हिसार: कोरोना महामारी के दौर में प्रदेश के लाखों मनरेगा मजदूरों की जिंदगी में चुनौतियों का पहाड़ टूट पड़ा है. मनरेगा मजदूरों के सौ दिनों का रोजगार पहले से नहीं मिल पा रहा. वहीं वर्तमान परिस्थितियां ग्रामीण मजदूरों के लिए नई मुसीबतें पैदा करने वाली हैं. मनरेगा का काम घटने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ना भी लाजमी है. वहीं हालात ये हैं कि मनरेगा मजदूरों को साल में औसतन 35 दिनों का रोजगार ही मिल पा रहा है.
ग्रामीणों को साल में 100 दिनों का रोजगार देने के मामले में मनरेगा को विश्व की सबसे बड़ी योजना माना जाता है. प्रदेश के 17.58 लाख ग्रामीण योजना के तहत साल में 100 दिनों का रोजगार पाने के लिए रजिस्ट्र हैं. बीते वित्त वर्ष में केवल 4830 मनरेगा परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मिल पाया.
वहीं, देश में अचानक कोरोना वायरस की दस्तक से मजदूरों की जिंदगी में परेशानियां बढ़ गई हैं. बीते महीने मनरेगा के सभी काम बंद रहे, हालांकि सरकार ने अब मनरेगा के कार्य फिर से शुरु करवाने के निर्देश दिए हैं, लेकिन सरकार ने अपनी भावी योजनाओं के बजट में कटौती के संकेत दे दिए हैं. जिससे विभिन्न विभागों के प्रोजेक्ट कम होने से मनरेगा मजदूरों की डिमांड घटेगी.
बता दें कि प्रदेश में सबसे ज्यादा 308 रुपये मनरेगा मजदूरी मिलती है. लाखों ग्रामीण मजदूर आजीविका के लिए मनरेगा पर आश्रति हैं. उनके हाथों पैसा कम आने से ग्रामीण अर्थव्यस्था सीधे प्रभावित होगी. मजदूरों के हाथों में पैसे कम आएंगे तो वो खर्च भी कम करेंगे.
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मनरेगा मजदूरों ने बताया कि कोरोना के कारण पिछले महीने कोई काम नहीं मिला. वैसे भी सरकार 100 दिन का रोजगार नहीं देती है, लेकिन कोरोना की वजह से अब 30 से 35 दिन ही काम मिल रहा है. एक दूसरे मनरेगा मजदूर जगदीश ने बताया की उनके घर में 8 सदस्य हैं और मनरेगा से ही घर चलता है, लेकिन काम नहीं मिलने की वजह से उनके आगे पैसों का संकट गहरा गया है.