ETV Bharat / city

Pitru Paksha 2022: हरियाणा के इस जगह श्राद्ध करने से पितरों को मिलती है शांति, पांडवों ने किया था यहीं पर श्राद्ध

author img

By

Published : Sep 9, 2022, 1:57 PM IST

Updated : Sep 9, 2022, 5:43 PM IST

हरियाणा के करनाल में पितृ पक्ष में पितरों को दान (Pitru Paksha 2022) करने के लिए यहां हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. मान्यता है कि करनाल के पिहोवा में महाभारत काल के दौरान पांडवों ने अपने पितरों का दान यहीं से किया था. हरियाणा के कुरुक्षेत्र के पिहोवा को तीर्थ नगरी भी कहा जाता है.

Importance of Shradh in Pitru Paksha
पितृ पक्ष में श्राद्ध का महत्व

करनाल: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बड़ा महत्व होता है. कहा जाता है कि पितरों की शांति के लिए पितृ पक्ष मनाया जाता है. पितृ पक्ष में लोग घरों में श्राद्ध करते हैं. पितरों को जल अर्पित करते हैं. जिस दिन पितरों का स्वर्गवास हुआ होता है उस तिथि को याद कर अन्न और वस्त्र के दान करने की मान्यता है. वहीं बात करें हरियाणा के पिहोवा की तो हिंदू धर्म में पिहोवा को पितरों का तीर्थ स्थान कहा गया है. पितरों की मुक्ति और उनके श्राद्ध के लिए लोग हरियाणा के कुरुक्षेत्र से कुछ ही दूर बसे पिहोवा तीर्थ जाते हैं.

पितरों की तीर्थ नगरी पिहोवा: हिंदू धर्म में पिहोवा को पितरों का तीर्थ कहा गया है. आमतौर पर पर पिंड दान करने की जब बात आती है तो लोग बिहार में मौजूद गया तीर्थ को ही अहमियत देते हैं. लेकिन पिहोवा का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. यह बात लगभग हर किसी को पता है कि कुरुक्षेत्र महाभारत की युद्ध भूमि रही है. यहां पर पांडवों और कौरवों के बीच घमासान युद्ध हुआ था. इस युद्ध में पांडवों के कई सगे संबंधी मारे गए थे. तब युद्ध की समाप्‍ति के बाद पांडवों ने भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ मिलकर अपने सगे संबंधियों की आत्‍मा को शांति पहुंचाने के लिए पिहोवा की धरती पर ही श्राद्ध (Shradh in Pitru Paksha) किया था. तब से पिहोवा को पितरों का तीर्थ स्‍थल माना गया है.

