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आजाद हिंद फौज के सैनिक से जानिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अनसुने, अनदेखे किस्से - सुनिए देश की आजादी की कहानी

दशकों बाद 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली. देशवासियों को आजाद फिजा मुहैया कराने के लिए हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिया. लेकिन भारत को आजाद कराने में कैसे आजाद हिंद फौज ने अहम भूमिका अदा की वो बताया रोहतक के रहने वाले 96 बरस के स्वतंत्रता सेनानी उमराव सिंह ने.

azadi ke parwaane
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Published : Aug 15, 2019, 3:15 PM IST

Updated : Aug 15, 2019, 3:53 PM IST

रोहतक: आज आजादी के इस दिन को हर भारतीय जश्न और जुनून के साथ मनाता रहा है और मनाता रहेगा. लेकिन यह आजादी कैसे मिली, हम आज कैसे बिना बंदिशों के सबसे मजबूत लोकतंत्र में जी रहे हैं. इसके पीछे लंबी कहानी है. देश को आजादी दिलाने में सबसे बड़ा हाथ आजाद हिंद फौज का है.

आजाद हिंद फौज के सैनिक से जानिए नेताजी के अनसुने, अनदेखे किस्से

रासबिहारी ने की थी आजाद हिंद फौज की स्थापना
आजाद हिंद फौज की स्थापना टोक्यो में 1942 में रासबिहारी बोस ने की थी. उन्होंने 28 से 30 मार्च तक फौज के गठन पर विचार के लिए एक सम्मेलन बुलाया और इसकी स्थापना हुई. जिसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था. आजाद हिंद फौज के निर्माण में जापान ने काफी सहयोग दिया. देश के बाहर रह रहे लोग इस सेना में शामिल हो गये. बाद में सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान संभाल ली. उन्होंने 1943 में टोक्यो रेडियो से घोषणा की, 'अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे. हमें भारत के भीतर और बाहर से स्वतंत्रता के लिये स्वयं संघर्ष करना होगा.

रोहतक के उमराव सिंह ने नेता जी को बहुत करीब से देखा
नेताजी के इसी संघर्ष को रोहतक के 96 बरस के स्वतंत्रता सेनानी उमराव सिंह ने बहुत करीब से देखा है, उनका कहना है कि सुभाष चंद्र बोस के साथ-साथ उनके चाचा रासबिहारी बोस की भी देश की आजादी में अहम भागीदारी है. निगाना गांव के रहने वाले 96 बरस के उमराव सिंह स्वतंत्रता सेनानी हैं, उमराव सिंह बताते हैं कि 1941 में अंग्रेजों की फौज में वह भर्ती हुए थे लेकिन उस वक्त अंग्रेजों और जापानियों के बीच में युद्ध चला रहा था इसलिए उन्हें ट्रेनिंग के बाद सिंगापुर जापानियों से युद्ध करने के लिए भेज दिया गया.

आजाद हिंद फौज का बन गए हिस्सा
उमराव सिंह का कहना है कि अंग्रेज जापानियों से युद्ध हार गए और उन्हें बंदी बना लिया गया, लेकिन इसके सुभाष चंद्र बोस और उनके चाचा रासबिहारी बोस ने जेल में बंद रहे सभी भारतीयों को आजाद हिंद फौज का हिस्सा बना लिया.

भारत को पहले ही मिल जाती आजादी
इतना ही नहीं उमराव सिंह बताते हैं कि भारत को 1947 के पहले ही आजादी मिल जाती अगर अमेरिका जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर हमला नहीं करता. उमराव सिंह का कहना है कि अगर उस वक्त अमेरिका हमला नहीं करता तो कीमती सामान भी बच जाता और पाकिस्तान भी भारत से अलग नहीं होता.

भारत की आजादी के दिलाने में जय हिंद फौज की अहम भूमिका
आज अगर हम आजाद हैं तो सिर्फ इस वजह से कि इसके पीछे 'तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आजादी दूंगा' के जज्बों के साथ लाखों जीवन की कुर्बानी है, 'जय हिंद' की आवाजों के साथ हर भारतीय का साथ है, 'कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा' जैसे गाने हैं, सुभाष चंद्र बोस और रासबिहारी बोस जैसे हीरो हैं.

