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7 साल बाद सुखना झील से हटाई गई बड़ी मछलियां, 221 क्वॉन्टाइल को बाहर निकाला - लेक सफाई अभियान

चंडीगढ़ में सुखना लेक का पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए सात साल बाद लेक सफाई अभियान चलाया गया है. ये अभियान 22 मार्च तक जारी रहेगा. इस दौरान कई तरह की मछलियों को बाहर निकाला गया जिनमें से 221 मछलियां क्वॉन्टाइल प्रजाति की है.

Quantile large fishes removed from Sukhna Lake Chandigarh
सुखना लेक का पर्यावरण संतुलन
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Published : Apr 15, 2023, 6:08 PM IST

7 साल बाद सुखना झील से हटाई गई बड़ी मछलियां, 221 क्वॉन्टाइल को बाहर निकाला

चंडीगढ़: चंडीगढ़ में सुखना लेक में इकोलॉजिकल बैलेंस बनाने के लिए 7 साल बाद अभियान चलाया गया. जहां बड़ी फिशर विभाग और पंजाब यूनिवर्सिटी में जूलॉजी विभाग के टीम ने मिलकर मछलियों को पानी के बाहर निकाला गया. इस दौरान कुछ ऐसी मछलियां भी वहां पाई गई, जो उत्तर भारत के किसी भी नदी नालों में नहीं पाई जाती. चंडीगढ़ में जूलॉजी डिपार्टमेंट के विशेषज्ञ और प्रोफेसर रवनीत कौर और उनकी टीम द्वारा एक महीने तक इस अभियान से संबंधित जानकारी को एकत्र करने का काम किया गया.

पर्यावरण संतुलन बनाने पर जोर: बता दें कि सुखना लेक में हर साल सुखना लेक का पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए हर तीन से चार साल के बाद सीड डाला जाता है. इसी दौरान पुरानी मछलियों को निकालने का भी काम किया जाता है. लेकिन कोरोनाकाल के कारण यह तीन साल तक नहीं किया जा सका. जिसके चलते सुखना लेक सफाई अभियान सात साल तक के लंबे समय तक पहुंच गया. वहीं, मार्च महीने में शुरू हुई इस प्रक्रिया में 221 क्वॉन्टाइल बड़ी मछलियों को निकाला गया. वहीं इस दौरान 60 किलो की एक बड़ी मछली भी पाई गई.

10 दिनों तक लेक सफाई अभियान जारी: इनमें सबसे ज्यादा मृगल मछलियां निकाली गई. वहीं फरवरी महीने के अंत से शुरू हुआ अभियान 22 मार्च तक चलाया गया. चंडीगढ़ प्रशासन के पशुपालन व मत्स्य विभाग की तरफ से पारिस्थितिकी संतुलन (इकोलॉजिकल बैलेंस) के लिए लेक से मछलियों को निकालने का काम किया था. मछलियों को निकालने का काम रात आठ बजे से सुबह छह बजे तक सुखना झील पर जाल लगाया जाता था. 10 दिन तक इस अभियान को चलाने का फैसला लिया गया है.

लेक से निकाली गई चार प्रकार की मछलियां: पहले दिन छह प्रकार की करीब 65 क्विंटल मछलियां निकाली गई थीं, जबकि दूसरे दिन 35 क्विंटल मछलियां निकाली गई थीं. विभाग ने मछलियों के नमूनों को जांच के लिए जीव विज्ञान विभाग की टीम द्वारा सुबह तीन बजे पहुंच कर मछलियों के सैंपल लिए जाते. जिसमें उनके वजन, उम्र, बीमारी, और अन्य संबंधित जानकारी को एकत्र किया जाता. बता दे कि सुखना लेक में से चार तरह की मछलियां निकली गई, उनमें मृगल, कतला, गोल्ड कार्प और कॉमन कार्प मछली आदि हैं.

Quantile large fishes removed from Sukhna Lake Chandigarh
7 साल बाद सुखना झील से हटाई गई बड़ी मछलियां

अफ्रीका में पाई जाने वाली मछली को भी बाहर निकाला: सफाई के दौरान एक मछली मिली थी, जो हाइपो टॉमस जबकि एक्वेरियम में पाई जाती है. ऐसे में इस मछली का काम एक्वेरियम को साफ रखने का होता है. यह एक तरह की कैटफिश होती है जो अफ्रीका में अधिकतम पाई जाती है. अनुमान है कि लोग अक्सर जो मछलियां नहीं पाल सकते वे अक्सर सुखना लेक मछलियों में छोड़ जाते हैं. वहीं, मेरा मानना है कि यह एक गलत तरीका है. क्योंकि पानी और पर्यावरण को देखते हुए जिन मछलियों को यहां रहना संभव है. हम उन मछलियों की नस्ल को ही यहां पर रहते हैं.