Pitru Paksha 2022
पितरों की तीर्थ नगरी पिहोवा
हरियाणा के पिहोवा में पितृ पक्ष की मान्यता: (Importance of Shradh in Pitru Paksha) शास्‍त्रों मे कहा गया है कि पिहोवा तीर्थ पर आकर जो भी अपने पितरों का पिंड दान करता है या फिर उनका श्राद्ध मनाता है तो पितृ दोष हटने के साथ ही उसकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. इतना ही नहीं पिहोवा में 200 से भी अधिक पुरोहित हैं, जो किसी भी व्‍यक्ति की लगभग 200 साल पुरानी वंशावली बता सकते हैं. पिहोवा में कई बड़े राजा-महाराजाओं का श्राद्ध मनाया जा चुका और उनके वंशजों द्वारा पिंडदान भी कराया जा चुका है.
Pitru Paksha 2022
पितरों की तीर्थ नगरी पिहोवा
श्राद्ध के लिए अमावस्‍या का दिन है खास: पंडित विनोद बताते हैं कि 'अश्विन मास में प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष से शुरू होकर 15 दिनों तक श्राद्ध मनाया जाता है. हर व्‍यक्ति अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करता है. अगर कोई सही तिथि पर अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है तो वह अमावस्या को सभी पितरों और अज्ञात पितरों का श्राद्ध कर सकता है.' अमावस्‍या के दिन पिहोवा में अपने सभी पितरों का एक साथ श्राद्ध करने वालों की बहुत भीड़ जमा होती है. कौन हैं श्राद्धदेव: श्राद्धदेव का मंद‍िर कुरुक्षेत्र के पास स्थित पिहोवा में है. इसे पृथुदक तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है. मान्‍यता है क‍ि पांडवों ने इसी स्‍थान पर अपने सगे संबंध‍ियों का श्राद्ध और प‍िंडदान क‍िया था. इसी स्‍थान पर सरस्वती तट पर एक मंद‍िर है ज‍िसमें श्राद्धदेव यानी क‍ि यमराजजी की मूर्ति स्‍थाप‍ित है. मान्‍यता है क‍ि इसकी स्‍थापना महाभारत काल में ही हुई थी. इसका उल्‍लेख जिसका विवरण श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध में महात्‍मा विदुर द्वारा की जाने वाली तीर्थ यात्रा में मिलता है.
Pitru Paksha 2022
प्रेत पीपल पर जल चढ़ाना और सूत बांधना अनिवार्य
गया में भी सबसे पहले इन्‍हीं को पूजते हैं: पौराण‍िक मान्‍यताओं के मुताबिक प‍िहोवा तीर्थ में प‍िंडदान और श्राद्ध का व‍िशेष महत्‍व है.मान्‍यता है क‍ि अगर कोई प‍िहोवा में प‍िंडदान और श्राद्ध न करे और सीधे गया चला जाए तो वहां भी उसे सबसे पहले पृथुदक बेदी की पूजा-अर्चना करनी पड़ती है. इसके बाद ही उसका श्राद्ध और प‍िंडदान स्‍वीकृत होता है. यही वजह है प‍ितृपक्ष के दौरान प‍िहोवा की धरती पर दूर-दूर से लोग आते हैं और अपने पूर्वजों का प‍िंडदान और श्राद्ध करते हैं. तीर्थ पुरोहित आशीष चक्रपाणि ने बताया कि तीर्थ पर परिजनों की ओर से किए गए पिंडदान, पूजा पाठ और कर्मकांड करवाने से दिवंगत आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलकर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
Shradh in Pitru Paksha
श्राद्ध करने से पितरों को मिलती है शांति
जिनकी तिथि नहीं याद उनका अमावस्या पर श्राद्ध: तीर्थ पुरोहित विनोद शास्त्री के मुताबिक अमावस्या का महत्व इसलिए भी ज्यादा माना गया है कि जिस मनुष्य को अपने पूर्वजों के श्राद्ध की तिथि ज्ञात नहीं होती तो वह अमावस्या के दिन इनका श्राद्ध कर सकता है. इसी मान्यता को लेकर हजारों श्रद्धालु पहुंचे हैं. कुरुक्षेत्र से 25 किलोमीटर दूर पिहोवा में सरस्वती सरोवर के तट पर एक पीपल का पेड़ है. पीपल के इस पेड़ को प्रेत पीपल भी कहते हैं. इस पेड़ की मान्यता है कि अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों के लिए यहां पर पूजा अर्चना और पिंड दान किया जाता है. जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती और उनको इस पेड़ पर स्थान मिल जाता है. लोग हर साल यहां आकर पिंडदान और पूजा अर्चना करते हैं. ये पीपल का पेड़ सरस्वती नदी के मुहाने पर है. सरस्वती तीर्थ पर आए हजारों श्रद्धालुओं ने स्नान कर अपने पितरों के निमित कर्मकांड और पूजा पाठ करते हैं. इसके बाद यात्री पीपल पर जल चढ़ाकर अपने पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.
Pitru Paksha 2022
पांडवों ने किया था यहीं पर श्राद्ध

मिलती है पितरों को शांति : मान्यता है कि प्रेत पीपल पर जल चढ़ाने से जहां पूर्वजों की आत्मा को अक्षय तृप्ति मिलती है, वहीं पूर्वज प्रेत योनि में न जाकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं. तीर्थ पुरोहित ने बताया कि प्रेत पीपल पर सूत रूपी धागा लपेटने से भूत-प्रेत या भटकती हुई मृत आत्माओं को पीपल से बांध देने की मान्यता महाभारत काल से चली आ रही है. तीर्थ पुरोहित ने बताया कि ऐसी भी मान्यता है कि जिन लोगों के पितर स्वप्न में दिखाई देते हैं या किसी प्रकार से तंग करते हैं, तो उन लोगों को प्रेत पीपल पर जल चढ़ाना और सूत बांधना अनिवार्य है. पुरोहित विनोद शास्त्री ने बताया कि प्रेत पीपल ब्रह्माजी का रूप है. जल चढ़ाने का अर्थ है कि मृत पितरों को स्वर्ग की यात्रा के दौरान उन्हें प्यास न लगे वहीं सूत लपेटने का अर्थ है कि पितर सरस्वती तीर्थ पर ब्रह्माजी के साथ बंधे रहें और उन्हें परेशान न करें. उन्होंने बताया कि महाभारत काल में भी युधिष्ठिर ने भी अपने पूर्वजों व सगे संबंधियों की आत्मिक शाति के लिए प्रेत पीपल पर जल चढ़ाया और सूत लपेटा था. यही कारण है कि चैत्र-चौदस मेले में विभिन्न राज्यों से लाखों श्रद्धालु तीर्थ पर स्नान करने के बाद प्रेत पीपल पर जल चढ़ाना व सूत लपेटना नहीं भूलते.