रोहतक: आज आजादी के इस दिन को हर भारतीय जश्न और जुनून के साथ मनाता रहा है और मनाता रहेगा. लेकिन यह आजादी कैसे मिली, हम आज कैसे बिना बंदिशों के सबसे मजबूत लोकतंत्र में जी रहे हैं. इसके पीछे लंबी कहानी है. देश को आजादी दिलाने में सबसे बड़ा हाथ आजाद हिंद फौज का है.

आजाद हिंद फौज के सैनिक से जानिए नेताजी के अनसुने, अनदेखे किस्से

रासबिहारी ने की थी आजाद हिंद फौज की स्थापना
आजाद हिंद फौज की स्थापना टोक्यो में 1942 में रासबिहारी बोस ने की थी. उन्होंने 28 से 30 मार्च तक फौज के गठन पर विचार के लिए एक सम्मेलन बुलाया और इसकी स्थापना हुई. जिसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था. आजाद हिंद फौज के निर्माण में जापान ने काफी सहयोग दिया. देश के बाहर रह रहे लोग इस सेना में शामिल हो गये. बाद में सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान संभाल ली. उन्होंने 1943 में टोक्यो रेडियो से घोषणा की, 'अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे. हमें भारत के भीतर और बाहर से स्वतंत्रता के लिये स्वयं संघर्ष करना होगा.

रोहतक के उमराव सिंह ने नेता जी को बहुत करीब से देखा
नेताजी के इसी संघर्ष को रोहतक के 96 बरस के स्वतंत्रता सेनानी उमराव सिंह ने बहुत करीब से देखा है, उनका कहना है कि सुभाष चंद्र बोस के साथ-साथ उनके चाचा रासबिहारी बोस की भी देश की आजादी में अहम भागीदारी है. निगाना गांव के रहने वाले 96 बरस के उमराव सिंह स्वतंत्रता सेनानी हैं, उमराव सिंह बताते हैं कि 1941 में अंग्रेजों की फौज में वह भर्ती हुए थे लेकिन उस वक्त अंग्रेजों और जापानियों के बीच में युद्ध चला रहा था इसलिए उन्हें ट्रेनिंग के बाद सिंगापुर जापानियों से युद्ध करने के लिए भेज दिया गया.

आजाद हिंद फौज का बन गए हिस्सा
उमराव सिंह का कहना है कि अंग्रेज जापानियों से युद्ध हार गए और उन्हें बंदी बना लिया गया, लेकिन इसके सुभाष चंद्र बोस और उनके चाचा रासबिहारी बोस ने जेल में बंद रहे सभी भारतीयों को आजाद हिंद फौज का हिस्सा बना लिया.

भारत को पहले ही मिल जाती आजादी
इतना ही नहीं उमराव सिंह बताते हैं कि भारत को 1947 के पहले ही आजादी मिल जाती अगर अमेरिका जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर हमला नहीं करता. उमराव सिंह का कहना है कि अगर उस वक्त अमेरिका हमला नहीं करता तो कीमती सामान भी बच जाता और पाकिस्तान भी भारत से अलग नहीं होता.

भारत की आजादी के दिलाने में जय हिंद फौज की अहम भूमिका
आज अगर हम आजाद हैं तो सिर्फ इस वजह से कि इसके पीछे 'तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आजादी दूंगा' के जज्बों के साथ लाखों जीवन की कुर्बानी है, 'जय हिंद' की आवाजों के साथ हर भारतीय का साथ है, 'कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा' जैसे गाने हैं, सुभाष चंद्र बोस और रासबिहारी बोस जैसे हीरो हैं.