सुखना लेक को कब बनाया गया: चंडीगढ़ में दो मानव निर्मित झील बनाई गई है. जिनमें से एक सुखना लेक है. 1985 के बाद बनाई गई सुखना लेक में जहां 30-विषम प्रजातियों के रहने के लिए अनुकूल वातावरण दिया गया है. मौजूदा समय में प्रमुख भारतीय कार्प और कुछ विदेशी कार्प शामिल हैं. प्रशासन ने झील में चुनिंदा मछली पकड़ने के अधिकारों की नीलामी बंद कर दी, जिसके परिणामस्वरूप मछली की उम्र बढ़ने लगी, जो छोटी मछलियों पर निर्भर रहने लगी, जिससे छोटी नस्लों के लिए भोजन की समस्या पैदा हो गई.

ये भी पढ़ें: किन्नर का जेंडर चेंज कराकर UP के युवक ने की शादी, दहेज में मिली कार और कैश लेकर हुआ फरार

निकाली गई मछलियों का अध्ययन करेंगे छात्र: सुखना एक छोटी झील है, जिसमें बड़ी झीलों के विपरीत, वनस्पतियों और जीवों के पारिस्थितिक प्रबंधन की विशिष्ट आवश्यकताएं हैं. क्योंकि वे परिवर्तनों के प्रति बहुत संवेदनशील हैं. वन विभाग ने पिछली बरसात में बड़ी मछलियों की असामान्य मौत की सूचना मिलने के बाद उन्हें हटाने की सिफारिश की थी. ऐसे में 13 से 22 मार्च तक चले इस अभियान में यूटी वन विभाग और पंजाब विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग और पशुपालन और मत्स्य पालन द्वारा मिलकर काम किया गया. इस दौरान जूलॉजी विभाग की प्रोफसर रवनीत कौर ने अपनी टीम के साथ मिलकर सुखना लेक के संतुलन को बनाए रखने और निकाली गई मछलियों का अध्ययन करना शुरू कर दिया है.

Quantile large fishes removed from Sukhna Lake Chandigarh
221 क्वॉन्टाइल को बाहर निकाला

सुखना लेक का पर्यावरण संतुलन बनाना आवश्यक: ऐसे में प्रोफेसर रवनीत कौर ने बताया कि सुखना लेक के वातावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिए यह करना जरूरी होता है. ऐसे में बड़ी मछलियों को हटाने से छोटी मछलियों और सर्वाहारी प्रवासी पक्षियों के लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ेगी. इस दौरान मछली पकड़ने वाले मछुआरों को 6 सेमी के जाल का साइज रखने के लिए कहा गया था. उन्होंने कहा कि सुखना की मछलियों और जीवों के कायाकल्प के लिए आने वाले दिनों में विशेषज्ञों के परामर्श से मछली के नए बीज जारी किए जाएंगे और मछलियों की नई किस्मों को भी पाला जाएगा.

मछलियों की नस्ल में संतुलन: उन्होंने बताया कि ऐसे में जो बड़ी मछली होती है वह छोटी मछलियों को खा जाते हैं. जिसके चलते पक्षियों के लिए चारा नहीं रह पाता. इस दौरान बेनथिंग ऑर्गेनेज्म एक तरह के पानी के नीचे की स्थल होती है. स्थल को पक्षियों और मछलियों के लिए महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. ऐसे में एक हैरानी वाली बात यह रही कि जो बीज सुखना लेक में डाला गया था. हमें उसी नस्ल की मछलियां अधिकतर मिली और वे सब मछलियां सेहतमंद और वजनदार थी.

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60 किलो वजनदार मछली को निकाला बाहर: इस दौरान हमें लेक में एक ग्रास कॉप नाम की मछली मिली जिसका वजन 60 किलो था. ऐसे में मछलियों का आपस में संतुलन बना रहे, उसके लिए अलग नस्ल मछलियों को भी बीच में डालना पड़ता है. जिससे कि पानी में हर नस्ल की मछली के साथ वे रह सके. इस दौरान एग्जॉटिक्स मछलियों को भी डाला जाता है.