Pitru Paksha 2022
पिहोवा को तीर्थ नगरी भी कहा जाता है

पितृ पक्ष कब है : (when is Pitru Paksha) हिंदू पंचांग के मुताबिक, पितृ पक्ष-2022 (Pitru Paksha 2022) की शुरुआत 10 सितंबर से होगी. बता दें कि हर साल भाद्रपद मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ पक्ष शुरु होता है. इस साल यह तिथि 10 सितंबर से आरंभ होकर 25 सितंबर तक चलेगी.

करनाल: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बड़ा महत्व होता है. कहा जाता है कि पितरों की शांति के लिए पितृ पक्ष मनाया जाता है. पितृ पक्ष में लोग घरों में श्राद्ध करते हैं. पितरों को जल अर्पित करते हैं. जिस दिन पितरों का स्वर्गवास हुआ होता है उस तिथि को याद कर अन्न और वस्त्र के दान करने की मान्यता है. वहीं बात करें हरियाणा के पिहोवा की तो हिंदू धर्म में पिहोवा को पितरों का तीर्थ स्थान कहा गया है. पितरों की मुक्ति और उनके श्राद्ध के लिए लोग हरियाणा के कुरुक्षेत्र से कुछ ही दूर बसे पिहोवा तीर्थ जाते हैं.

पितरों की तीर्थ नगरी पिहोवा: हिंदू धर्म में पिहोवा को पितरों का तीर्थ कहा गया है. आमतौर पर पर पिंड दान करने की जब बात आती है तो लोग बिहार में मौजूद गया तीर्थ को ही अहमियत देते हैं. लेकिन पिहोवा का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. यह बात लगभग हर किसी को पता है कि कुरुक्षेत्र महाभारत की युद्ध भूमि रही है. यहां पर पांडवों और कौरवों के बीच घमासान युद्ध हुआ था. इस युद्ध में पांडवों के कई सगे संबंधी मारे गए थे. तब युद्ध की समाप्‍ति के बाद पांडवों ने भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ मिलकर अपने सगे संबंधियों की आत्‍मा को शांति पहुंचाने के लिए पिहोवा की धरती पर ही श्राद्ध (Shradh in Pitru Paksha) किया था. तब से पिहोवा को पितरों का तीर्थ स्‍थल माना गया है.

Pitru Paksha 2022
पितरों की तीर्थ नगरी पिहोवा
हरियाणा के पिहोवा में पितृ पक्ष की मान्यता: (Importance of Shradh in Pitru Paksha) शास्‍त्रों मे कहा गया है कि पिहोवा तीर्थ पर आकर जो भी अपने पितरों का पिंड दान करता है या फिर उनका श्राद्ध मनाता है तो पितृ दोष हटने के साथ ही उसकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. इतना ही नहीं पिहोवा में 200 से भी अधिक पुरोहित हैं, जो किसी भी व्‍यक्ति की लगभग 200 साल पुरानी वंशावली बता सकते हैं. पिहोवा में कई बड़े राजा-महाराजाओं का श्राद्ध मनाया जा चुका और उनके वंशजों द्वारा पिंडदान भी कराया जा चुका है.
Pitru Paksha 2022
पितरों की तीर्थ नगरी पिहोवा
श्राद्ध के लिए अमावस्‍या का दिन है खास: पंडित विनोद बताते हैं कि 'अश्विन मास में प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष से शुरू होकर 15 दिनों तक श्राद्ध मनाया जाता है. हर व्‍यक्ति अपने पितरों का तिथि अनुसार श्राद्ध करता है. अगर कोई सही तिथि पर अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है तो वह अमावस्या को सभी पितरों और अज्ञात पितरों का श्राद्ध कर सकता है.' अमावस्‍या के दिन पिहोवा में अपने सभी पितरों का एक साथ श्राद्ध करने वालों की बहुत भीड़ जमा होती है. कौन हैं श्राद्धदेव: श्राद्धदेव का मंद‍िर कुरुक्षेत्र के पास स्थित पिहोवा में है. इसे पृथुदक तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है. मान्‍यता है क‍ि पांडवों ने इसी स्‍थान पर अपने सगे संबंध‍ियों का श्राद्ध और प‍िंडदान क‍िया था. इसी स्‍थान पर सरस्वती तट पर एक मंद‍िर है ज‍िसमें श्राद्धदेव यानी क‍ि यमराजजी की मूर्ति स्‍थाप‍ित है. मान्‍यता है क‍ि इसकी स्‍थापना महाभारत काल में ही हुई थी. इसका उल्‍लेख जिसका विवरण श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध में महात्‍मा विदुर द्वारा की जाने वाली तीर्थ यात्रा में मिलता है.
Pitru Paksha 2022
प्रेत पीपल पर जल चढ़ाना और सूत बांधना अनिवार्य
गया में भी सबसे पहले इन्‍हीं को पूजते हैं: पौराण‍िक मान्‍यताओं के मुताबिक प‍िहोवा तीर्थ में प‍िंडदान और श्राद्ध का व‍िशेष महत्‍व है.मान्‍यता है क‍ि अगर कोई प‍िहोवा में प‍िंडदान और श्राद्ध न करे और सीधे गया चला जाए तो वहां भी उसे सबसे पहले पृथुदक बेदी की पूजा-अर्चना करनी पड़ती है. इसके बाद ही उसका श्राद्ध और प‍िंडदान स्‍वीकृत होता है. यही वजह है प‍ितृपक्ष के दौरान प‍िहोवा की धरती पर दूर-दूर से लोग आते हैं और अपने पूर्वजों का प‍िंडदान और श्राद्ध करते हैं. तीर्थ पुरोहित आशीष चक्रपाणि ने बताया कि तीर्थ पर परिजनों की ओर से किए गए पिंडदान, पूजा पाठ और कर्मकांड करवाने से दिवंगत आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलकर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
Shradh in Pitru Paksha
श्राद्ध करने से पितरों को मिलती है शांति
जिनकी तिथि नहीं याद उनका अमावस्या पर श्राद्ध: तीर्थ पुरोहित विनोद शास्त्री के मुताबिक अमावस्या का महत्व इसलिए भी ज्यादा माना गया है कि जिस मनुष्य को अपने पूर्वजों के श्राद्ध की तिथि ज्ञात नहीं होती तो वह अमावस्या के दिन इनका श्राद्ध कर सकता है. इसी मान्यता को लेकर हजारों श्रद्धालु पहुंचे हैं. कुरुक्षेत्र से 25 किलोमीटर दूर पिहोवा में सरस्वती सरोवर के तट पर एक पीपल का पेड़ है. पीपल के इस पेड़ को प्रेत पीपल भी कहते हैं. इस पेड़ की मान्यता है कि अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों के लिए यहां पर पूजा अर्चना और पिंड दान किया जाता है. जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती और उनको इस पेड़ पर स्थान मिल जाता है. लोग हर साल यहां आकर पिंडदान और पूजा अर्चना करते हैं. ये पीपल का पेड़ सरस्वती नदी के मुहाने पर है. सरस्वती तीर्थ पर आए हजारों श्रद्धालुओं ने स्नान कर अपने पितरों के निमित कर्मकांड और पूजा पाठ करते हैं. इसके बाद यात्री पीपल पर जल चढ़ाकर अपने पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.
Pitru Paksha 2022
पांडवों ने किया था यहीं पर श्राद्ध

