अंबाला: एसवाईएल को लेकर मंगलवार को हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के बीच बैठक हुई. इस बैठक में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद रहे. बैठक के बाद पंजाब के मुख्यमत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर से बयान आया था कि उनके पास पानी नहीं है. पंजाब में पानी का पहले से ही टोटा है.
इस बारे में जब प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज से बात की गई तो उनका कहना है कि पानी है या नहीं है, ये मुद्दा विचाराधीन ही नहीं था. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में बहस और चर्चा हो चुकी है और पंजाब अपना पक्ष रख चुका. ये सब सुनने के बाद ही उच्चत्तम न्यायालय ने अपना फैंसला दिया था कि अब नहर बनाई जाए.
साथ ही उन्होंने कहा कि अब मसला ये है कि नहर कैसे बनाई जाए. उसे पंजाब बनाए या हरियाणा या कोई केंद्रीय एजेंसी इस नहर को बनाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने एसवाईएल को लेकर पूरी तरह से ये फैसला हरियाणा के पक्ष में दिया है.
इस मामले पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने हरियाणा के मुख्यमंत्री को अपना हक मजबूती से रखने की बात कही थी. इस पर विज ने कहा कि उन लोगों को पूरी तरह से अश्वस्त रहना चाहिए कि हमारे मुख्यमंत्री अपने पक्ष को पूरी मजबती से रखेंगे.
क्या है एसवाईएल विवाद ?
ये पूरा विवाद साल 1966 में हरियाणा राज्य के बनने से शुरू हुआ था. उस वक्त हरियाणा के सीएम पंडित भगवत दयाल शर्मा थे और पंजाब के सीएम ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर नए-नए गद्दी पर बैठे थे. पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे को लेकर सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना के अंतर्गत 214 किलोमीटर लंबा जल मार्ग तैयार करने का प्रस्ताव था. इसके तहत पंजाब से सतलुज को हरियाणा में यमुना नदी से जोड़ा जाना है.
ये भी पढ़ें:-'SYL को लेकर अगले हफ्ते बैठक के बाद सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जाएगी रिपोर्ट'
इसका 122 किलोमीटर लंबा हिस्सा पंजाब में होगा तो शेष 92 किलोमीटर हरियाणा में. हरियाणा समान वितरण के सिद्धांत मुताबिक कुल 7.2 मिलियन एकड़ फीट पानी में से 4.2 मिलियन एकड़ फीट हिस्से पर दावा करता रहा है लेकिन पंजाब सरकार इसके लिए राजी नहीं है. हरियाणा ने इसके बाद केंद्र का दरवाजा खटखटाया और साल 1976 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी की जिसके तहत हरियाणा को 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी का आवंटन किया गया.