गर्मियों में मछलियों के मरने की संभावना: वहींं, गर्मियों की शुरुआत हो गई है. ऐसे में पानी सूखने शुरू हो जाएगा. इसके चलते सुखना लेक में पानी कम और मछलियां अधिक हो जाएंगी. ऐसे में बड़ी मछलियों के मरने की अधिक संभावनाएं रहती है. जिसके कारण इलाके में बदबू और प्रदूषण फैलने के भी कारण पैदा होते हैं. जो कि चंडीगढ़ के वातावरण को प्रभावित कर सकते हैं. ऐसे में मछलियों के विषय में एकत्र किया गया डाटा अक्टूबर महीने तक चंडीगढ़ प्रशासन को जूलॉजी विभाग द्वारा दिया जाएगा.

7 साल बाद सुखना झील से हटाई गई बड़ी मछलियां, 221 क्वॉन्टाइल को बाहर निकाला

चंडीगढ़: चंडीगढ़ में सुखना लेक में इकोलॉजिकल बैलेंस बनाने के लिए 7 साल बाद अभियान चलाया गया. जहां बड़ी फिशर विभाग और पंजाब यूनिवर्सिटी में जूलॉजी विभाग के टीम ने मिलकर मछलियों को पानी के बाहर निकाला गया. इस दौरान कुछ ऐसी मछलियां भी वहां पाई गई, जो उत्तर भारत के किसी भी नदी नालों में नहीं पाई जाती. चंडीगढ़ में जूलॉजी डिपार्टमेंट के विशेषज्ञ और प्रोफेसर रवनीत कौर और उनकी टीम द्वारा एक महीने तक इस अभियान से संबंधित जानकारी को एकत्र करने का काम किया गया.

पर्यावरण संतुलन बनाने पर जोर: बता दें कि सुखना लेक में हर साल सुखना लेक का पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए हर तीन से चार साल के बाद सीड डाला जाता है. इसी दौरान पुरानी मछलियों को निकालने का भी काम किया जाता है. लेकिन कोरोनाकाल के कारण यह तीन साल तक नहीं किया जा सका. जिसके चलते सुखना लेक सफाई अभियान सात साल तक के लंबे समय तक पहुंच गया. वहीं, मार्च महीने में शुरू हुई इस प्रक्रिया में 221 क्वॉन्टाइल बड़ी मछलियों को निकाला गया. वहीं इस दौरान 60 किलो की एक बड़ी मछली भी पाई गई.

10 दिनों तक लेक सफाई अभियान जारी: इनमें सबसे ज्यादा मृगल मछलियां निकाली गई. वहीं फरवरी महीने के अंत से शुरू हुआ अभियान 22 मार्च तक चलाया गया. चंडीगढ़ प्रशासन के पशुपालन व मत्स्य विभाग की तरफ से पारिस्थितिकी संतुलन (इकोलॉजिकल बैलेंस) के लिए लेक से मछलियों को निकालने का काम किया था. मछलियों को निकालने का काम रात आठ बजे से सुबह छह बजे तक सुखना झील पर जाल लगाया जाता था. 10 दिन तक इस अभियान को चलाने का फैसला लिया गया है.

लेक से निकाली गई चार प्रकार की मछलियां: पहले दिन छह प्रकार की करीब 65 क्विंटल मछलियां निकाली गई थीं, जबकि दूसरे दिन 35 क्विंटल मछलियां निकाली गई थीं. विभाग ने मछलियों के नमूनों को जांच के लिए जीव विज्ञान विभाग की टीम द्वारा सुबह तीन बजे पहुंच कर मछलियों के सैंपल लिए जाते. जिसमें उनके वजन, उम्र, बीमारी, और अन्य संबंधित जानकारी को एकत्र किया जाता. बता दे कि सुखना लेक में से चार तरह की मछलियां निकली गई, उनमें मृगल, कतला, गोल्ड कार्प और कॉमन कार्प मछली आदि हैं.

Quantile large fishes removed from Sukhna Lake Chandigarh
7 साल बाद सुखना झील से हटाई गई बड़ी मछलियां

अफ्रीका में पाई जाने वाली मछली को भी बाहर निकाला: सफाई के दौरान एक मछली मिली थी, जो हाइपो टॉमस जबकि एक्वेरियम में पाई जाती है. ऐसे में इस मछली का काम एक्वेरियम को साफ रखने का होता है. यह एक तरह की कैटफिश होती है जो अफ्रीका में अधिकतम पाई जाती है. अनुमान है कि लोग अक्सर जो मछलियां नहीं पाल सकते वे अक्सर सुखना लेक मछलियों में छोड़ जाते हैं. वहीं, मेरा मानना है कि यह एक गलत तरीका है. क्योंकि पानी और पर्यावरण को देखते हुए जिन मछलियों को यहां रहना संभव है. हम उन मछलियों की नस्ल को ही यहां पर रहते हैं.

