चंडीगढ़: कृषि कानूनों को लेकर हरियाणा और पंजाब के किसान सड़कों पर हैं. किसान लगातार नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. वहीं अब कृषि कानून पर राजनीति भी तेज हो गई है. कांग्रेस ने कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब से 'खेती बचाओ यात्रा' शुरू की है जो 6 अक्टूबर को हरियाणा में प्रवेश करेगी. इस यात्रा के हरियाणा में प्रवेश होने से पहले ही हरियाणा में बवाल शुरू हो चुका है. इससे पहले राहुल गांधी की 'खेती बचाओ यात्रा' को लेकर हरियाणा कांग्रेस ने बैठक की.
हरियाणा में राहुल की यात्रा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कृषि कानून के विरोध में पंजाब से हरियाणा तक ट्रैक्टर यात्रा करने का ऐलान किया है. उनकी ये यात्रा रविवार को पंजाब से शुरू हो गई है. वहीं हरियाणा में दो दिन तक राहुल गांधी की ये 'खेती बचाओ यात्रा' रहेगी. ये यात्रा 6 अक्टूबर को पिहोवा से शुरू होकर 7 अक्टूबर को करनाल में समाप्त हो जाएगी. खबर ये भी है कि राहुल गांधी पिपली और कैथल में जनसभा को संबोधित कर सकते हैं.
'खेती बचाओ यात्रा' पर सियासत
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की किसान ट्रैक्टर यात्रा को लेकर दोनों राज्यों (पंजाब और हरियाणा) में सियासत लगातार गर्मायी हुई है. हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि राहुल गांधी खुद आना चाहते हैं तो हजार बार हरियाणा में आएं इस पर कोई एतराज नहीं. अगर वो पंजाब से जुलूस लेकर हरियाणा में दाखिल होना चाहते हैं और हरियाणा का माहौल खराब करना चाहते हैं तो उन्हें ऐसा नहीं करने दिया जाएगा.
क्या कहा था पंजाब के सीएम ने?
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गृह मंत्री से पूछा कि, 'हरियाणा में जंगल राज है क्या? जहां आप किसी को भी रोक सकते हो, यहां तक कि राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के एक चुने हुए नेता को भी किसानों के साथ हुई बेइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए राज्य में दाखिल होने से रोक सकते हो'.
'राहुल गांधी के पास कोई काम नहीं है'
राहुल गांधी की 'खेती बचाओ रैली' को लेकर करनाल में मुख्यमंत्री ने बड़ा बयान दिया. सीएम मनोहर लाल ने कहा कि राहुल गांधी के पास कोई काम नहीं है. अभी मुझे उनके कार्यक्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं है. अगर कार्यक्रम आता है तो फिर तय किया जाएगा. हां, एक बात साफ है कि किसी को भी प्रदेश में कानून अपने हाथ में नहीं लेने दिया जाएगा.
आमने-सामने की लड़ाई में किसान
कृषि कानून पर शुरू हुआ बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. हरियाणा और पंजाब में इन कानूनों का सबसे ज्यादा विरोध देखने को मिल रहा है. कई किसान संगठन और विपक्षी पार्टियां इन्हें काला कानून और किसान विरोधी बता रही हैं. किसानों का कहना है कि नए कृषि कानून कुछ एक पूंजीपतियों के लिए हैं. उन्होंने कहा कि अब सरकार जो ढांचा खड़ा करने की कोशिश कर रही है उससे सिर्फ कुछ पूंजीपति ही देश में खाद्य सामग्री खरीद पाएंगे. किसानों का कहना है कि कुछ ही पूंजीपति किसान से फसल खरीदेंगे और फिर अपनी जरूरत के अनुसार कालाबाजारी भी की जाएगी.
जानिए कृषि कानून जिनका हो रहा विरोध
- किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानू, 2020 का उद्देश्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है.
- किसानों (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) का मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती की इजाजत देना है.
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है.