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जज को ही अदालत से इंसाफ के लिए करना पड़ा 9 साल इंतजार, जानिए क्यों ?

नोटिफिकेशन के बाद जज को 4 लाख की जगह सिर्फ 3 लाख के आसपास भुगतान किया गया. जिसके खिलाफ जाते हुए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका डाली.

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Published : Jun 29, 2019, 11:38 PM IST

Updated : Jun 29, 2019, 11:55 PM IST

9 साल के लंबे इंतजार के बाद जज को मिला इंसाफ, HC ने सुनाया पक्ष में फैसला

चंडीगढ़: दूसरों को इंसाफ दिलाने वाले जज को अपने ही इंसाफ की लड़ाई जीतने में 9 साल का लंबा वक्त लग गया. भले ही आपको सुनकर अजीब लगे, लेकिन ये सच है. एडिशनल सेशन जज डीके सिंह ने मेडिकल रीइंबर्समेंट नहीं मिलने पर उसे एम्स के रेट के बराबर देने की चुनौती हाईकोर्ट में दी थी.

जब जज लीगल सर्विस अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेटरी थे तो उस दौरान उनका इलाज चला था. उनके इलाज का बिल करीब 4 लाख का था. तब सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा गया था कि जो भी जुडिशियल ऑफिसर हैं उन्हें उनके मेडिकल बिल का कुल भुगतान किया जाएगा. इस भुगतान में एम्स का रेट शामिल नहीं होगा.

नोटिफिकेशन के बाद उन्हें 4 लाख की जगह सिर्फ 3 लाख के आसपास भुगतान किया गया. जिसके खिलाफ जाते हुए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका डाली. अब हाईकोर्ट ने मेडिकल बिल को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करने के आदेश दिए हैं.

चंडीगढ़: दूसरों को इंसाफ दिलाने वाले जज को अपने ही इंसाफ की लड़ाई जीतने में 9 साल का लंबा वक्त लग गया. भले ही आपको सुनकर अजीब लगे, लेकिन ये सच है. एडिशनल सेशन जज डीके सिंह ने मेडिकल रीइंबर्समेंट नहीं मिलने पर उसे एम्स के रेट के बराबर देने की चुनौती हाईकोर्ट में दी थी.

जब जज लीगल सर्विस अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेटरी थे तो उस दौरान उनका इलाज चला था. उनके इलाज का बिल करीब 4 लाख का था. तब सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा गया था कि जो भी जुडिशियल ऑफिसर हैं उन्हें उनके मेडिकल बिल का कुल भुगतान किया जाएगा. इस भुगतान में एम्स का रेट शामिल नहीं होगा.

नोटिफिकेशन के बाद उन्हें 4 लाख की जगह सिर्फ 3 लाख के आसपास भुगतान किया गया. जिसके खिलाफ जाते हुए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका डाली. अब हाईकोर्ट ने मेडिकल बिल को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करने के आदेश दिए हैं.

Intro:जज साहिब ने इंसाफ के लिए लड़ी 9 साल की लड़ाई

-हाईकोर्ट ने मेडिकल बिल के 9 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान के दिए आदेश
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दूसरों के लिए इंसाफ का फैसला सुनाने वाले न्यायाधी को अपने लिए ही इंसाफ पाने केलिए 9 साल की लंबी लड़ाई लडऩी पड़ी। मेडिकल बिल का रिइंबरसमेंट पूरा न करने के स्थान पर एम्स के रेट के अनुसार करने को एडिशनल सेशन जज डीके मोंगा ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
मोंगा ने याचिका में बताया था कि जब वह लीगल सर्विस अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेटरी थे तो उस दौरान उनका ईलाज चला था। इस दौरान कुल बिल 436943 रुपये का बना था जिसे सरकार को सौंप दिया गया था। सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा था कि जो भी जुडिशियल ऑफिसर होंगे उन्हें उनके मेडिकल बिल का कुल भुगतान किया जाएगा न की एम्स के रेट के अनुसार। Conclusion:जब याची के बिल के भुगतान का समय आया तो कुल बिल भुगतान के स्थान पर एम्स रेट के अनुसार केवल 308924 रुपये का भुगतान किया गया और बाकी का नहीं। इस बारे में सरकार को रिप्रेजेंटेशन देने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसके चलते याची ने हाईकोर्टकी शरण ली। हाईकोर्ट ने याची पक्ष की दलीलों को सुनने के बाद सरकार से जवाब मांगा। सरकार ने इस नोटिफिकेशन को तो स्वीकार किया लेकिन याची की दलीलों का विरोध। सरकार की दलीलों से असंतुष्टï होते हुए हाईकोर्ट ने लंबित राशि का 9 प्रतिशत ब्याज के साथ दो माह में भुगतान करने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही यह भी स्पष्टï कर दिया कि यादि याची को इस राशि का भुगतान समय पर नहीं किया गया तो राशि का भुगतान 12 प्रतिशत ब्याज के साथ करना होगा।
Last Updated : Jun 29, 2019, 11:55 PM IST
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