सुखना लेक को कब बनाया गया: चंडीगढ़ में दो मानव निर्मित झील बनाई गई है. जिनमें से एक सुखना लेक है. 1985 के बाद बनाई गई सुखना लेक में जहां 30-विषम प्रजातियों के रहने के लिए अनुकूल वातावरण दिया गया है. मौजूदा समय में प्रमुख भारतीय कार्प और कुछ विदेशी कार्प शामिल हैं. प्रशासन ने झील में चुनिंदा मछली पकड़ने के अधिकारों की नीलामी बंद कर दी, जिसके परिणामस्वरूप मछली की उम्र बढ़ने लगी, जो छोटी मछलियों पर निर्भर रहने लगी, जिससे छोटी नस्लों के लिए भोजन की समस्या पैदा हो गई.

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निकाली गई मछलियों का अध्ययन करेंगे छात्र: सुखना एक छोटी झील है, जिसमें बड़ी झीलों के विपरीत, वनस्पतियों और जीवों के पारिस्थितिक प्रबंधन की विशिष्ट आवश्यकताएं हैं. क्योंकि वे परिवर्तनों के प्रति बहुत संवेदनशील हैं. वन विभाग ने पिछली बरसात में बड़ी मछलियों की असामान्य मौत की सूचना मिलने के बाद उन्हें हटाने की सिफारिश की थी. ऐसे में 13 से 22 मार्च तक चले इस अभियान में यूटी वन विभाग और पंजाब विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग और पशुपालन और मत्स्य पालन द्वारा मिलकर काम किया गया. इस दौरान जूलॉजी विभाग की प्रोफसर रवनीत कौर ने अपनी टीम के साथ मिलकर सुखना लेक के संतुलन को बनाए रखने और निकाली गई मछलियों का अध्ययन करना शुरू कर दिया है.

Quantile large fishes removed from Sukhna Lake Chandigarh
221 क्वॉन्टाइल को बाहर निकाला

सुखना लेक का पर्यावरण संतुलन बनाना आवश्यक: ऐसे में प्रोफेसर रवनीत कौर ने बताया कि सुखना लेक के वातावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिए यह करना जरूरी होता है. ऐसे में बड़ी मछलियों को हटाने से छोटी मछलियों और सर्वाहारी प्रवासी पक्षियों के लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ेगी. इस दौरान मछली पकड़ने वाले मछुआरों को 6 सेमी के जाल का साइज रखने के लिए कहा गया था. उन्होंने कहा कि सुखना की मछलियों और जीवों के कायाकल्प के लिए आने वाले दिनों में विशेषज्ञों के परामर्श से मछली के नए बीज जारी किए जाएंगे और मछलियों की नई किस्मों को भी पाला जाएगा.

मछलियों की नस्ल में संतुलन: उन्होंने बताया कि ऐसे में जो बड़ी मछली होती है वह छोटी मछलियों को खा जाते हैं. जिसके चलते पक्षियों के लिए चारा नहीं रह पाता. इस दौरान बेनथिंग ऑर्गेनेज्म एक तरह के पानी के नीचे की स्थल होती है. स्थल को पक्षियों और मछलियों के लिए महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. ऐसे में एक हैरानी वाली बात यह रही कि जो बीज सुखना लेक में डाला गया था. हमें उसी नस्ल की मछलियां अधिकतर मिली और वे सब मछलियां सेहतमंद और वजनदार थी.

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60 किलो वजनदार मछली को निकाला बाहर: इस दौरान हमें लेक में एक ग्रास कॉप नाम की मछली मिली जिसका वजन 60 किलो था. ऐसे में मछलियों का आपस में संतुलन बना रहे, उसके लिए अलग नस्ल मछलियों को भी बीच में डालना पड़ता है. जिससे कि पानी में हर नस्ल की मछली के साथ वे रह सके. इस दौरान एग्जॉटिक्स मछलियों को भी डाला जाता है.

गर्मियों में मछलियों के मरने की संभावना: वहींं, गर्मियों की शुरुआत हो गई है. ऐसे में पानी सूखने शुरू हो जाएगा. इसके चलते सुखना लेक में पानी कम और मछलियां अधिक हो जाएंगी. ऐसे में बड़ी मछलियों के मरने की अधिक संभावनाएं रहती है. जिसके कारण इलाके में बदबू और प्रदूषण फैलने के भी कारण पैदा होते हैं. जो कि चंडीगढ़ के वातावरण को प्रभावित कर सकते हैं. ऐसे में मछलियों के विषय में एकत्र किया गया डाटा अक्टूबर महीने तक चंडीगढ़ प्रशासन को जूलॉजी विभाग द्वारा दिया जाएगा.

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