चंडीगढ़: जेबीटी भर्ती घोटाले (JBT Recruitment Scam) में सजा पूरी करने के बाद हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) तिहाड़ जेल से आज रिहा हो जाएंगे. ओम प्रकाश चौटाला के जेल से रिहा होने के बाद रानजीतिक पंडित हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में सियासी पारा फिर बढ़ने के आसार जता रहे हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि हरियाणा की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं.
ये सियासी तपीश एक तरफ इंडियन नेशनल लोकदल (Indian National Lokdal) यानी इनेलो में नया जोश बढ़ाने का काम कर सकती है. दूसरी तरफ ये तपिश दूसरे सियासी दलों के खतरा भी साबित हो सकती है. राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं हैं कि ओपी चौटाला के खुलकर राजनीतिक मैदान में उतरने से हरियाणा की राजनीति उफान लेगी. जेल में रहते हुए भी ओमप्रकाश चौटाला ने पार्टी के कार्यकर्ताओं से संवाद बनाए रखा. जिससे कि आज भी पुराने कार्यकर्ता उनसे जुड़े हुए हैं.
चर्चाएं हैं कि ओपी चौटाला के पूर्ण रूप से बाहर आने पर हरियाणा की राजनीति (Haryana political equations) में गर्मी जरा बढ़ जाएगी. क्योंकि साल 1970 में जनता दल के सदस्य के रूप में पहली बार विधानसभा पहुंचे ओपी चौटाला का कनेक्शन कार्यकर्ताओं के साथ है वो उनके बेटों का नहीं है. क्योंकि अब इनेलो दो फाड़ हो चुकी है और अजय चौटाला अपना रास्ता अलग कर चुके हैं तो अभय चौटाला के लिए ओपी चौटाला की रिहाई एक संजीवनी साबित हो सकता है.
हरियाणा में बदलेंगे सियासी समीकरण?
इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) के राजनीति में सक्रिय होने से इनेलो को कितनी मजबूती मिलेगी ये सवाल उठने लगा है. ईटीवी भारत हरियाणा से इस मुद्दे पर बातचीत करते हुए राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि ओपी चौटाला राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. सबकी रुचि इसमें रहेगी कि वो बाहर आकर कितनी गतिविधि करते हैं. गुरमीत सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री रहते हुए ओपी चौटाला 1 दिन में तीन से चार जिलों को कवर किया करते थे. मौजूदा समय में वो इस तरीके से सक्रिय रहेंगे या नहीं ये देखना होगा.
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प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि ओपी चौटाला सरकार के खिलाफ किस तरीके से मुहिम चलाएंगे और क्या परिवार को एकजुट करने में कामयाब रहेंगे. ये देखना भी दिलचस्प होगा. तेजी से अगर गतिविधियां ओपी चौटाला करते हैं और राजनीति में सक्रिय रहते हैं तो हरियाणा में राजनीतिक उथल-पुथल भी देखने को मिल सकती है. क्योंकि उनके पंजाब में अकाली दल के साथ अच्छे रिश्ते हैं. आने वाले समय में हरियाणा में सियासी समीकरण भी देखने को मिल सकते हैं.
जेजेपी के अलग होने के बाद कमजोर हुई इनेलो
ओम प्रकाश चौटाला के जेल में रहने के दौरान पारिवारिक कलह की वजह से उनके पोते दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala Deputy cm Haryana) ने अलग पार्टी बनाई. जिसका नाम जननायक जनता पार्टी (Jannayak Janata Party) रखा. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल से टूटकर जननायक जनता पार्टी का गठन हुआ. इंडियन नेशनल लोकदल का अधिकतर वोट जेजेपी में शिफ्ट हो गया. जिस वजह से जेजेपी इस बार 10 सीटों पर जीत प्राप्त करने में कामयाब हुई. साल 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल का वोट शेयर 24.73 प्रतिशत था. उसे कुल 2996203 वोट मिले थे. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल का वोट शेयर सिर्फ 2.45 प्रतिशत रहा. उसे सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली. जबकि इंडियन नेशनल लोकदल से अलग होकर बनी जेजेपी को इस बार 27.34 प्रतिशत वोट मिले.
किसान आंदोलन पर रहेगा फोकस?
फिलहाल उनके पोते दुष्यंत चौटाला हरियाणा में बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार का हिस्सा हैं. वो राज्य सरकार में डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, लेकिन किसान आंदोलन के चलते हरियाणा की सियासत में उनके राजनीतिक ग्राफ गिरा है. वहीं किसान आंदोलन के समर्थन में ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला हरियाणा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं. ऐसे में अब ओपी चौटाला के पास किसानों के मुद्दे पर पार्टी की जमीन को और मजबूत करने का मौका होगा.
जेजेपी-इनेलो के बीच बढ़ेगा टकराव?
हरियाणा की राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले ओपी चौटाला की सजा पूरी होने के बाद उनके बड़े बेटे अजय चौटाला और पोते दुष्यंत चौटाला के बीच सियासी टकराव का नया रूप देखने को मिल सकता है. अब देवीलाल की विरासत को लेकर इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी के बीच तल्खी भी बढ़ती नजर आ रही है. इसकी बानगी सिरसा में देखने को मिली. ताऊ देवीलाल की मूर्ति के शुद्धिकरण वाले वाक्ये ने एक नया सवाल खड़ा कर दिया. पहले ओम प्रकाश चौटाला और उनके भाई रणजीत चौटाला में खींचतान और अब अभय चौटाला और अजय चौटाला के बीच दूरी. फिर उनके बेटों तक ये खाई बढ़ती जा रही है.
प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि मूर्ति को धोना परिवार में आपसी कड़वाहट को दिखाता है. उन्होंने कहा कि मूर्ति के शुद्धिकरण से कुछ नहीं होता. असल विरासत जनता तय करती है. विरासत ना तो मूर्ति लगाने और ना ही मूर्ति को धो देने से साबित होती है. हरियाणा में चौधरी देवीलाल के विचारों पर चलने का दम भरने वाली जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल के बीच अब उनका सच्चा हितैषी कौन हैं. इसको लेकर भी शायद खींचतान शुरू हो चुकी है. प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि उनके सामने चुनौती रहेगी कि आज के समय में भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाट नेता के तौर पर हैं. वहीं किसान आंदोलन को लेकर अब ओपी चौटाला की क्या भूमिका रहती है. ये भी देखना होगा.
क्या राजनीति में सक्रिय होंगे ओपी चौटाला?
भले ही ओमप्रकाश चौटाला तिहाड़ जेल रिहा हो चुके हैं. इसके बावजूद लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8(1) के तहत रिहाई से 6 साल की अवधि तक यानी जून 2027 तक चौटाला चुनाव नहीं लड़ सकते. लेकिन, चौटाला के पास कानून की धारा-11 के तहत अपनी अयोग्यता अवधि को कम करने या खत्म करने के लिए चुनाव आयोग के पास अर्जी दायर करने का विकल्प है. सितंबर 2019 में आयोग ने सिक्किम के वर्तमान सीएम प्रेम सिंह तमांग के चुनाव लड़ने के लिए लगी 6 वर्ष की अयोग्यता अवधि को घटाकर एक वर्ष एक माह कर दिया था. वे भी भ्रष्टाचार में दोषी ठहराए गए थे. इसी तर्ज पर ओम प्रकाश चौटाला को भी चुनाव आयोग राहत दे सकता है.