मिलती है पितरों को शांति : मान्यता है कि प्रेत पीपल पर जल चढ़ाने से जहां पूर्वजों की आत्मा को अक्षय तृप्ति मिलती है, वहीं पूर्वज प्रेत योनि में न जाकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं. तीर्थ पुरोहित ने बताया कि प्रेत पीपल पर सूत रूपी धागा लपेटने से भूत-प्रेत या भटकती हुई मृत आत्माओं को पीपल से बांध देने की मान्यता महाभारत काल से चली आ रही है. तीर्थ पुरोहित ने बताया कि ऐसी भी मान्यता है कि जिन लोगों के पितर स्वप्न में दिखाई देते हैं या किसी प्रकार से तंग करते हैं, तो उन लोगों को प्रेत पीपल पर जल चढ़ाना और सूत बांधना अनिवार्य है. पुरोहित विनोद शास्त्री ने बताया कि प्रेत पीपल ब्रह्माजी का रूप है. जल चढ़ाने का अर्थ है कि मृत पितरों को स्वर्ग की यात्रा के दौरान उन्हें प्यास न लगे वहीं सूत लपेटने का अर्थ है कि पितर सरस्वती तीर्थ पर ब्रह्माजी के साथ बंधे रहें और उन्हें परेशान न करें. उन्होंने बताया कि महाभारत काल में भी युधिष्ठिर ने भी अपने पूर्वजों व सगे संबंधियों की आत्मिक शाति के लिए प्रेत पीपल पर जल चढ़ाया और सूत लपेटा था. यही कारण है कि चैत्र-चौदस मेले में विभिन्न राज्यों से लाखों श्रद्धालु तीर्थ पर स्नान करने के बाद प्रेत पीपल पर जल चढ़ाना व सूत लपेटना नहीं भूलते.

Pitru Paksha 2022
पिहोवा को तीर्थ नगरी भी कहा जाता है

पितृ पक्ष कब है : (when is Pitru Paksha) हिंदू पंचांग के मुताबिक, पितृ पक्ष-2022 (Pitru Paksha 2022) की शुरुआत 10 सितंबर से होगी. बता दें कि हर साल भाद्रपद मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ पक्ष शुरु होता है. इस साल यह तिथि 10 सितंबर से आरंभ होकर 25 सितंबर तक चलेगी.

Last Updated : Sep 9, 2022, 5:43 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.