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अरावली में लगातार जारी है अवैध निर्माण, सरकार और प्रशासन बैठे हैं आंखें मूंदे - aravalli mountains illegal construction

फरीदाबाद में अरावली की पहाड़ियों में धड़ल्ले से अवैध निर्माण जारी है. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार और प्रशासन आंखें मूंदे बैठे हैं. इतने बड़े क्षेत्र में धड़ल्ले से निर्माण जारी है और प्रशासनिक अधिकारी शिकायत मिलने का इंतजार कर रहे हैं.

illegal construction work in aravali mountains faridabad
illegal construction work in aravali mountains faridabad
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Published : Sep 14, 2020, 5:09 PM IST

फरीदाबाद: हरियाणा पूरे देश में इकलौता ऐसा राज्य है जिसका वन क्षेत्र सबसे कम है. हरियाणा में सिर्फ 6.49 प्रतिशत का ग्रीन कवर है. इसके बावजूद हरियाणा सरकार ने 2019 में पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव पास किया, और अरावली की पहाड़ियों में प्राइवेट बिल्डरों को निर्माण करने की मंजूरी दी.

इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और सरकार के फैसले पर रोक लगा दी गई, लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार और प्रशासन आंखें मूंदे बैठे हैं, क्योंकि फरीदाबाद की अरावली पहाड़ियों में अभी भी अवैध निर्माण जारी है और लगातार कॉलोनियां काटी जा रही हैं.

अरावली में भू-माफियाओं का गोरखधंधा

आपको ये जानकर हैरत होगी की ये अवैध निर्माण उस जगह हो रहा है जहां कभी अवैध रूप से माइनिंग कर पत्थर निकाले जाते थे. जिसके चलते यहां लगभग 150-200 फीट गहरी खान बन गई. आखिर में सन 1992 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फरीदाबाद के इस इलाके में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन 200 फिट गहरी खान भू-माफियाओं की काली नजर से बच नहीं पाई. यहां भू-माफियाओं ने अवैध रूप से प्लॉट और फ्लैट काटकर भोले-भाले लोगों को बेचने शुरू कर दिए.

अरावली में भू-माफियाओं का गोरखधंधा, देखें ये स्पेशल रिपोर्ट

भोले-भाले लोगों को बेचे जा रहे प्लॉट और मकान

यहां प्लॉट और फ्लैट खरीद कर रहने वाले कुछ लोगों से मुलाकात की गई तो पता चला कि उन्हें तो इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि ये जगह वन विभाग के संरक्षित क्षेत्र में आती है. उन्होंने अपने खून पसीने की कमाई से यहां पर जगह लेकर अपना आशियाना बनाया है. ऐसे में अगर उनका घर छिन गया तो वो अपने बच्चों को लेकर कहां जाएंगे.

पिछले 12 सालों से 40 गज में मकान बनाकर रह रही महिला संतोष ने बताया कि जिनसे उन्होंने घर खरीदा वो तो यहां से बेचकर चले गए. 3500 रुपये महीने की किस्त पर उन्होंने यहां पर जगह खरीदी. वहीं रामदेव नामक एक बुजुर्ग ने बताया‌ कि 2007 में उन्होंने खान में काटी गई कॉलोनी में 4000 रुपये गज के हिसाब से 50 गज जमीन खरीदी. 14 साल पहले इसी खान में 2500 रुपये गज के हिसाब से 50 गज जमीन खरीदने वाले गजेन्द्र ने बताया कि वो अपनी जीवन भर की कमाई मकान में लगा चुके हैं. अब मकान को छोड़कर वो कहीं नहीं जा सकते.

ना सरकार को परवाह, ना प्रशासन का ध्यान

कम कीमत में जमीन का लालच इन लोगों को यहां पर रहने के लिए मजबूर कर देता है. भू-माफिया और बिल्डर अपनी जेबे भरकर यहां से निकल जाते हैं. जब इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने वन विभाग के अधिकारी का रुख किया तो उनका जवाब भी हैरत में डालने वाला था. आखिर इतने बड़े क्षेत्र में धड़ल्ले से निर्माण जारी है और वो अभी भी शिकायत मिलने का इंतजार कर रहे हैं.

