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आदमपुर उपचुनाव में बीजेपी की जीत से बदला हरियाणा का सियासी समीकरण

आदमपुर विधानसभा के उपचुनाव में बीजेपी ने जीत (BJP Victory in Adampur by Election) दर्ज की है. करीब 16 हजार मतों से मिली इस जीत से बीजेपी उत्साहित है. उत्साहित होना भी लाजमी है क्योंकि बीजेपी-जेजेपी गठबंधन की सरकार बनने के बाद प्रदेश में यह तीसरा उपचुनाव था. इससे पहले हुए उपचुनाव में गठबंधन की सरकार को हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में मिली यह जीत निश्चित तौर पर ही बीजेपी का मनोबल बढ़ाने वाली है. वहीं विपक्ष की जिस तरीके से हार हुई है वह निश्चित ही उनके लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं.

BJP Victory in Adampur by Election
BJP Victory in Adampur by Election
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Published : Nov 7, 2022, 8:03 PM IST

चंडीगढ़: आदमपुर विधानसभा पर पिछले 51 सालों से पूर्व सीएम भजन लाल के परिवार का वर्चस्व रहा है. ऐसे में इसी परिवार की तीसरी पीढ़ी का उम्मीदवार बीजेपी को मिलना, वही कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को बीजेपी और जेजेपी का पूरा साथ मिल गया तो ऐसे में उनकी जीत पक्की हो गई. इतना ही नहीं बीजेपी संगठन का जमीनी स्तर पर काम करना और सारे समीकरणों के हिसाब से पार्टी के नेताओं को आदमपुर में उतारना, भव्य बिश्नोई की जीत (Adampur by election results) को पक्का करने के लिए काफी था.

इसके अलावा जेजेपी के कार्यकर्ताओं का मिलकर काम करना भी भव्य बिश्नोई को फायदा दे गया, यानि आदमपुर में कुलदीप बिश्नोई परिवार के पारिवारिक जनाधार के साथ साथ भव्य बिश्नोई की जीत का बड़ा कारण बीजेपी और जेजेपी का वोट बैंक भी रहा. अगर बीजेपी के टिकट के बिना भव्य बिश्नोई चुनाव लड़ते तो इतनी बड़ी जीत मुमकिन नहीं थी. जेजेपी को भी पिछले चुनाव में करीब 15 हजार वोट मिले थे. यह दोनों फैक्टर मिलाकर ही भव्य विश्नोई को इतनी बड़ी जीत मिली है. आदमपुर बेशक पूर्व मुख्यमंत्री भजनलल के परिवार को समर्थन देता रहा हो, लेकिन लंबे समय से इस विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधि का सरकार से सीधा ना जुड़ा हो पाना भी कहीं ना कहीं भव्य बिश्नोई की जीत की वजह बना.

आदमपुर में क्यों हारी कांग्रेस- आदमपुर विधानसभा उपचुनाव (Adampur by election results) में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन वैसे तो एक विपक्षी दल के तौर पर खराब नहीं मानी जा सकती लेकिन जिस तरह बीजेपी- जेजेपी सरकार बनने के बाद उनका प्रदर्शन बड़ौदा विधानसभा उपचुनाव में था वो आदमपुर में देखने को नहीं मिला. कांग्रेस की हार की सबसे बड़ी वजह पार्टी के उम्मीदवार का बाहरी होना माना जा रहा है.

कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार जयप्रकाश ने 2009 में आदमपुर से चुनाव लड़ा था. जिसके बाद वह सीधे इस उपचुनाव में आदमपुर में उतरे. ऐसे में आदमपुर की जनता का उनको भले ही कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर समर्थन मिला हो, लेकिन वह जीत नहीं पाए. इस उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने जयप्रकाश की जीत के लिए खूब पसीना बहाया. लेकिन हरियाणा कांग्रेस एक साथ खड़ी दिखाई नहीं दी. हरियाणा कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष कुमारी शैलजा, पार्टी की वरिष्ठ नेता किरण चौधरी और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला इस उपचुनाव से दूर ही रहे.

आम आदमी पार्टी का आदमपुर में क्यों निकला दम- हरियाणा में पहली बार विधानसभा की किसी सीट के चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी भी मैदान में उतरी थी. पंजाब में मिली जबरदस्त जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी आदमपुर में भी परचम लहराने के लिए पूरी ताकत लगाकर उतरी थी. दो राज्यों के मुख्यमंत्री भी प्रचार में उतरे, लेकिन वह भी आदमपुर में अपने प्रत्याशी की जमानत जब्त होने से नहीं बचा पाए.

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पंजाब और हरियाणा के बीच कई मुद्दों को लेकर विवाद है. जिसमें एसवाईएल हो या फिर राजधानी चंडीगढ़ का विवाद, इसको लेकर आम आदमी पार्टी की स्पष्ट नीति दिखाई नहीं देने से मतदाताओं में अच्छा संदेश नहीं गया, उसका खामियाजा आम आदमी पार्टी को भुगतना पड़ा. वहीं पंजाब पड़ोसी राज्य है, पंजाब में बढ़ रही आपराधिक वारादत का असर भी आम आदमी पार्टी को नुकसान कर गिया.

इनेलो खुद की स्थिति बेहतर करने में फेल- इंडियन नेशनल लोकदल भी इस उपचुनाव में उस तरह का प्रदर्शन नहीं कर पाई, जिससे यह लगे कि आने वाले दिनों में पार्टी हरियाणा में खुद को मजबूत कर पाएगी. पार्टी ने भी कांग्रेस से अलग हुए नेता को अपना उम्मीदवार बनाया था. लेकिन उनका उम्मीदवार भी जमानत नहीं बचा पाया. पार्टी के पास आदमपुर में जमीनी स्तर पर किसी मजबूत नेता का नाम नहीं होना भी उसकी हार की वजह बना.

