चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने उस तर्क को गलत करार दिया है. जिसमें ये कहा गया है कि कामकाजी महिला अपने बच्चे की समुचित देखभाल नहीं कर सकती. कोर्ट के अनुसार कामकाजी महिला को लापरवाह महिला के रूप में प्रस्तुत करना नकारात्मक सोच है. ये टिप्पणी एजी मसीह की पीठ ने चंडीगढ़ जिला अदालत के एक फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई के दौरान की.
ये है पूरा मामला
दरअसल एक वकील दंपत्ति में बच्चे की देखभाल को लेकर झगड़ा हुआ था. जिस मामले में चंडीगढ़ की जिला अदालत ने फैसला सुना दिया था. जिसके बाद बच्चे के दादा, दादी व अन्य ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका डालकर बच्चे को हिन्दू संरक्षण अधिनियम 1956 के तहत बच्चे का संरक्षण उन्हें देने की मांग की थी.
मां पर लगे थे देखभाल ना करने के आरोप
याचिका में कहा गया था कि बच्चे के माता-पिता दोनों वकील हैं. वकालत शुरू करने के बाद बच्चे की मां ने अपने पति और परिवारवालों से दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया. बच्चे की भी परवाह नहीं की. जिसके बाद पति-पत्नी के बीच झगड़े होने लगे.
दो साल पहले बच्चे की मां ने घर छोड़ दिया. बच्चे के दादा-दादी की तरफ से हाईकोर्ट को बताया गया कि प्रतिवादी वकालत करने के चलते बच्चे की यथोचित देखभाल नहीं कर सकती. इसलिए बच्चे का संरक्षण उन्हें दे दिया जाए.
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इस पर जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि महिला वकील अपने व्यवसाय में सफलता हासिल कर रही है. तो वह अच्छी माता के रूप में भी सफल हो सकती है.
पीठ ने चंडीगढ़ की परिवारिक अदालत को तीन महीने के भीतर इस प्रकरण का निपटारा करने के भी निर्देश दिया है. इसके साथ ही तीन साल के बच्चे के संरक्षण को लेकर दायर की गई दादा-दादी की पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया.