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इस दिवाली कुम्हारों के खिले चेहरे, चीन बहिष्कार से दीयों की बढ़ी मांग

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Published : Oct 23, 2020, 5:17 PM IST

जिस तरह से अब चाइनीज सामान का बहिष्कार हो रहा है, लोग अपनी संस्कृति को पहचान रहे हैं और इस बदलाव से उनका कारोबार भी निकल पड़ा है.

faridabad pot makers express their happiness for increasing demand of diyas due to china boycott
इस दिवाली कुम्हारों के खिले चेहरे, चीन बहिष्कार से दीयों की बढ़ी मांग

फरीदाबाद: लोगों के दिलों में आज चीन देश के लिए अघोषित दुश्मन देश बन चुका है. पहले कोरोना को लेकर लोगों के जहन में गुस्सा और फिर गलवान घाटी में देश के वीर सपूतों की शहादत से आज हर भारतीय चीन से नफरत करने लगा है. उधर भारत सरकार की तरफ से भी चीन से आयात पर भी रोक लगी हुई है, पिछले कुछ महीने में चीन से बिगड़े रिश्ते की वजह से देश में एक सकारात्मक लहर पैदा हुई है.

चीनी बहिष्कार से दीयों की बढ़ी मांग

आज देश 'लोकल फॉर वोकल' मुहीम के साथ जुड़ गया है. देश मेड इन इंडिया को प्रोत्साहित करने के लिए जोर देने लगा है. और इसी बदलाव की वजह से कुम्हारों की जिंदगी फिरने लगी है. इस साल दिवाली के सीजन में चाइनीज लड़ियों की बजाए दीयों की डिमांड बढ़ी है.

चीन बहिष्कार से दीयों की बढ़ी मांग, देखिए रिपोर्ट

दोगुना होगा इस दिवाली कारोबार

पिछले 20 सालों से मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने वाले नरेश बताते हैं कि उनके बुजुर्ग भी मिट्टी से दीये, मटके, सुराही बनाने का काम किया करते थे. पिछले कुछ समय से चाइनीज सामानों ने मार्केट में कब्जा कर लिया था. उनकी मिट्टी से बने सामानों की बिक्री ना के बराबर हो चुकी थी, लेकिन जिस तरह से अब चाइनीज सामान का बहिष्कार हो रहा है, लोग अपनी संस्कृति को पहचान रहे हैं और इस बदलाव से उनका कारोबार भी निकल पड़ा है.

faridabad pot makers express their happiness for increasing demand of diyas due to china boycott
चाक पर दीया बनाते हुए परमानंद

'मेहनत बहुत की है, उम्मीद है ये साल बेहतर होगा'

वहीं नरेश की धर्मपत्नी संतोष का कहना है कि दिवाली के सीजन में दिन-रात मेहनत करके दीये बनाते हैं. पूरा परिवार इसी काम में लगा रहता है, लेकिन जब इन दीयों को लेकर बाजार पहुंचते हैं तो ग्राहक चाइनीज लड़ियां और मोमबत्तियां ही पसंद करते हैं. ऐसे में अगर इस बार चाइना का माल बाजार में नहीं आता है तो उनके लिए ये साल अच्छा बीतेगा.

faridabad pot makers express their happiness for increasing demand of diyas due to china boycott
मटकों को सुखाने के लिए धूप में रखते हुए नरेश

दिवाली को बस कुछ ही दिन बाकी है. नरेश अपने पूरे परिवार के साथ जोर-शोर से दीये बनाने में जुटे हैं, इस बार इन्हें उम्मीद है, वो दोगुने दीये बेच देंगे. यकीन हमें भी है, इस बार लोग जब बाजार में दिवाली की खरीदारी करेंगे तो नरेश, संतोष और परमानंद जैसे कुम्हारों की उम्मीदों को निराशा में नहीं बदलेंगे.

ये पढ़ें- बरोदा उपचुनाव: जानिए क्या चाहती है मुंडलाना गांव की जनता ?

फरीदाबाद: लोगों के दिलों में आज चीन देश के लिए अघोषित दुश्मन देश बन चुका है. पहले कोरोना को लेकर लोगों के जहन में गुस्सा और फिर गलवान घाटी में देश के वीर सपूतों की शहादत से आज हर भारतीय चीन से नफरत करने लगा है. उधर भारत सरकार की तरफ से भी चीन से आयात पर भी रोक लगी हुई है, पिछले कुछ महीने में चीन से बिगड़े रिश्ते की वजह से देश में एक सकारात्मक लहर पैदा हुई है.

चीनी बहिष्कार से दीयों की बढ़ी मांग

आज देश 'लोकल फॉर वोकल' मुहीम के साथ जुड़ गया है. देश मेड इन इंडिया को प्रोत्साहित करने के लिए जोर देने लगा है. और इसी बदलाव की वजह से कुम्हारों की जिंदगी फिरने लगी है. इस साल दिवाली के सीजन में चाइनीज लड़ियों की बजाए दीयों की डिमांड बढ़ी है.

चीन बहिष्कार से दीयों की बढ़ी मांग, देखिए रिपोर्ट

दोगुना होगा इस दिवाली कारोबार

पिछले 20 सालों से मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने वाले नरेश बताते हैं कि उनके बुजुर्ग भी मिट्टी से दीये, मटके, सुराही बनाने का काम किया करते थे. पिछले कुछ समय से चाइनीज सामानों ने मार्केट में कब्जा कर लिया था. उनकी मिट्टी से बने सामानों की बिक्री ना के बराबर हो चुकी थी, लेकिन जिस तरह से अब चाइनीज सामान का बहिष्कार हो रहा है, लोग अपनी संस्कृति को पहचान रहे हैं और इस बदलाव से उनका कारोबार भी निकल पड़ा है.

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चाक पर दीया बनाते हुए परमानंद

'मेहनत बहुत की है, उम्मीद है ये साल बेहतर होगा'

वहीं नरेश की धर्मपत्नी संतोष का कहना है कि दिवाली के सीजन में दिन-रात मेहनत करके दीये बनाते हैं. पूरा परिवार इसी काम में लगा रहता है, लेकिन जब इन दीयों को लेकर बाजार पहुंचते हैं तो ग्राहक चाइनीज लड़ियां और मोमबत्तियां ही पसंद करते हैं. ऐसे में अगर इस बार चाइना का माल बाजार में नहीं आता है तो उनके लिए ये साल अच्छा बीतेगा.

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मटकों को सुखाने के लिए धूप में रखते हुए नरेश

दिवाली को बस कुछ ही दिन बाकी है. नरेश अपने पूरे परिवार के साथ जोर-शोर से दीये बनाने में जुटे हैं, इस बार इन्हें उम्मीद है, वो दोगुने दीये बेच देंगे. यकीन हमें भी है, इस बार लोग जब बाजार में दिवाली की खरीदारी करेंगे तो नरेश, संतोष और परमानंद जैसे कुम्हारों की उम्मीदों को निराशा में नहीं बदलेंगे.

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