ये भी पढ़ें- आदमपुर उपचुनाव में बीजेपी की जीत, 15 हजार वोटों से जीते भव्य बिश्नोई

चंडीगढ़: आदमपुर विधानसभा पर पिछले 51 सालों से पूर्व सीएम भजन लाल के परिवार का वर्चस्व रहा है. ऐसे में इसी परिवार की तीसरी पीढ़ी का उम्मीदवार बीजेपी को मिलना, वही कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को बीजेपी और जेजेपी का पूरा साथ मिल गया तो ऐसे में उनकी जीत पक्की हो गई. इतना ही नहीं बीजेपी संगठन का जमीनी स्तर पर काम करना और सारे समीकरणों के हिसाब से पार्टी के नेताओं को आदमपुर में उतारना, भव्य बिश्नोई की जीत (Adampur by election results) को पक्का करने के लिए काफी था.

इसके अलावा जेजेपी के कार्यकर्ताओं का मिलकर काम करना भी भव्य बिश्नोई को फायदा दे गया, यानि आदमपुर में कुलदीप बिश्नोई परिवार के पारिवारिक जनाधार के साथ साथ भव्य बिश्नोई की जीत का बड़ा कारण बीजेपी और जेजेपी का वोट बैंक भी रहा. अगर बीजेपी के टिकट के बिना भव्य बिश्नोई चुनाव लड़ते तो इतनी बड़ी जीत मुमकिन नहीं थी. जेजेपी को भी पिछले चुनाव में करीब 15 हजार वोट मिले थे. यह दोनों फैक्टर मिलाकर ही भव्य विश्नोई को इतनी बड़ी जीत मिली है. आदमपुर बेशक पूर्व मुख्यमंत्री भजनलल के परिवार को समर्थन देता रहा हो, लेकिन लंबे समय से इस विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधि का सरकार से सीधा ना जुड़ा हो पाना भी कहीं ना कहीं भव्य बिश्नोई की जीत की वजह बना.

आदमपुर में क्यों हारी कांग्रेस- आदमपुर विधानसभा उपचुनाव (Adampur by election results) में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन वैसे तो एक विपक्षी दल के तौर पर खराब नहीं मानी जा सकती लेकिन जिस तरह बीजेपी- जेजेपी सरकार बनने के बाद उनका प्रदर्शन बड़ौदा विधानसभा उपचुनाव में था वो आदमपुर में देखने को नहीं मिला. कांग्रेस की हार की सबसे बड़ी वजह पार्टी के उम्मीदवार का बाहरी होना माना जा रहा है.

कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार जयप्रकाश ने 2009 में आदमपुर से चुनाव लड़ा था. जिसके बाद वह सीधे इस उपचुनाव में आदमपुर में उतरे. ऐसे में आदमपुर की जनता का उनको भले ही कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर समर्थन मिला हो, लेकिन वह जीत नहीं पाए. इस उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने जयप्रकाश की जीत के लिए खूब पसीना बहाया. लेकिन हरियाणा कांग्रेस एक साथ खड़ी दिखाई नहीं दी. हरियाणा कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष कुमारी शैलजा, पार्टी की वरिष्ठ नेता किरण चौधरी और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला इस उपचुनाव से दूर ही रहे.

आम आदमी पार्टी का आदमपुर में क्यों निकला दम- हरियाणा में पहली बार विधानसभा की किसी सीट के चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी भी मैदान में उतरी थी. पंजाब में मिली जबरदस्त जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी आदमपुर में भी परचम लहराने के लिए पूरी ताकत लगाकर उतरी थी. दो राज्यों के मुख्यमंत्री भी प्रचार में उतरे, लेकिन वह भी आदमपुर में अपने प्रत्याशी की जमानत जब्त होने से नहीं बचा पाए.

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पंजाब और हरियाणा के बीच कई मुद्दों को लेकर विवाद है. जिसमें एसवाईएल हो या फिर राजधानी चंडीगढ़ का विवाद, इसको लेकर आम आदमी पार्टी की स्पष्ट नीति दिखाई नहीं देने से मतदाताओं में अच्छा संदेश नहीं गया, उसका खामियाजा आम आदमी पार्टी को भुगतना पड़ा. वहीं पंजाब पड़ोसी राज्य है, पंजाब में बढ़ रही आपराधिक वारादत का असर भी आम आदमी पार्टी को नुकसान कर गिया.

इनेलो खुद की स्थिति बेहतर करने में फेल- इंडियन नेशनल लोकदल भी इस उपचुनाव में उस तरह का प्रदर्शन नहीं कर पाई, जिससे यह लगे कि आने वाले दिनों में पार्टी हरियाणा में खुद को मजबूत कर पाएगी. पार्टी ने भी कांग्रेस से अलग हुए नेता को अपना उम्मीदवार बनाया था. लेकिन उनका उम्मीदवार भी जमानत नहीं बचा पाया. पार्टी के पास आदमपुर में जमीनी स्तर पर किसी मजबूत नेता का नाम नहीं होना भी उसकी हार की वजह बना.

ये भी पढ़ें- आदमपुर उपचुनाव में बीजेपी की जीत, 15 हजार वोटों से जीते भव्य बिश्नोई

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