहमति जता दी थी. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में भाईचारा कमेटी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए हैं.
भाईचारा कमेटी का दावा- गांव में माहौल ठीक
भाईचारा कमेटी का दावा गांव में माहौल एकदम सौहार्दपूर्ण है. कमेटी के सदस्य जगदीप बेरवाल ने कहा कि केवल कुछ लोग ही सामाजिक बहिष्कार जैसी बातें कर रहे हैं. गांव में सभी जातियों के लोग आपस में मिलजुलकर रहते हैं.