Intro:रोहतक:-अगर दो दिन जापान पर ऐटम बम्ब नही गिराता अमेरिका तो दो साल पहले ही भारत हो जाता आज़ाद।
सुभाष चन्द्र बोस और उनके चाचा राश बिहारी बोस ने प्रेरित किया अंग्रेजो की फौज में भर्ती भारतीय जवानों को देश को आज़ाद करने के लिए।
अक्सर फ़ौज के जवानों के साथ बैठकर खाना खाते थे सुभाष चन्द्र बोष।
आजाद हिंद फौज के सिपाही 96 साल के स्वतंत्रता सेनानी ने बताई आप बीती।

अगर अमेरिका अंग्रेजों के साथ मिलकर जापान पर 2 दिन और एटम बम से हमला नहीं करता तो भारत को 2 साल पहले ही आजादी मिल गई होती यही नहीं भारत से पाकिस्तान का टुकड़ा भी अलग नहीं होता सुभाष चंद्र बोस की फौज से अंग्रेज इतने घबराए कि उन्होंने 2 साल पहले ही भारत छोड़ने की तैयारी कर दी क्योंकि सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज बर्मा के रास्ते से होते हुए आसाम तक पहुंच गई थी लेकिन जापान पर गिरे बम की घटना के बाद आजाद हिंद फौज को वापस लौटना पड़ा।

Body:96 बरस के स्वतंत्रता सेनानी उमराव सिंह ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को बड़े करीब से देखा उनका कहना है कि सुभाष चंद्र बोस बड़े सरल स्वभाव के थे और वह अक्सर सेना के जवानों के साथ बैठकर ही खाना खाया करते थे उनका कहना है कि सुभाष चंद्र बोस के साथ-साथ उनके चाचा रासबिहारी बोस की भी देश की आजादी में अहम भागीदारी है उन्होंने कहा कि सबसे पहले रासबिहारी बोस ही आए थे और उन्होंने ही भारतीय जवानों को देश को आजाद कराने के लिए प्रेरित किया था दरअसल रोहतक जिले के निगाना गांव के रहने वाले 96 बरस के उमराव सिंह स्वतंत्रता सेनानी है उमराव सिंह बताते हैं कि 1941 में अंग्रेजों की फौज में वह भर्ती हुए थे लेकिन उस वक्त अंग्रेजों और जापानियों के बीच में युद्ध चला हुआ था इसलिए उन्हें ट्रेनिंग के बाद सिंगापुर जापानियों से युद्ध करने के लिए भेज दिया गया उमराव सिंह का कहना है कि अंग्रेज जापानियों से युद्ध हार गए और उन्हें बंदी बना लिया गया लेकिन कुछ महीने बाद सुभाष चंद्र बोस के चाचा रासबिहारी बोस भारतीय जवानों से मिलने के लिए आए और उन्हें देश के प्रति प्रेरित किया उसके बाद सुभाष चंद्र बोस आए और उन्होंने आजाद हिंद फौज मैं भारतीय जवानों को भर्ती किया।
Conclusion:उमराव सिंह का कहना है कि वह अंग्रेजों से लड़ने के लिए बर्मा के रास्ते असम तक पहुंच गए थे लेकिन अंग्रेजों ने अमेरिका से मदद मांगी और अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम से हमला कर दिया जिसके बाद आजाद हिंद फौज को पीछे हटना पड़ा उमराव सिंह का कहना है कि अगर 2 दिन अमेरिका जापान पर एटम बम से हमला नहीं करता तो भारत को 2 साल पहले ही अंग्रेजों से आजादी मिल जाती उन्होंने कहा कि आजाद हिंद फौज की ताकत को देखते हुए अंग्रेजों ने भारत को छोड़ने का मन बना लिया था और 2 साल तक तमाम कीमती चीजें सोना और जेवरात भारत से ले जाना शुरू कर दिया उमराव सिंह का कहना है कि अगर उस वक्त अमेरिका हमला नहीं करता तो कीमती सामान और पाकिस्तान भी भारत से अलग नहीं होता।

बाइट:-उमराव सिंह स्वतंत्रता सेनानी।
Last Updated : Aug 15, 2019, 3:53 PM IST
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