ये भी पढे़ं- सरकार ने बनाया 'जीरो बर्निंग' पराली का टारगेट, सिरसा के 25 गांव रेड जोन में

फरीदाबाद: हरियाणा पूरे देश में इकलौता ऐसा राज्य है जिसका वन क्षेत्र सबसे कम है. हरियाणा में सिर्फ 6.49 प्रतिशत का ग्रीन कवर है. इसके बावजूद हरियाणा सरकार ने 2019 में पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव पास किया, और अरावली की पहाड़ियों में प्राइवेट बिल्डरों को निर्माण करने की मंजूरी दी.

इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और सरकार के फैसले पर रोक लगा दी गई, लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार और प्रशासन आंखें मूंदे बैठे हैं, क्योंकि फरीदाबाद की अरावली पहाड़ियों में अभी भी अवैध निर्माण जारी है और लगातार कॉलोनियां काटी जा रही हैं.

अरावली में भू-माफियाओं का गोरखधंधा

आपको ये जानकर हैरत होगी की ये अवैध निर्माण उस जगह हो रहा है जहां कभी अवैध रूप से माइनिंग कर पत्थर निकाले जाते थे. जिसके चलते यहां लगभग 150-200 फीट गहरी खान बन गई. आखिर में सन 1992 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फरीदाबाद के इस इलाके में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन 200 फिट गहरी खान भू-माफियाओं की काली नजर से बच नहीं पाई. यहां भू-माफियाओं ने अवैध रूप से प्लॉट और फ्लैट काटकर भोले-भाले लोगों को बेचने शुरू कर दिए.

अरावली में भू-माफियाओं का गोरखधंधा, देखें ये स्पेशल रिपोर्ट

भोले-भाले लोगों को बेचे जा रहे प्लॉट और मकान

यहां प्लॉट और फ्लैट खरीद कर रहने वाले कुछ लोगों से मुलाकात की गई तो पता चला कि उन्हें तो इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि ये जगह वन विभाग के संरक्षित क्षेत्र में आती है. उन्होंने अपने खून पसीने की कमाई से यहां पर जगह लेकर अपना आशियाना बनाया है. ऐसे में अगर उनका घर छिन गया तो वो अपने बच्चों को लेकर कहां जाएंगे.

पिछले 12 सालों से 40 गज में मकान बनाकर रह रही महिला संतोष ने बताया कि जिनसे उन्होंने घर खरीदा वो तो यहां से बेचकर चले गए. 3500 रुपये महीने की किस्त पर उन्होंने यहां पर जगह खरीदी. वहीं रामदेव नामक एक बुजुर्ग ने बताया‌ कि 2007 में उन्होंने खान में काटी गई कॉलोनी में 4000 रुपये गज के हिसाब से 50 गज जमीन खरीदी. 14 साल पहले इसी खान में 2500 रुपये गज के हिसाब से 50 गज जमीन खरीदने वाले गजेन्द्र ने बताया कि वो अपनी जीवन भर की कमाई मकान में लगा चुके हैं. अब मकान को छोड़कर वो कहीं नहीं जा सकते.

ना सरकार को परवाह, ना प्रशासन का ध्यान

कम कीमत में जमीन का लालच इन लोगों को यहां पर रहने के लिए मजबूर कर देता है. भू-माफिया और बिल्डर अपनी जेबे भरकर यहां से निकल जाते हैं. जब इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने वन विभाग के अधिकारी का रुख किया तो उनका जवाब भी हैरत में डालने वाला था. आखिर इतने बड़े क्षेत्र में धड़ल्ले से निर्माण जारी है और वो अभी भी शिकायत मिलने का इंतजार कर रहे हैं.

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